Tuesday, April 22, 2025
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लेख/विचार

2024 का जनादेशः मायने अनेक

लोकसभा चुनाव का शोर थम गया है। अब नतीजों की समीक्षा का दौर है। सभी दलों के नेता अपनी-अपनी खामियां और खूबियों का आकलन कर रहे हैं। मगर आम आदमी के नज़रिये से देखा जाए तो यह चुनाव कई मायनों में निचले से निचले स्तर पर जाता दिखा। तमाम दलों के नेता उनके समर्थक बार-बार अपनी जुबान से जहर उगलते रहे। जाति, धर्म, राम मंदिर, आरक्षण, मुस्लिम आरक्षण, संविधान, महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, ईवीएम, किसान से लेकर वो जिहाद, मंगलसूत्र, मुजरा, कानून व्यवस्था, बाहुबली, मिट्टी में मिल गये माफिया, मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाएं सब छाये रहे। एनडीए सरकार की सभी योजनाओं में से प्रति व्यक्ति 5 किलो मुफ्त अनाज सबसे प्रभावी और दूरगामी प्रतीत हुआ। जाति या समुदाय से इतर दूरदराज के इलाकों में जितने भी लोगों से बात हुई, उनमें से अधिकांश ने माना कि उन्हें मुफ्त अनाज मिला है। जरूरतमंदों ने इसके लिए सरकार की खूब सराहना की। इसी प्रकार प्रधानमंत्री आवास, आयुष्मान स्वास्थ्य योजना का फायदा उठाने वाला एक बड़ा वर्ग बीजेपी की हौसला अफजाई करता रहा। गुलाम कश्मीर, पाकिस्तान और चीन की भी खूब बात हुई।

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संघ के प्रति कम होता मोदी का समर्पण भाव

लोकसभा चुनाव में बीजेपी की उत्तर प्रदेश में जो फजीहत हुई है, उसका ठीकरा एक-दूसरे के सिर फोड़ने की राजनीति के चलते राज्य में बीजेपी नेताओं के बीच आपसी वैमस्यता और गुटबाजी बढ़ती जा रही है। गुटबाजी का आलम यह है कि यह किसी एक स्तर पर नहीं, नीचे से लेकर ऊपर तक तो दिखाई पड़ ही रही है, इसके अलावा इसकी तपिश से दिल्ली भी नहीं बच पाया है। बल्कि राजनीति के कई जानकार और पार्टी से जमीनी स्तर से जुड़े नेता और कार्यकर्ता भी इस बात से आहत हैं कि अबकी से टिकट वितरण में खूब मनमानी की गई, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ रहा है। बात यहीं तक सीमित नहीं है सूत्र बताते हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी टिकट बंटवारे के तौर-तरीको से आहत दिखाई दे रहा है। बस फर्क यह है कि यह लोग सार्वजनिक रूप से ऐसा कुछ नहीं बोल रहे हैं जिससे विपक्ष को हमलावर होने का मौका मिल जाये। लोकसभा चुनाव में 80 की 80 सीटें जीतने का दावा करने वाली बीजेपी आधी सीटें भी नहीं जीत पाई। भाजपा की करारी हार के पीछे भले ही कई कारण गिनाए जा रहे हों, पर संघ से दूरी भी एक बड़ी वजह मानी जा रही है।

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किसानों की राहों में कीलें गाड़ने वाले मोदी की राह में अब हर कदम पर काँटे!

शायद आपको याद होगा कि कृषि के सम्बन्ध में बनाये गये काले कानूनों व फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिए बनाये गये कानूनों सहित अन्य कई मांगों को लेकर विरोध करने वाले देश के आन्दोलनकारी किसानों को रोकने के लिये नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली की सीमावर्ती सभी सड़कों पर खतरनाक कीलें, कंटीले तार, कई लेयर की पक्की बैरिकेडिंग लगवा दीं थी। इसके साथ ही कई सड़कों को खुदवा दिया गया था और कई सड़कों पर पक्की दीवारें तक खड़ी करवा दीं थीं। सुरक्षा बलों के जवानों की तैनाती भारी संख्या में की गई थी। समय-समय पर लाठी चार्ज किया गया था और बर्बरता की सारी हदें ‘मोदी’ ने पार करवा दीं थीं। उस समय ‘मोदी की मंशा’ थी कि किसी भी कीमत पर देश के आन्दोलनकारी किसान, दिल्ली में ना घुसने पावें।
उस समय ऐसे नजारे देखने को मिले थे, जैसे कोई दुश्मन देश, दिल्ली पर हमला करने वाला था और उसी हमले को रोकने की तैयारी की गई थी। उस समय 6 लेयर की बैरिकेडिंग लगाई गई थी। इसके अलावा किसानों को गिरफ्तार करने के उद्देश्य से अस्थाई जेलों को भी तैयार करवा दिया था। कई क्षेत्रों को छावनी में तब्दील करवा दिया था।
इस तैयारी के चलते ‘मोदी’ उस समय सफल भी हुये और पंजाब, हरियाणा सहित देश के अनेक राज्यों के किसानों को महीनों तक कठिन समय में भी अनेक कठिनाइयों का दर्द झेलना पड़ा था।

