श्राद्ध पक्ष के दिनों कुछ लोगों को पितृओं पर अचानक प्रेम उभर आता है, जीते जी जिनको दो वक्त की रोटी शांति से खाने नहीं दी उनके पीछे दान धर्म करने का दिखावा करते है।
किसी को शायद ये बातें बुरी लगे पर धार्मिक भावना दुभाने का इरादा नहीं, पर जो लोग ये दिखावा और ढ़ोंग करते है माँ-बाप के चले जाने के बाद की हाँ हमें हमारे माँ-बाप बहुत प्यारे थे, देखो आज श्राद्ध के दिन हमने इतना दान किया। जिसने जीते जी माँ बाप को खून के आँसू रुलाया हो उसे कोई हक नहीं बनता श्राद्ध के नाम पर माँ-बाप को याद करने का भी।
सुना है क्या कभी की स्वर्ग के लिये कोई टिफ़िन सेवा शुरू हुई हो? या तो फिर क्या ऐसा संभव है की हम गाय और कौवों को खीर पूडी खिलाएं और सालों पहले चल बसे हमारे माँ-बाप को पहुँचे और वह तृप्त हो। ऐसी तथाकथित विधियों का अनुकरण करने से अच्छा है जब माँ-बाप ज़िंदा हो तभी उनको अच्छे से खिलाएं-पिलाएं और सन्मान से रखें।
या तो फिर जिन्होंने जीते जी माँ-बाप की सेवा करके उन्हें खुश रखा हो वही श्राद्ध करके सच्ची श्रद्धांजलि दें। पर जिनके माँ बाप बेटे बहू की सेवा पाकर तृप्त होकर गए हो उनका तो मोक्ष हो जाता है उनके पीछे ये ढ़कोसला करने की जरूरत भी नहीं।
पर जिनको माँ बाप की कद्र नहीं उनके लिए इतना ही कहना है की, किसी भगवान की फोटो का नहीं बल्कि माता-पिता के चश्मे का शीशा पोंछ दीजिए, खुशबूदार अगरबत्ती लगाईये पर किसी भगवान के आगे नहीं बल्कि माता पिता के कमरे में मच्छर वाली, माथा टेके पर किसी बेजान मूर्ति के आगे नहीं बल्कि अपने माता-पिता के चरणों में। जो आपके जन्मदाता है और भगवान से कम नहीं।
खाना खाने की विनती करें किसी गाय या कौवे या कुत्ते को नहीं बल्कि जीते जी अपने माता पिता को करें, खूब सारे पैसे देना दान में मत दीजिए बल्कि जीते जी अपने माता पिता की हर जरुरत पूरा करने के लिए खर्च करें। समाज में वृध्धाश्रम एक कलंक है, क्यूँ ना इसे नश्तेनाबूद करें.!
याद कीजिए आपके माता पिता ने बचपन में आपको राजकुमार या राजकुमारी की तरह पाला होता है अपनी जरूरतों को भूलकर आपकी हर ख़्वाहिश पूरी की होती है, तो क्यूँ न अपना फ़र्ज़ निभाते बुढ़ापे में उन्हें राजा-रानी की तरह रखें।
मरने के बाद श्राद्ध नहीं करोगे चलेगा माँ-बाप के जीते जी इतना जरुर करना। माँ-बाप के चले जाने के बाद पैसों से सबकुछ मिलेगा पर उनके जैसा नि:स्वार्थ प्यार कहीं नहीं मिलेगा। पूजा-पाठ, श्राद्ध कर्म, दान-पुण्य सब दिखावा और ढ़कोसला है। माँ-बाप की सेवा करेंगे उन्हें खुश रखेंगे तो भगवान भी खुश होगा।
(भावना ठाकर)