महंगा साबित ना हो पार्टी हाईकमान का यह फैसला,पहले भी क्षत्रिय उम्मीदवार पर लगा चुकी है दां
सिकंदराराऊ।विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने में अब चंद दिन ही बाकी रह गए हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियां अपने अपने तरकस में तीर सजाने में लगी हैं। प्रत्याशियों को लेकर मंथन चल रहा है। वहीं दावेदारी का दौर भी जारी है। ऐसे में बहुजन समाज पार्टी इस बार एक क्षत्रिय पर दांव लगाने जा रही है। क्या इस बार क्षत्रिय उम्मीदवार के सहारे बसपा की सिकंदराराऊ विधानसभा सीट पर अपना परचम फहराने की मंशा पूरी हो पाएगी। अभी तक बसपा सिर्फ एक बार ही इस सीट पर जीत दर्ज कर सकी है। हालांकि इससे पहले भी बसपा पूर्व विधायक सुरेश प्रताप गांधी के रूप में क्षत्रिय उम्मीदवार पर दाव लगा चुकी है। तब नाकामी हाथ लगी थी।सिकंदराराऊ विधानसभा सीट को क्षत्रिय बाहुल्य सीट के रूप में जाना जाता है। जहां अधिकांशतः क्षत्रिय अपनी जीत का डंका बजाते रहे हैं। सिकंदराराऊ विधानसभा सीट के मतदाताओं का मिजाज भी अनूठा रहा है। जो हर बार अपना विधायक बदलते रहते हैं। पिछले तीन दशक के परिणामों पर गौर करें तो 1991 में जनता दल से सुरेश प्रताप गांधी, 1993 में सपा बसपा गठबंधन से सपा प्रत्याशी अमर सिंह यादव, 1996 में भाजपा के यशपाल सिंह चौहान ,2002 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अमर सिंह यादव, 2007 में दूसरी बार भाजपा के यशपाल सिंह चौहान तथा 2012 में बसपा उम्मीदवार रामवीर उपाध्याय और 2017 में भाजपा से वीरेंद्र सिंह राणा ने जीत दर्ज की है। लेकिन इस दौरान कोई भी लगातार दूसरी बार सिकंदराराऊ का विधायक नहीं बन सका। हालांकि इससे पहले सुरेश प्रताप गांधी ने 1985, 1989 और 1991 में जनता दल से जीत की हैट्रिक बनाई थी। उनसे पहले भी 1977 में नेम सिंह चौहान, 1980 में पुष्पा चौहान विधायक बनी थीं।इसलिए सभी दलों की नजर क्षत्रिय वोटों पर रहती है। सपा और भाजपा में भी क्षत्रिय समाज के दावेदारों की टिकट के लिए लाइन लगी हुई है।
क्षत्रिय वोटों को ध्यान में रखते हुए बसपा ने इस बार अपनी परंपरा के अनुसार सबसे पहले क्षत्रिय समाज से अवधेश सिंह को उम्मीदवार घोषित कर दिया है। लेकिन उनके लिए क्षत्रिय वोटों को समेट पाना आसान काम नहीं होगा। क्योंकि क्षत्रिय समाज भाजपा का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है, जो इस समय पूरी तरह भाजपा से जुड़ा हुआ है । चुनाव में क्षत्रिय चेहरा दिखा कर बसपा भाजपा के परंपरागत वोट बैंक में किस हद तक सेंधमारी कर पाएगी । यह तो आने वाला समय ही बताएगा क्योंकि बसपा पहले भी पूर्व विधायक सुरेश प्रताप गांधी के रूप में क्षत्रिय समाज के सहारे अपनी किस्मत आजमा चुकी है। लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगी थी और तब बसपा उम्मीदवार के रूप में पूर्व विधायक सुरेश प्रताप गांधी को हार का मुंह देखना पड़ा था। भाजपा से भी क्षत्रिय समाज से ही उम्मीदवार आने की संभावना है। ऐसी स्थिति में बसपा को क्षत्रिय वोटों के लिए दांव खेलना महंगा भी पड़ सकता है।
दूसरे नजरिए से देखें तो सिकंदराराऊ सीट बसपा के लिए कभी मुनाफे का सौदा नहीं रही है। बसपा को हर बार मुंह की ही खानी पड़ी है। सिर्फ 2012 में ही समाजवादी पार्टी से कड़े और सीधे मुकाबले में तत्कालीन ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय बसपा उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल कर सके थे। उनके बाद 2017 के चुनाव में भाजपा ने बसपा को पटखनी दे दी थी।