लेकिन कभी कभी निरंकुश स्वतंत्रता अराजकता को जन्म देती है
बात सिर्फ आत्मिक संतुष्टि की होनी चाहिए लेकिन उसके लिए ज्ञान बहुत जरूरी है क्योंकि अज्ञानी स्त्री ये नहीं समझ पाती की सच में उसकी संतुष्टि का साधन क्या है ।मंजिल तक पहुंचना तो वो जानती है लेकिन पैरों में कीचड़ लगाकर जाना है या पैरों को साफ करके ये उसे अध्यात्म और ज्ञान सिखाता है।चरित्र का निर्माण कोई मापदंड के अनुसार नहीं होना चाहिए, मापदंड अगर लिया जाए तो सभी द्रोपदी का अनुसरण करके सती बन जाएं,,,, सीता के चरित्र को अपनाकर जीवन को संघर्ष और त्याग में व्यतीत करें। सीता की उपमा देकर आज पुरुष स्त्री को उनकी मर्यादा को याद दिलाता है लेकिन खुद कितना चरित्रवान है ये भूल जाता है।
बात सिर्फ इतनी की इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाले मनुष्य को सिर्फ तीन व्यक्तियों का ऋणी होना चाहिए – ,,, माता, पिता तथा गुरु उनके अलावा तीसरा कोई नहीं जिसका उसके निजी जीवन को बदलने का अधिकार हो, और इनकी भी दखलंदाजी एक आयु और सीमा तक होनी चाहिए, बाकी जितने लोग उसे अनुशासित करते हैं सिर्फ अपनी खुशी और स्वार्थ के लिए करते हैं।
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