चीन व पाकिस्तान की समरतांत्रिक चालों में बदलाव के कारण भारत की सामरिक तैयारी यही है कि युद्ध की स्थिति में वह दोनों मोर्चों पर निपट सके। इसके लिए वायु सेना उन हाईवे को रनवे के रुप आजमा रही है जो युद्ध की स्थिति में काम आ सकें। इसी रणनीति के तहत नौ सितम्बर को राष्ट्रीय सुरक्षा के नए प्रहरी के रुप में एक और राष्ट्रीय राजमार्ग का नाम तब जुड़ गया जब केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने राजस्थान राज्य के बाड़मेर में नेशनल हाईवे-925 ए पर बने इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड (ईएलएफ) का उद्घाटन किया। चीन की सीमा के नजदीक दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी पर हरक्यूलिस व लड़ाकू विमानों के उतरनें के बाद अब यह दूसरा अवसर था जब पाक सीमा के एकदम नजदीक वायु सेना के विमानों ने टच एण्ड गो की फारमेषन बनाई।
इस हवाई पट्टी का उद्घाटन परिवहन विमान सी-130 जे हरक्यूलिस की आपातकालीन लैंडिंग अभ्यास से किया गया। जिस समय ये इमरजेंसी लैंडिंग ड्रिल हुई उस समय सी-130 जे हरक्यूलिस परिवहन विमान में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी एवं सीडीएस जनरल विपिन कुमार रावत सवार थे। इस दौरान वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्षल आर.के.एस. भदौरिया भी वहां उपस्थित थे। राष्ट्रीय राजमार्ग-925 ए पर भारतीय वायु सेना के विमानों के लिए बनाया गया पहला इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड है। दोनों मंत्रियों ने इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड पर कई विमानों के संचालन को देखा। उनके सामने सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान, सैन्य परिवहन विमान एएन-32 और एमआई-17 वी हेलीकॉप्टर ने इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड पर आपातकालीन लैंडिंग की।
उद्घाटन के पश्चात रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि अब देश की सामरिक जरूरतों के हिसाब से यह नया प्रयोग रणनीतिक क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने जानकारी दी कि देश में ऐसी ही 20 हवाई पट्टियां और बनाई जाएंगी। इस अवसर पर केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने अपने संबोधन में कहा कि सशस्त्र बलों के विमानों के लिए इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड को अब डेढ़ साल के बजाए 15 दिन के भीमर ही तैयार कर दिया जाएगा।
यह इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड तकरीबन तीन किलोमीटर लम्बी है। आपात स्थिति में इसका उपयोग भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों को उतारने व टेक आफ करने के लिए किया जाएगा। राष्ट्रीय राजमार्ग- 925 ए के समानान्तर ही तीन किलोमीटर लम्बी एयरस्ट्रिप तैयार की गई है। जिसका उद्देश्य यह है कि यदि यु़द्ध के समय शत्रु हमारी एयरस्ट्रिप पर हमला करता है अथवा आक्रमण करके उसे नष्ट कर देता है तब उस दौरान इस इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड का प्रयोग किया जा सकता है। विदित हो कि इस इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड से पाकिस्तान की सीमा मात्र 40 किलोमीटर की दूरी पर है। ऐसे में इसका उपयोग युद्ध के समय विशेष रुप से किया जा सकेगा। अब यहां से बड़े-बड़े युद्ध अभियान संचालित किए जा सकेंगे। अभी तक हमारे पास पाक सीमा के नजदीक ऐसी कोई एयरस्ट्रिप नहीं थी। अब इसके हो जाने से हमारी आक्रामक क्षमता में काफी बढ़ोत्तरी हो जाएगी।
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने भारतीय वायु सेना के लिए किसी भी प्रकार की आपातकालीन स्थिति में विमानों को उतारने के लिए एनएच-925 ए के सट्टा-गंधव खण्ड के तीन किलोमीटर के हिस्से पर इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड का निर्माण किया गया है। यह सुविधा भारतमाला परियोजना के तहत बखासर और सट्टा-गंधव खण्ड के नव विकसित टू-लेन पेव्ड शोल्डर का हिस्सा है। पेव्ड शोल्डर उस भाग को कहा जाता है जो हाईवे के उस हिस्से के समीप हो जहां से वाहन नियमित रुप से गुजरते हों। इसकी कुल लम्बाई 196.97 किलोमीटर है। जिसकी कुल लागत 765.52 करोड़ रुपये आयी है। इस आपातकालीन लैंडिंग पट्टी का निर्माण 43 करोड़ रुपये में किया गया है जिसमें पांच करोड़ रुपये भूमि अधिग्रहण के भी शामिल हैं। इसका निर्माण कार्य भारतीय वायु सेना और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की देखरेख में जीएचवी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा पूरा किया गया है। इसका निर्माण कार्य जुलाई 2019 में प्रारम्भ किया गया था और जनवरी 2021 में पूरा कर लिया गया था। यह परियोजना अन्तरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित बाड़मेर और जालौर जिलों के गांवों के बीच सम्पर्क सुधार का काम करेगी। यह पश्चिमी सीमा पर स्थित होने के कारण भारतीय सेना को निगरानी कार्यों में मददगार सिद्ध होगी। जिससे उसका बुनियादी ढांचा काफी मजबूत हो जाएगा।
बाडमेर के पास जिस एयरस्ट्रिप का निर्माण किया गया है वह एक छोटा सा एयरफोर्स स्टेशन समझा जा सकता है। इस एयरस्ट्रिप की खास बात यह है कि इसके दोनों तरफ पार्किंग स्थल भी तैयार किया गये हैं। जिससे लैंडिंग के बाद लड़ाकू विमानों को पार्क किया जा सके। यहां पर 25 गुणा 65 मीटर की प्लिंथ का दो मंजिला एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) टावर का निर्माण किया गया है। इसमें वायु सेना कर्मियों के लिए एक विश्राम कक्ष भी है। इस एयरस्ट्रिप के दोनों छोर पर आपात स्थिति में प्रयोग के लिए गेट की भी व्यवस्था की गई है। एयरस्ट्रिप के बगल में साढ़े तीन किलोमीटर लम्बी और सात मीटर चौड़ी सर्विस लेन भी बनाई गई है जो आपात स्थिति में विशेष भूमिका अदा करेगी। इस परियोजना में आपातकालीन लैंडिंग पट्टी के अलावा कुन्दनपुरा, सिंधानियां और बाखासर गांवों में वायु सेना एवं भारतीय सेना की जरूरतों के हिसाब से तीन हेलीपैड का निर्माण किया गया है। यह कार्य पश्चिमी अन्तरराष्ट्रीय सीमा पर भारतीय सेना और सुरक्षा नेटवर्क के लिए मजबूती का आधार होगा। दक्षिण कश्मीर के श्रीनगर-जम्मू हाईवे-44 पर भी किसी समय लड़ाकू विमान उतारे जा सकते हैं। इसके लिए 3500 मीटर लम्बी हवाई पट्टी तैयार होने वाली है। यह हवाई पट्टी बिजबिहाड़ा में है।
अब भारत भी इस श्रेणी में आ गया है। वायु सेना पाकिस्तान की सीमा से लगे राज्य गुजरात, राजस्थान व पंजाब के आठ हाईवे को रनवे लायक बनाना चाहती है। वायु सेना चाहती है कि सड़कों का हिस्सा बिल्कुल फ्लैट हो और सड़क के नीचे की जमीन धरती जैसी न हो। उस पर कोई ढलान न हो और मोटाई सड़क के बाकी हिस्सों से ज्यादा हो। ऐसी सड़कों के दोनों किनारों पर बिजली के खम्भे, हाईमास्ट अथवा मोबाइल टावर नहीं होने चाहिए तथा सड़क के डिवाइडर ऐसे हों कि उन्हें सरलता से शीघ्र हटाया जा सके। इसके अलावा सड़क के दोनों किनारों पर इतनी जगह होनी चाहिए कि वहां फाइबर प्लेन को गाइड करने के लिए पोर्टेबल लाइटिंग सिस्टम लगाए जा सकें। ऐसी हवाई पट्टियां आबादी से दूर भी हों। अगर इस तरह से राजमार्गों का विकास हुआ तो इससे वायु सेना की मारक क्षमता ही नहीं बढ़ेगी बल्कि युद्ध के समय गोला-बारूद एवं अन्य जरूरी हथियार पहुंचाने में भी आसानी हो जाएगी। स्पष्ट है कि इस तरह के रनवे बनने से भारतीय वायु सेना चीन व पाकिस्तान को युद्ध के समय मुहंतोड़ जवाब देने में सक्षम होगी।
(लेखक -डॉ0 लक्ष्मी शंकर यादव सैन्य विज्ञान विशय के प्राध्यापक रहें है)