Wednesday, November 27, 2024
Breaking News
Home » लेख/विचार » बुढ़ापा पालतू कुत्ते जैसा होना चाहिए, व्यंग्य नहीं एक हकीकत

बुढ़ापा पालतू कुत्ते जैसा होना चाहिए, व्यंग्य नहीं एक हकीकत

किसी ने मुझसे पूछा, बुढ़ापा कैसा होना चाहिए
मैंने कहा पालतू कुत्ते जैसा..वह नाराज़ हो गए बोले वो भला कैसे? ज़रा समझाओ, मैंने कुछ ऐसे समझाया क्या कुछ गलत कहा?
सोचो आजकल लोग शौक़िया तौर पर और खुद को प्राणी प्रेमी समझते कुत्ते पाल लेते है। ना साहब सिर्फ़ पाल नहीं लेते…खुद उनके नौकर हो जाते है। क्या ठाठ होते है उन कुत्तों के। मालिक का सबसे दुलारा, लाड़ला अपने बच्चों से भी ज़्यादा अज़िज और प्राण से प्यारा होता है। असीम प्यार लूटाते मालिक अपने हाथों से गोद में बिठाकर बड़े चाव से खिलाते है, दूध पिलाते है। एक चीज़ नहीं खाता तो दूसरी मंगवाते है।
सोफ़े पर खिलाते है, रजाई में साथ सुलाते है, कुत्ते के पसंदीदा बिस्कुट और चाहे कितना भी महंगा हो नॉनवेज भी खिलाते है। सुबह शाम की सैर करवाते है सोचो अरबपति मालिक खुद टट्टी करवाने ले जाते है। और कहीं भी जाना हो फोर व्हीलर की एक सीट टफ़ी, ब्राउनी, चुन्नी, या लिओ के लिए रिजर्व रहती है। कोई-कोई तो हर रोज़ नये कपड़े भी पहचानते है।आहाआआ क्या सुगंधित शैम्पू से मालिक बड़ी नर्मी से नहलाते है, मखमली तौलिये से पोंछकर बाल संवारते है, धूप में बिठाते है। बिमार होने पर हाए मेरे बच्चे को क्या हुआ कहते आधे मालिक भी बिमार हो जाते है और पल भर में डाक्टर भी हाज़िर हो जाते है।
अरे हद तो तब हुई एक जगह पर हमने ऐसे भी देखा मालिक ने नया घर लिया और नई गाड़ी ली, तो जैसे बेटियों से उनके हाथों और पैरों के निशान कुमकुम में घोलकर घर की चौखट या गाड़ी के बोनट पर लेकर शगुन करवाते है वैसे पालतू कुत्ते के पैरों पर कुमकुम लगाकर शगुन करवाया।
बच्चा अगर घर खराब करें या यहाँ-वहाँ कूदे तो डांट पड़ती है, पर कुत्ते के बाल घर में चारों ओर उड़े या कुत्ता यहाँ-वहाँ कूदे तो अरे बेटा ऐसा नहीं करते बोलकर प्यार से पूचकारते है। और तो और पालतू कुत्ते की मौत पर फूट फूटकर रोते है, भावपूर्वक दफ़नाते है और उसकी आत्मा की शांति के लिए पूजा पाठ और होम हवन तक करवाते है।
अब ये बताईये कितने बुढ़ों को ये सारी लग्ज़रिस नसीब होती है? जो इन पालतू कुत्तों को मिलती है बहुत कम…अगर इस तरह से बड़े बुज़ुर्गो को रखा जाए तो उम्र में दस साल का इज़ाफ़ा हो जाए। बुढ़ें बेचारे पड़े रहते है 10/10 की अपनी रूम में खांसते। न कोई देखने वाला न पूछने वाला होता है, न पसंद का खाना, न समय पर दवाई, न कोई खिलाने वाला, न नहलाने वाला, न कोई घुमाने ले जाने वाला होता है। नांहि कोई पसंद पूछने वाला होता है कि क्या आपको भी कुछ चाहिए।
माँ-बाप की हालत कुत्तों जैसी होती है, और कुत्ते बच्चों की तरह शान से पल रहे होते है। वृध्धाश्रम इसकी ही देन है। काश की जितनी शिद्दत से पालतू जानवरों पर लोग प्यार जताते है उतनी शिद्दत से जन्म देने वाले माँ बाप को चाहते, और ऐसे ही हर जरूरत का ख़याल रखते तो हर माँ बाप की पिछली ज़िंदगी सुकून से कटती और समाज के कलंक समान वृध्धाश्रम का उद्भव ही न होता। अब समझे क्यूँ बुढ़ापा पालतू कुत्ते जैसा होना चाहिए। कुत्ते जैसी ख़ातिरदारी से जो बुढ़ापा कटे तो हर बच्चों पर माँ बाप के मुँह से आशिर्वाद की नेमत बरसे।
भावना ठाकर ‘भावु’ (बेंगलूरु, कर्नाटक)