कानपुर| ट्रिनिडाड से पधारी संस्कृति विभाग की निदेशक प्रो.पं. इन्द्राणी राम प्रसाद ने कानपुर के रामलीला कलाकारों से मिलकर ट्रिनिडाड और सूरीनाम की रामलीला की वृहद जानकारी साझा करते हुए कानपुर की रामलीला शैली की बारीकियां भी समझी| इस हेतु अयोध्या शोध संस्थान के सौजन्य से दीपांजलि समाजोत्थान समिति द्वारा रामलीला संगोष्ठी का आयोजन नौबस्ता के योगेन्द्र विहार, खाड़ेपुर में स्थित नारायण धर्मशाल में किया गया था| इस संगोष्ठी में रामलीला के दो दर्जन से भी अधिक कलाकारों ने भाग लिया| गौरतलब है कि ट्रिनिडाड रामलीला के प्रति अत्यधिक जागरूक देश है| यहाँ की सरकार ने रामलीला के संरक्षण और संवर्धन हेतु राष्ट्रिय स्तर पर एक रामलीला परिषद् का गठन किया है| यहाँ के संस्कृति विभाग की निदेशक प्रो.पं. इन्द्राणी राम प्रसाद ने बताया कि रामलीला के साथ-साथ भारतीय संस्कारों को अपनाने के प्रति भी ट्रिनिडाड के नागरिक सदैव जागरूक रहते हैं| रामलीला में अभिनय करने वाले कलाकार जितने दिन अभिनय करते हैं उतने दिन पूर्ण नियम-संयम और सात्विकता के साथ रहते हैं| वहां के लोग न केवल भक्ति-भाव से रामलीला करते और देखते हैं बल्कि उसके माध्यम से भारतीय संस्कारों को समझने और अपनाने का भी प्रयास करते हैं| छोटे-छोटे बच्चों को रामलीला का प्रशिक्षण देते समय भारतीय संस्कारों की भी शिक्षा दी जाती है| जैसे माता-पिता के पैर छूना, राम-राम और सीताराम बोलना आदि| उन्होंने बताया कि चूंकि ट्रिनिडाड की भाषा अंग्रेजी है| इसलिए रामलीला का मंचन तो अंग्रेजी भाषा में होता है| परन्तु संस्कृत के श्लोक अपने मूल रूप में ही बोले जाते हैं| सूरीनाम के लोग अवधी भाषा बोलते हैं| इसलिए वहां की रामलीला अवधी और हिन्दी भाषा में होती है| हालाकि पूरी रामलीला में पात्र केवल मूक अभिनय करते हैं| बोलने का काम केवल व्यास का ही होता है| व्यास जी अंग्रेजी भाषा में रामलीला का कथानक बताते हुए अभिनय करने के लिए पात्रों का दिशा-निर्देशन करते रहते हैं तथा बीच-बीच में संस्कृत के श्लोक बोलकर रामलीला को आगे बढ़ाते हैं| पात्रों की साज-सज्जा भारत की प्राचीन रामलीलाओं से आहरित होती है| उसमें भी जैसे हनुमान जी का श्रृंगार प्रायः दक्षिण भारत तो अन्य पात्रों का उत्तर भारतीय शैली से प्रेरित होता है| हालाकि अब कहीं-कहीं दूरदर्शन चैनलों के रामायण सीरियलों की भी छाप दिखायी देने लगी है|प्रो. इन्द्राणी के साथ आये अयोध्या शोध संस्थान के लेखाधिकारी मदन शर्मा और राजकपूर ने बताया कि प्रो.पं. इन्द्राणी रामप्रसाद उत्तर भारत की विभिन्न रामलीला शैलियों पर शोध करने के उद्देश्य से भारत आयी हैं| एक दिन पूर्व उन्होंने लखनऊ के रामलीला कलाकारों के साथ संगोष्ठी की थी और आज वह कानपुर के कलाकारों के साथ वार्ता करने आयी हैं| अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डॉ. योगेन्द्र प्रताप सिंह का प्रयास है कि पूरी दुनियां की रामलीलाएं एक दूसरे के साथ समाहित होकर भारतीय संस्कृति की मूल अवधारणा को प्रसारित करने में प्रमुख भूमिका निभाएं| दीपांजलि समाजोत्थान समिति के महासचिव डॉ.दीपकुमार शुक्ल ने बताया कि इस संगोष्ठी में कानपुर के दो दर्जन से भी अधिक कलाकारों ने सहभागिता करके जहाँ ट्रिनीडाड और सूरीनाम की रामलीला को समझा वहीँ कानपुर की रामलीला शैली से पं. इन्द्राणी राम प्रसाद को भी सुपरिचित कराया| उन्हें कानपुर की संवाद शैली बेहद पसन्द आयी| रामलीला संगोष्ठी में पं. धनेश कुमार शुक्ल, पं. अशोक व्यास. पं. शिव नारायण शुक्ल, पं. विजयकान्त त्रिपाठी, पं. हरि प्रकाश तिवारी, पं. सत्येन्द्र शुक्ल, पं. बादशाह अग्निहोत्री, पं. तेज नारायण शुक्ल, पं. विनोद कुमार पाण्डेय, पं. कृष्ण कुमार शुक्ल, पं. शैलेन्द्र तिवारी, वीर सिंह, लल्लू मनचला, संजना रानी, डॉ.राम नरेश सिंह चौहान, आचार्य डॉ.राम सिंह विकल, युवराज सिंह, तथा डॉ.अजय सिन्हा सहित विभिन्न कलाकारों एवं गणमान्य नागरिकों ने हिस्सा लिया|
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