लहलहाती, तन को जलाती गर्मी को मात देने जब आसमान से झमाझम बारिश बरसती है तब नीरस मन की कोरी किताब से भी रोमांटिक पंक्तियाँ जन्म लेने लगती है। कौन अछूता रह सकता है इस भीगे-भीगे मौसम की आह्लादित शीतलता से।
बारिश की छम-छम बूँदों की बौछार से लयबद्ध रव सुनाई देते ही खिलखिलाती तुम्हारी हंसी की सरगम याद आती है, भीग जाता हूँ बिना बारिश छुए भी जब काली अंधेरी बरसती रात में तुम्हारी बेपनाह याद आती है। जहाँ जाती हो सराबोर हर शै हो जाती है, साथ में हंसी की बारिश लिए जो फिरती हो।
बारिश के साथ हर इंसान के एहसास जुड़े होते है। किसी भी क्रिया को उपमा देनी हो तो बारिश से जुड़े हर अल्फाज़ कवियों के पसंदीदा होते है। तभी तो किसी भी श्रृंगार रस में बारिश सिरमौर है।
पहली बारिश हर इंसान के भीतर पड़े कितने एहसास जगा जाती है। किसीको दूर बसी प्रियतमा की याद आती है, तो किसीको बूँदाबाँदी की अठखेलियों पर मौसम रंगीन होते ही गर्म भुट्टे की लज्ज़त याद आ जाती है। बारिश की फुहार में भीगते गर्मा गर्म भुट्टे की लज्ज़त लेते सड़क पर टहलना रोमांच से कम नहीं। साथ में यार दोस्त या महबूब हो तो आहाआआ क्या बात सोने पे सुहागा।
ग्रीष्म की गर्मी से झुलसते झुर्रियों में बदलती वसुधा के सीने पर जब आसमान के आँचल से अमृत सी शीत धारा के पहले आमद पर मानों जन्मों की प्यासी वसुधा अपने कण-कण में बूँदों को ऐसे सहजती है जैसे बिरहा की मारी कोई प्रेमिका प्रेमी की साँस-साँस समाती है। मिट्टी की सोंधी सी खुशबू नासिका को तरबतर कर जाती है, फिर धुँआधार बरसती बारिश जब जमकर बरसती है तब बच्चों से लेकर बड़े बुढ़े हर कोई छत पर चढ़कर बारिश में भीगने का आस्वाद लेते तप्त झुलसते, पसीजते तन को आह्लादित करते झूम उठते है।
काले घनेरे बादलों को देख मोर अपने पंख फैलाते नृत्य करते आह्वान देते है, तो तड़ीत की गड़गड़ाहट संग ताल मिलाती कायनात की हर शै में ताज़गी भर जाती है। बारिश की नमी से नहाते खलिहानों की मिट्टी में अलसाए पड़े बीज अंगड़ाई लेकर पनपते खिल उठते है और चंद दिनों में धानी सी फ़सलें किसानों की किस्मत बदल देती है। हरसू व्याप्त हरियाली आँखों को ठंडक पहुँचाती है। तभी तो भले ही हर मौसम कुदरत की ओर से अनमोल उपहार है पर बरसात का मौसम हर मन अज़िज है।
भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर