वैधानिक मापनविधा को गैर-अपराधी बनाने की ज़रूरत – स्वसत्यापन, स्वप्रमाणन, स्वनियमन को बढ़ावा देने की ज़रूरत
डिजिटल भारत में सरकारी विभागों के मामलों में नियमों, प्रक्रियात्मक पहलुओं, को गैर-अपराधिक करने और आवेदक़ के शिकायतों का निवारण संवेदनशील तरीके से करने की ज़रूरत – एड किशन भावनानी
भारत बड़ी तेज़ी के साथ डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ते हुए डिजिटलाइजेशन की आंधी में, संकरी गलियों रूपी मानव हस्तकार्य याने हैंडवर्क को विशाल चौड़े रास्तों याने डिजिटलाइजेशन की ओर लाया जा सके ताकि सब काम तेजी से हो अर्थात एकसंकरी गली विशाल रोडरस्ते का स्थान लेकर हजारों लाखों काम एक साथ हो, यह है हमारे नए भारत का रणनीतिक रोड मैप का एक हिस्सा!!! साथियों इस डिजिटलाइजेशन में रहते हुए बात अगर हम जीवनयापन के लिए व्यापार, व्यवसाय या कोई गैर सरकारी निजी काम करने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों की प्रक्रियाओं के अनुपालन की करें तो करीब -करीब हर इस क्षेत्र से जुड़े नागरिक को अनुभव होगा के सरकारी ऑफिसों के कितने चक्कर लगाने पड़ते हैं!!! हर विभाग के एक छोटे से छोटे आवेदन कागज से लेकर उसके प्रमाणपत्र पाने तक का कितना लंबा समय होता है!!! यह हम सबको अनुभव है! अब ज़रूरत है इस प्रोटोकॉल, नियमावली नियमों विनियमों को कम करने की या समाप्त करने की!! अब समय आ गया है कि छोटे-छोटे वैधानिक मापनविधा को अपराध रहित बनाया जाए और इसके स्थान पर स्वसत्यापन स्वप्रमाणिन और स्वनियमन को बढ़ावा हर क्षेत्र में सरकारी विभागों में दिया जाए। साथियों बात अगर हम इस क्रियात्मक प्रोटोकॉल या नियमावली की करें तो हर क्षेत्र के सरकारी बाबू के द्वारा इस प्राथमिक स्तरपर ही प्रक्रियात्मक नियमावली का हवाला देकर प्रक्रियात्मक, नियमात्मक, आवेदन फामरमेट, टिकट, इतने दिन इस टेबल पर, इतने टाइमपर, फ़िर यह सब करने पर उन कागजों का सत्यापन, प्रमाणन, हलफनामा, अनेक नियम नहीं करने पर अपराधिक संज्ञान का हवाला और हलफनामा इत्यादि से अब डिजिटल इंडिया में नागरिक बहुत परेशान हो चुके है। अब केंद्र, राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को इस तरह के अनुपालन बोझ को कम करने या हटाने का स्वतः संज्ञान सरकारों द्वारा लेना ज़रूरी है। साथियों बात अगर हम करीब 1500 अनुपयोगी कानूनों को रद्द करने और करीब 25000 से अधिक अनुपालनों को कम करने की करें तो हमने कुछ साल पहले देखे थे कि संसद से अनेक अनुपयोगी कानून हटाए गए थे और अनेक मामलों में एक कानून बनाकर लागू किया गया था जिसका जीता जागता उदाहरण जीएसटी है!!! इसी तर्ज पर अब नियमों विनियमों के अनुपालनों के बोझ को कम किया जाए या हटाया जाए! अब इनसे लोगों को बांधना उचित नहीं है। नियमों विनियमों प्रक्रियाओं का हवाला देकर शिकायतकर्ता की शिकायतों का समाधान रोकना उचित नहीं! अब संवेदनशीलता व सहिष्णुता का उपयोग अधिक ज़रूरी है, क्योंकि अब डिजिटल इंडिया है!!! साथियों बात अगर हम दिनांक 22 दिसंबर 2021 को वाणिज्य मंत्री द्वारा एक कार्यक्रम को संबोधन करने की करें तो वाणिज्य मंत्रालय की पीआईबी के अनुसार, वैधानिक मापनविद्या को गैर-अपराधी बनाने की जरूरत पर उन्होंने उद्योग क्षेत्र के प्रतिभागियों से प्रक्रियाओं में सुधार और उन्नति की मांग करते रहने का अनुरोध किया। उन्होंने स्व-सत्यापन, स्व-प्रमाणन और स्व-नियमन को बढ़ावा देने का भी आह्वाहन किया। उन्होंने आगे कहा कि अब उचित समय आ गया है कि नागरिकों की ईमानदारी पर भरोसा करके अनुपालन प्रणाली को बनाई जाए। पूरे दिन चलने वाली इस कार्यशाला को तीन समानांतर सत्रों में बांटा गया था। इनमें पहले सत्र की विषयवस्तु सरकारी विभागोंके बीच व्यवधान को समाप्त करना और तालमेल बढ़ाना था। वहीं, दूसरा सत्र नागरिक सेवाओं के कुशल वितरण के लिए राष्ट्रीय एकल खिड़की की कार्यशीलता की विषयवस्तु पर आधारित था। सबसे आखिर में तीसरे सत्र को प्रभावी शिकायत निवारण की विषयवस्तु पर आयोजित किया गया। उन्होंने कहा कि अनुपालन जरूरतों को डिजाइन करते समय सभी हितधारकों, विशेष रूप से उपयोगकर्ताओं की प्रतिक्रिया को ध्यान में रखने के साथ-साथ जमीनी वास्तविकता पर भी हमेशा विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने नीति निर्माताओं से उन अनुपालनों के विवरण को पता लगाने के लिए क्राउड सोर्सिंग का उपयोग करने का अनुरोध किया, जो बोझिल साबित हो रहे थे और उन्हें युक्तिसंगत बनाने पर काम किया गया। भारी सुधारों का आह्वाहन करते हुए उन्होंने कहा कि नए संरचनाओं को लोगों से बांधना नहीं चाहिए। हितधारकों के बीच सूचना की विषमता के समाधान की जरूरत को रेखांकित करते हुए, अनुपालन बोझ को कम करने में अब तक प्राप्त लाभ को एकीकृत करने का आह्वाहन किया। इस कार्यशाला के उद्घाटन के अवसर पर उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग के सचिव ने कहा कि शिकायत निवारण प्रणाली को मानवीय और संवेदनशील होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि जिन मामलों में नियमों और प्रक्रियात्मक पहलुओं के कारण शिकायतों का पूरी तरह से समाधान नहीं किया जा सकता है, उनके बारे में शिकायतकर्ता को संवेदनशील तरीके से अवगत कराया जाना चाहिए। सरकारी विभाग मानवीयता की भावना के साथ वास्तविक शिकायतों को संभाल सकते हैं। मंत्री ने कहा कि इससे जब स्वीकृति व अनुमति के लिए आवेदन करने की बात हो तो दोहराए जाने वाली प्रक्रियाओं को युक्तिसंगत बनाया जा सके और खाई व अतिरेकताओं को समाप्त किया जा सके। उन्होंने व्यापार और व्यक्तियों के लिए आधार, पैन और टैन इत्यादि जैसे मौजूदा कई पहचान संख्याओं को मिलाकर एक एकल पहचान संख्या बनाने का आह्वाहन किया, जिससे सेवाओं का वितरण आसानी और तेजी से हो सके। तकनीक की अनंत संभावनाओं पर उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी की सहायता करनी चाहिए व जीवन जीने व व्यापार करने में सहजता को बढ़ावा देने के लिए पहल करने के साथ अनुपालन प्रणाली को और ज्यादा जटिल नहीं बनाना चाहिए। उन्होंने भारत के सामने आने वाली समस्याओं के स्वदेशी समाधान को विकसित करने की जरूरत का भी उल्लेख किया। उन्होंने राजनीतिक नेतृत्व, नौकरशाही और उद्योग नेतृत्व से अनुरोध किया कि वे अनुपालन बोझ को कम करने के लिए सादगी के सिद्धांतों व सेवाओं के समय पर वितरण से संबंधित अपनी पहल पर ध्यान केंद्रित करें। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि डिजिटल भारत में अनुपालन बोझ को कम करने सुधारों की ज़रूरत है तथा वैधानिक मापनविधा को गैर-अपराधी बनाने की ज़रूरत एवं स्वसत्यापन स्वप्रमाणन स्वनियमन को बढ़ावा देने की ज़रूरत है तथा डिजिटल भारत में सरकारी विभागों के मामलों में नियमों, प्रक्रियात्मक पहलुओं को गैर-अपराधिक करने और आवेदक के शिकायतों का निपटान संवेदनशीलता सहिष्णुता तरीके से करने की ज़रूरत है।
-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र