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400 पार नहीं..किसी तरह नैया पार..।

केंद्र में फिर से गठबंधन की सरकार
नई दिल्लीः राजीव रंजन नाग। उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर भाजपा के इस भरोसे का केंद्र था कि 2024 का चुनाव में जीत सुनिश्चित करना राम के हाथों में है। भगवा पार्टी ने राम मंदिर को वोट बटोरने के साधन के रूप में सीमित कर दिया। नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और भाजपा ने राम मंदिर के लिए सीधे वोट मांगे, लेकिन न केवल अयोध्या बल्कि फैजाबाद में भी हार का सामना करना पड़ा। समाजवादी पार्टी के दलित उम्मीदवार अवधेश प्रसाद ने अनारक्षित सीट पर भाजपा के सबसे पुराने नाम लल्लू सिंह को 54,567 मतों से हरा दिया। यहां राम मंदिर कार्ड के विफल होने का गहरा प्रतीकात्मक अर्थ है।
वाराणसी में नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर (1,52,513 वोट) राहुल गांधी के रायबरेली (3,900,30 वोट) से आधा है। यह किशोरी लाल शर्मा द्वारा स्मृति ईरानी से कांग्रेस के लिए अमेठी वापस छीने जाने से भी कम है। शर्मा 1,67,196 मतों से जीते। इससे मोदी द्वारा नामांकन दाखिल करने के समय गंगा पर किए गए दिव्यता के दावे को समाप्त करने में मदद मिलेगी।

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‘‘बैसाखियों के सहारे चलेगी बादशाहत’’

किसी भी देश के ‘लोकतंत्र’ जिसका अर्थ है, वह शासन-प्रणाली जिसमें वहाँ की जनता द्वारा चुने प्रतिनिधियों के हाथ में ‘सत्ता’ होती है, इसी लिये उसे ‘जनतंत्र’ की भी संज्ञा दी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि लोकतंत्र में जनता ही सबकुछ है, लेकिन होता ठीक उलट है, क्योंकि जैसे ही ‘मतदाता’ अपने ‘मत’ का प्रयोग कर लेते हैं, वह (मतदाता) जनता में शुमार हो जाता है और हाँथ-पैर छू कर, मिमयाकर, गिड़गिड़ाकर आदि हथकंडे अपना कर मतदाताओं का मत अपने पक्ष में लाकर अपने सिर विजयश्री का ‘तमगा’ हासिल कर लेने वाला ‘व्यक्ति’ देखते ही देखते अपने आपको ‘खास’ बना लेता है। इस के बाद इन ‘खास’ व्यक्तियों की एक राय शुमारी के बाद चाहे राज्य हो या देश, उसकी बागडोर संभालने वाला ‘खास व्यक्ति’ दिखावे के लिये अपने आपको कथित सेवक तो कहता है लेकिन कटु सच्चाई यही है कि उस ‘खास व्यक्ति’ के अन्दर ‘बादशाहत’ ही छुपी होती है।
आज हम बात कर रहे हैं, देश की बादशाहत की। लोकताँत्रिक व्यवस्था के तहत लोकसभा सामान्य निवार्चन-2024 के सामने आये नतीजों ने देश के मतदाताओं ने देश की बादशाहत को बैसाखियों के सहारे चलाने का संदेश दिया है अर्थात अबकी बार किसी राजनैतिक दल के हाँथ में स्पष्ट रूप से ना देकर, ‘समूह’ के माध्यम से (एनडीए अथवा इण्डिया गठबन्धन के माध्यम) चलाने का आधार बनाया है।

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गाय-भैंसों को भी लग सकती है लू, गर्मियों में ऐसे करें पशुओं की देखभाल

