एक वीडियो देखा था, एक ताकतवर मुर्गा एक कौए पर चढ़ बैठा था और उसको अपनी चोंच से जोर जोर से वार कर उसे घायल कर दिया था और कौवों का झुंड उसके ऊपर और आसपास उड़ कर कांव कांव कर रहे थे। कोई भी कौवा उसे बचाने के लिए कुछ ठोस कदम नहीं उठा रहे थे। सिर्फ उड़ा उड़ करके शोर मचाते हुए उस कौए को मरते हुए देख रहे थे। अगर सभी कौवे एक साथ उस अकेले हमलावर पर घात करते तो शायद उस कौवे को बचा पाते। अगर नहीं भी बचा पाते तो अपनी ताकत का संदेश तो उस हमलावर मुर्गे को दे ही सकते थे। कांव कांव करके उड़ने से सिर्फ शोर हो सकता हैं बचाव नहीं।
क्या हम उन कौओं की जमात से नहीं हैं? जो एक कौए पर होते हमले पर उड़ा उड़ के का का करते हैं लेकिन उसे बचाने का कोई प्रयोजन नहीं कर पाते हैं। हमलावर एक ही हैं और इतने सारे कौएं, एक साथ हमला करदे तो कितना भी ताकतवर हो वह भाग जायेगा।
क्या हम भी अपनी समस्याओं के बारे में यहीं नहीं कर रहे हैं क्या? राजकीय अन्याय भी होता हे तो हम सोशल मीडिया पर पोस्ट कर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुप हो जाते हैं। या अपने दोस्तों के साथ उग्र चर्चा कर चुप हो जातें हैं। सारी जल्लाहट कांव कांव जैसी ही होती लगती हैं।
ऐसे ही धार्मिक मामलों में भ होता हैं। कोई भी हमारे धर्म या धर्मस्थानों के बारे में कुछ भी उलजलूल बोल जाता हैं और हम कांव कांव करके रह जाते हैं कोई ठोस हल निकालने के बजाए सिर्फ कुछ ओर मुश्किलें पैदा कर लेते हैं। जिसमें शासक या विरुद्ध पक्ष दोनों ही अपनी अपनी रोटियां सेक शाम को साथ में बैठ हम– प्रजा– को कैसे उल्लू बनाया की चर्चा के साथ खुशी खुशी पार्टी में मजे करते हैं।
विदेशों में ऐसा नहीं हैं उन लोगों के पास सचोट हल हैं, एक दृष्टि हैं। कानून अमूमन अपने जैसे होने के बावजूद हमें उन से कम न्याय मिलता हैं और हम बस बातें करके रह जातें हैं। जो न्याय मिलता ही नहीं या सालों साल मुकदमें चलने के बाद शायद ही सही फैंसला हो पाए।हमारा न्याय तंत्र भी कभी कभी अजीब से फैंसले दे देते हैं जो वास्तविकता से कोसों दूर होते हैं। और हम…..? कहां हैं हमारे लिए न्याय,कहां हैं जहां कहते हैं, गवर्नमेंट ऑफ द पीपल, बाय द पीपल एंड गवर्नमेंट फॉर द पीपल। न हमारा, न हमारे लिए और न ही हमारे द्वारा कुछ भी होता हैं। चुनावों में मत की मांग करने वाले ही चुनावों के बाद हमारी कोई भी मांग या कोई फेवर के बारे में सोचने के बजाय अपने मतलबी फैसलों से अपने ही लोगों को फायदा करवाने वाले कानून बना उनको फायदा पहुंचने की पूरी कोशिश करते हैं।
और हम सिर्फ चर्चायें कर लेते हैं।अपना हक्क़ पाना या अपने हक्क की रक्षा करके ही हम अपने स्व की रक्षा कर सकते हैं।
आंतर राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में देखें तो कई सालों से हम पड़ोसी देशों की ज्यादतियां और भभकियों को सहते रहे , उनकी मनमानियों के बावजूद हम सिर्फ आवाज उठा के चुप होते रहे तो क्या पाया था? जब तक उन्हे मुहतोड़ जवाब नहीं दिया वह हमे आंखे दिखाते रहें लेकिन बांसुरी बजाने वाले कृष्ण के सुदर्शन चक्र को देख उन्हे भी हमारी ताकत का पता लग ही गया। तब कहीं आज स्वाभिमान से दुनियां में देश का सर ऊंचा कर पाएं हैं।अपना भी नाम दुनियां में हुआ हैं। पहले हम न्यूक्लियर ताकतों का वास्ता दे चुप हो जाते रहे लेकिन आज बात ओर हैं। जो आंतर राष्ट्रीय नीति आज अपना रहें हैं वह कुछ साल पहले अपनाई होती तो सभी मोर्चों पर सक्षम भारत कुछ सालों पहले ही उभर आता। अपनी नीतियों( और उनकी गलतियों) के परिणाम स्वरूप पाकिस्तान की जो आंतर राष्ट्रीय हालत हैं उस से कोई भी अनजान नहीं हैं ।चीन की भी आंख में आंख डाल कर जवाब दिया और अपनी ताकत का परिचय दिया गया तब वह आज शांति से रास्ता निकलने की बात कर रहा हैं। दुनियां के देशों के साथ आज जो हमारे देश का सामंज्यस हैं वो पहले कभी नहीं था ।ये एक बहुत बड़ी उपलब्धि के सिवा कुछ नहीं हैं, अपने अस्तित्व का गौरवान्वित चिन्ह हैं। स्व, जिसे मार के जीना, जीना नहीं हैं। नहीं हम को लल्लू हो के जीना हैं और न ही हमे कौवों की जमात बनके जीना हैं।अगर हम जीने की सही राह नहीं अपनाएंगे तो अपने साथ जो भी घटता हैं उसकी पूरी जिम्मेवारी हमारी अपनी होगी।
जयश्री बिरमी, अहमदाबाद