⇒आस्था के नाम पर ब्रज में हो रही पैसे की बरसात
मथुराः श्याम बिहारी भार्गव। कान्हा और गाय के प्रति भक्ति में बंधे देश दुनिया के सनातनी कान्हा की नगरी में खिंचे चले आ रहे हैं। स्थिति यह है कि मठ मंदिरों में भीड़ इतनी उमड़ रही है कि इंतजाम अब छोटे पड गए हैं, इन्हें बडा किया जा रहा है। श्रद्धालु आएंगे तो पैसा भी आता है। इसके बाद भी ब्रज में छुट्टा गोवंश मारा-मारा फिर रहा है और किसानों की सर्द रातें खेत की मेड़ पर गुजर रही हैं। प्रख्यात कहानीकार प्रेमचंद के हल्कू की सर्द रातें खेत की रखवाली करते हुए खुले आसमान के नीचे कट रही हैं। ब्रज में ऐसे मंदिरों की संख्या बहुतायत में है जिन पर महीने में करोड़ों रूपये का दान आता है और अरबों रुपये की संपत्ति मंदिरों से जुड़ी है। इस दान के पीछे श्रद्धालुओं की कान्हा और उसकी गाय से जुड़ी आस्था ही है जो उन्हें यहां खींच कर लाती है। इसके बावजूद इन अरबों के दान में से कान्हा की गायों के लिए फूटी कौड़ी नहीं निकल रही। बेसहारा पशु फसलों को उजाड़ते हैं तो किसान कभी कभार साहब के दर तक पहुंच कर हो हल्ला मचाते हैं, हर बार उन्हें इस आश्वासन के साथ वापस भेज दिया जाता है कि गौशाला खुलवा दी गई हैं, व्यवस्था दुरुस्त हो रही हैं। यमुना प्रदूषण पर मुखर होकर आंदोलन करने वाले समाजसेवी और भक्त गाय के नाम पर मौन साध गये हैं। यमुना बचाओ आंदोलन से जुड़े रहे लोगों में से कई का मानना है कि यमुना के नाम पर मोटा चंदा मिलता है लेकिन खर्च कोड़ी का नहीं है। जबकि गाय के लिए आगे आएंगे तो खर्च करना पडेगा। ब्रज में परंपरा रही है कि जो लोग मठ मंदिरों से जुड़े हैं वह श्रद्धालुओं से गाय की सेवा के नाम पर दान मांगते हैं। कई ऐसी संस्थाएं भी काम कर रही हैं जो बाकायदा गाय और गौशाला के नाम पर चंदा प्राप्त करती हैं।
छुट्टा गोवंश से अपनी फसल बचाने के लिए किसान खेतों पर कटीले तार लगा रहे हैं। यहां तक कि तारबंदी कर रात के समय इन में करंट छोड दिया जाता है। इसे झटका मशीन का नाम दिया गया है। खेती किसानी से जुडे अधिकारी भी कह रहे हैं, किसान झटका मशीन लगाएं। इसमें मौत नहीं होती लेकिन यह झटका जोर का होता है। अब तो जिम्मेदार यहां तक कहने लगे है। गौ वंश को किसान छोडते हैं किसान ही भुगतेंगे।