Wednesday, November 27, 2024
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“आधुनिकता का मापदंड नशा”

आज हर न्यूज़ चैनल पर चर्चा का विषय है शाहरुख खान का बेटा आर्यन खान, जो कथित रूप से ड्रग्स लेते पकड़ गया, और कहते है उसने कुबूल भी किया की वो ड्रग्स लेता है। ये सब देखकर हर किसीके मन में सवाल उठता होगा की, इतने बड़े बाप के बेटे को नशा करने की क्या जरूरत पड़ गई होगी? कौनसा गम भूलाने के लिए नशा करता होगा? नशा इंसान को क्या देता होगा? मजा, कुछ देर के लिए सारे गमों से निजात या व्यसन के तौर पर दिमाग की खुराक होगा नशा। या शायद आजकल आधुनिकता का मापदंड बन गया है नशा।
शायद हर वर्ग जरूरत के हिसाब से नशा करता होगा। सारा खेल पैसों का लगता है जिनके पास ज़्यादा पैसे होते है वह शौक़ के तौर पर नशा करते होंगे, जिनके पास कुछ नहीं वह सारे गम भूलाने के करते होंगे और मध्यमवर्गीय यानी आम इंसान कभी-कभी टेस्ट कर लेते होंगे। पहले बड़े घरानों की पार्टियों में शराब और नानवेज परोसे जाते थे, अब ड्रग्स ने भी जगह बना ली है।
आजकल की पीढ़ी ने पार्टी को नया नाम दिया है रेव पार्टी, जिसमें सारे नशेड़ी जमा होकर ड्रग्स का लुत्फ़ उठाते है। ड्रग्स कानूनन गुनाह है लोग पकड़े भी जाते है और बड़े घर की पैदाइश पैसों के दम पर छूट भी जाते है। और जिनके पास खिलाने के लिए पैसे नहीं वह हवालात की हवा खाते है।शराब, सिगरेट, चरस, गांजा या कोकीन नशा जिस चीज़ का भी हो खतरनाक और जानलेवा ही होता है। आजकल की पीढ़ी का एक वर्ग इन सारी चीज़ों का सेवन करते नशेड़ी होता जा रहा है। कुतूहल से शुरू होने वाला ये नशा कब तलब बन जाता है पता ही नहीं चलता।फ़िल्म इन्डस्ट्री की बड़ी शख़्सीयतों की बड़ी-बड़ी पार्टियों में ये सारी चीज़े आम होती है। किसी भी सदस्य को कोर ग्रुप का हिस्सा तभी बनाया जाता है जब ये सारी चीज़े अपनाओ। ना कहने पर खुद को सब नीचा और छोटी सोच वाला ना समझ ले ये सोचकर पीने पिलाने वाली रस्म निभाते व्यसनी बन जाते होंगे। जहाँ पैसा, प्रसिद्धि, ग्लैमर है वहाँ ड्रग एब्यूज़ और शारीरिक शोषण अपनी जगह बना ही लेता है। आशास्पद युवा एक्टर्स या क्रिकेटर जब नये-नये आते है तब उनके उज्जवल भविष्य को देखने वालों को कुछ ही समय में उनकी भूलों के परिणाम स्वरूप उनकी निष्फ़लता देखने को मिलती है। अब ये बदी धीरे-धीरे हर क्षेत्र में फैल रही है। जाने अन्जाने ये नशीले पदार्थ हमारी निज़ी ज़िंदगी में प्रवेश कर चुके है। ड्रग मतलब चरस गांजा हेरोइन या शराब ही नहीं शरीर के लिए हानिकारक तत्वों वाले कैमिकल घर-घर बसेरा करने लगा है। जैसे कफ़ सिरप, नींद की गोलियां, सिगारेट के साथ विड गांजा चॉकलेट की तरह हर जगह उपलब्ध है। समाज को दीमक की तरह बर्बाद करने वाले ड्रग माफ़िया के आगे पुलिस और सरकार लाचार क्यूँ है ? क्यूँ उस पर ऊँगली उठाने वालों को अपनी ज़िंदगी से हाथ धोने पड़ रहे है। एनसीबी को सख्ती से काम लेकर कारवाई करनी होगी। ड्रग से जुड़ी हर कड़ी को बेनकाब करके समाज को इस बदी से उभारना चाहिए।सवाल ये है की एसा क्या कारण है जो आज का युवा वर्ग अवसाद से घिरकर इन सब चीज़ों के प्रति आकर्षित होते अपनी करियर और ज़िंदगी को दांव पर लगा लेते है।मादक द्रव्यों के बढ़ते हुए प्रचलन के लिए आधुनिक सभ्यताओं को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। जिसमें व्यक्ति यांत्रिक जीवन व्यतीत करता हुआ भीड़ में इस कदर खो गया है कि उसे अपने परिवार के लोगों का भी ध्यान नहीं रहता है। नशा एक अभिशाप है, एक ऐसी बुराई जिससे इंसान का अनमोल जीवन मौत के आगोश में चला जाता है एवं उसका परिवार बिखर जाता है।
इन सबके पीछे घर के हालात, माँ-बाप से कन्वरसेशन की कमी, आर्थिक समस्या, सामाजिक बोझ जैसे बहुत से हालात भी शायद ज़िम्मेदार हो। पर कोई भी समस्या खुद की ज़िंदगी से बड़ी या अहम नहीं। क्यूँ नहीं समझते की जान है तो जहान है। नशा या खुदकशी समस्या का हल नहीं ज़िंदगी जंग है लड़कर जितनी चाहिए ना की संघर्ष के आगे घुटने टेक कर खुद को बर्बाद कर लें।
(भावना ठाकर ‘भावु’ (बेंगुलूरु, कर्नाटक)