उदयपुर में हुई कन्हैयालाल की हत्या एक-एक नागरिक के लिए चिंतनीय और शोचनीय है। यहाँ कोई सुरक्षित नहीं, कुछ भी बोलने से पहले, स्टेटस डालने से पहले या डीपी लगाने से पहले सौ बार सोचिए। कब किसकी मति खराब होगी कुछ नहीं कह सकते। आख़िर क्यूँ इंसान पशु की भाँति व्यवहार करने लगा है? किसीको जान से मार देना आजकल चींटी मसलने बराबर हो गया है। किसीकी जान लेने से पहले इतना जरूर सोचिए की आप सिर्फ़ एक इंसान का कत्ल नहीं करते, पीछे बचे परिवार को भी जीते जी मार देते हो। परिवार में एक ही कमाने वाला होता है किसीका बेटा, किसीका पति, किसीका पिता होता है। एक को मार देने से कितने लोग अनाथ हो जाते है।
धर्म को बचाने के लिए इंसान को मत मारिए इंसानियत ही धर्म है जब इंसानियत ही आपके भीतर नहीं बचती तो धर्म को आपने समझा ही नहीं।
धर्म जितना इंसान को जानवर बनाता है उतना तो शायद दारू भी नहीं बनाती।धर्म का नशा पाक होना चाहिए नहीं की वहसियत भरा। जेहाद छेड़ो तो अपनेपन की,भाईचारे की। नफ़रत के बीज से नफ़रत ही पैदा होगी।
स्वामी विवेकानंद के अनुसार धर्म लोगों को संगठित करने का कार्य करता है और भाईचारे की भावना के साथ समाज को समग्र विकास के पथ पर अग्रेसर करता है। सामाजिक एकता को बढ़ाना विश्व के सभी धर्मों की स्थापना का मूल उद्देश्य है। महात्मा बुद्ध ने भी धर्मंम शरणं गच्छामि, संघम शरणं गच्छामि का संदेश दिया। अर्थात् उन्होंने धर्म के शरण में और इस प्रकार संघ के शरण में अर्थात संगठित होने का आह्वान किया जो कि ये संदेश आपसी एकता एवं भाईचारे को परिभाषित करता है। पर कहाँ है आज एकता, भाईचारा और अपनापन जोकि यही धर्म की परिभाषा है।
चलो मान लिया आपको आपके आराध्य प्यारे है पर किसके सपने में आकर ईश्वर या अल्लाह ने कहा की कत्ले-आम करो, लड़कीयों का जबरदस्ती धर्मं परिवर्तन करवा कर शादी करो, गाय की हत्या करो, धार्मिक त्यौहार पर एक जीव की हत्या करके उसे पकाकर आरोगना ये कहाँ का धर्मं कहलाता है। धर्मांधता की हद है इंसान इंसान ना रह कर क्या बन जाता है।
दारु पी कर इंसान सच बोलता है, भावुक होता है, शांति से सो जाता है पर धर्म का नशा खूंखार है। उस नशे ने इंसान को कट्टरवादी बना दिया है इंसान में इंसान नहीं लोग मज़हब ढूँढने लगे है। गाते तो है सब ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान। अरे जब ईश्वर अल्लाह एक है तो उनके नाम पर इतनी नफ़रत क्यूँ।
क्यूँ एक दूसरे को जानने समझने की बजाय दुश्मन बने बैठे है। बहुत से हिन्दुओं को श्रद्धा पूर्वक दरगाह पर जाते देखा है, तो बहुत से मुस्लिमों को सादर मंदिर में सर झुकाते हुए भी देखा है। ये धर्म के नाम पर अपना उल्लू सीधा करने वालों का एक समूह होता है जिनकी मानसिकता सिर्फ़ देश में अशांति फैलाने वाली होती है। बिना सोचे समझे धर्म को कूद पड़ते है हाथ में दिखावे की मशाल लेकर की हम रक्षक है धर्म के। कौन से ग्रंथ में ये सब लिखा है जो धर्म के नाम पर आज हो रहा है। हकिकत में इस धर्मं के चौले के पिछे भक्षक छुपे है इंसानियत के।
ईश्वरीय धर्म को हटाकर उसकी जगह पर विराजमान हो जाने वाले नए क्रांतिकारी अपने आप धर्म के ठेकेदार बनकर बैठ गए है जिसका दुष्परिणाम पूरे समाज को भुगतना पड़ रहा है। देखते है ये धर्मांधता की आँधी और कितनी बर्बादी को न्यौता देती है। “मज़हबी मोहब्बत भी अजीब है जो मज़हब अहिंसा परमो धर्म का संदेश देता है, उसी धर्म को समझे बिना इंसान हिंसा का मार्ग अपनाता है”
भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर