कितना कोहराम है पूरी दुनिया में, ध्वनि प्रदूषण से लेकर धर्मांधता, बेरोजगारी, भुखमरी और सामाजिक असमानता का शोर ने हम इंसान की जिंदगी में कितना दंगल मचाया है। हर साल 21 सितंबर को विश्व शांति दिवस मनाया जाता है। पर क्या हम अनुभव करते है शांति का दरअसल, शांति मधुरता और भाईचारे की अवस्था है, जिसमें राग द्वेष बैर और जलन को परे रखकर मन को सुकून दे ऐसे लम्हों की जरूरत होती है। देखा जाए तो शांति के बिना जीवन का कोई आधार ही नहीं है। वैसे आमतौर पर इस शब्द का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में युद्धविराम या संघर्ष में ठहराव के लिए किया जाता है। शांति दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों और नागरिकों के बीच शांति व्यवस्था कायम करना और अंतरराष्ट्रीय संघर्षों और झगड़ों पर विराम लगाना है। संयुक्त राष्ट्र ने दुनियाभर में शांति का संदेश पहुंचाने के लिए कला से लेकर साहित्य, संगीत, सिनेमा और खेल जगत की प्रसिद्ध हस्तियों को शांतिदूत नियुक्त किया हुआ है। पर आज के दौर में इंसान का जीवन भी युद्ध से कम नहीं तो आज मन की शांति को ढूँढने के उपाय खोजते है।
रात के मद्धम बहते पहर में अंधेरे में नैंन मूँदे सोच की दहलीज़ पर बैठे जो सबसे साफ़ नज़र आता है वो खुद के भीतर छाया अंधेरा है। जिसे हम उजालों की रोशनी में नहीं देख सकते, नहीं मिल सकते। सन्नाटों भरी रातें रुबरु करवाती है खुद को खुद से।
दिनरथ पर दौड़ते हम सिर्फ़ खुद को देख पाते है। कहाँ फुर्सत इतनी की झकझोर पाते, टटोल पाते बस खुद से ही भागते रहते है। शांति और सुकून की तलाश में।
पर शांत सन्नाटों भरी रात में जब नींद आँख मिचौली खेलती है तब खुद ब खुद मन रूह के भीतर गोते लगाते कुछ टटोलता है। मसक्कत और जद्दोजहद के बाद मुलाकात होती है अपने ही अक्स से भाग दौड़ भरी ज़िंदगी में जो हमसे बिछड़ गया है। पर शायद उसमें भी हम अटपटी चुनौतियां या रिश्तों की गुत्थियां ही ढूँढते है।
सुकून का सागर तलाशने की कोशिश तो करते ही नहीं, खुशीयों की गठरी खोलने का कष्ट करते ही नहीं, जो ज़िंदगी के बिहड़ जंगल में गुम है कहीं। खयालों के घोड़े दौड़ते रहते है मकसद से भटक कर। शब भर सहलाते रहते है हम खयालों को और बह जाते है खयालों के उडनखटोले पर सवार होकर सीधे अवसाद की गुफ़ाओं में। ये नहीं सोचते की एक झिलमिलाती राह ओर भी है जिस पर चलकर हम सफ़र करते सकारात्मक ऊर्जा तक पहुँच सकते है।
एक छोटी सी बात पर विचार करें तो सारे दु:खों से निजात मिल जाएगा वो यह की ज़िंदगी में जो कुछ हो रहा है या जो होने वाला है क्या उस पर हमारा नियंत्रण है। या कुछ भी हमारे हाथ में है ? तो जब हमारे हाथ में कुछ भी नहीं तो उसके बारे में सोचकर खुद को नकारात्मक खयालों को सौंप कर अवसाद की खाई में धकेलना कहाँ की समझदारी है। शांति चाहिए तो सकारात्मक बनिए।
बहुत लोगों को कहते सुना है कि कुछ अच्छा नहीं लगता, कहीं मन नहीं लगता। ना ठीक से खाते-पीते है ना ठीक से सो पाते है और उसी एक खयाल को मन में बार बार दोहराते रहते है। मन का गुलाम है तन जो मन की स्थिति का अनुसरण करते मन की हर गतिविधियों के सांचे में ढ़लकर प्रतिक्रिया देता है। मन खुश होगा तभी तन तंदरुस्त होगा। तो खुद की क्षमता को पहचानों, खुद में विश्वास रखो। डिप्रेशन यानी अवसाद को मन की दहलीज़ पर कदम रखने दोगे तो वह पूरे शरीर पर कब्ज़ा करने में माहिर होता है। चिंता किसी प्रश्न का हल नहीं।
रात के सुकून सभर लम्हों में गतिशील मन को ईश के हाथों सौंप कर ओम के उच्चारण संग हर नकारात्मता से निजात पा लो। जिसने जन्म दिया है ज़िंदगी वही चलाएगा इस विश्वास के साथ वर्तमान का सफ़र हंसी खुशी जी कर ज़िंदगी को आसान कर लो। जीवन में शांति ही शांति का अनुभव होगा।
(भावना ठाकर, ‘भावु’)