बढ़ते पारे ने दुधारू पशुओं पर बहुत दबाव डाला है और यह सबसे बुरा तब होगा जब सापेक्ष आर्द्रता 90% से अधिक हो जाएगी। मौजूदा परिस्थितियों में दूध का उत्पादन कम फीड इनटेक और अतिरिक्त हीट लोड के कारण भी कम हुआ है। हरे चारे की मात्रा बढ़ानी चाहिए और लंबे चारे को खिलाने से पहले काटना चाहिए। यदि चराई का अभ्यास किया जाता है, तो जानवरों को सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक चराने से बचें। 20-30 मिनट के लिए बराबर मात्रा में पानी में भिगोने से पोषक तत्वों का उपयोग बढ़ जाएगा। गर्मियों के दौरान आहार खनिज और विटामिन पूरकता में वृद्धि की जानी चाहिए क्योंकि गर्मी के तनाव के प्रभाव में इसका उत्सर्जन बढ़ जाता है। गर्मी के तनाव की अवधि के दौरान आहार में सोडियम और पोटेशियम की आपूर्ति से दूध की उपज बढ़ जाती है। पशुओं के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए उचित कृमिनाशक और टीकाकरण कार्यक्रम का पालन किया जाना चाहिए।
देश के कई राज्यों में भीषण गर्मी का दौर शुरू हो चुका है, गर्मी का असर इंसान के साथ-साथ मवेशियों के ऊपर भी दिखने लगा है। इस मौसम में पशुओं को लू लगने का खतरा बना रहता है साथ ही अधिक तापमान का असर दूध देने वाली मवेशियों पर होता है और उनके दूध देने की क्षमता कम हो जाती है। जिसका नुक़सान किसानों को उठाना पड़ता है। ऐसे में पशुपालकों को इस समय पशुओं की उचित देखभाल करनी चाहिए। बढ़ते तापमान को देखते हुए पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा पशुओं को लू से बचाने के लिए एडवाइजरी भी जारी की जाने लगी है।

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कोरोना वैक्सीन कोवीशील्ड पर उठते सवाल

कोरोना वैक्सीन बनाने वाली ब्रिटिश कम्पनी एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटिश हाईकोर्ट में लिखित रूप से यह स्वीकार किया है कि उसकी वैक्सीन के गम्भीर साइड इफेक्ट्स हैं। इसके बाद भारतीय कम्पनी सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा बनायी जाने वाली वैक्सीन कोवीशील्ड पर भी सवाल उठने लगे हैं। क्योंकि पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ने जिस फार्मूले पर कोवीशील्ड नामक वैक्सीन बनायी है, उसे एस्ट्राजेनेका तथा ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी द्वारा तैयार किया गया था। लोकसभा चुनाव के बीच लन्दन से अचानक आई इस खबर ने भारत की जनता के होश उड़ा दिये हैं। विपक्षी दल जहाँ इसे सरकार के खिलाफ चुनावी मुद्दा बनाने की पुरजोर कोशिश में हैं वही भाजपा और उसके सहयोगी दल इस विषय से पूरी तरह बचने का प्रयास कर रहे हैं। राजनीतिक निहितार्थ कुछ भी निकाले जा रहे हों लेकिन इस मामले को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। वह भी तब जब वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स अत्यन्त गम्भीर हैं तथा इससे लोगों की मृत्यु भी हुई है। जानकारों के मुताबिक इस साइड इफेक्ट्स को थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के साथ थ्रोम्बोसिस (टीटीएस) नाम से जाना जाता है। इससे शरीर के विभिन्न हिस्सों में खून के थक्के बन जाते हैं तथा प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती है। प्लेटलेट्स वह छोटी कोशिकाएं होती हैं जो रक्त को जमने नहीं देती। इनका कम हो जाना काफी खतरनाक होता है। अमेरिका की सेंटर फॉर डिजीज कण्ट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार टीटीएस दो तरह के टियर में होते हैं।

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मदर्स डे

“इसको कहा था कि ऑफिस से छुट्टी ले ले लेकिन मेरी सुनती कहां है?” रेवती गुस्से में बड़बड़ा रही थी। “छह बजे लड़के वाले आ जाएंगे इसे देखने और अभी तो इसका तैयार होना भी बाकी है और कम से कम एक नाश्ता तो अपने हाथ का बना कर रखें क्या सब बाजार का ही खिलाएंगे?” रेवती अपने पति शंकर की ओर देखते हुए बोली।
शंकर:- “कहा तो था मैंने कि जल्दी घर आ जाना, रुको! मैं फोन करता हूं उसे। आजकल ट्रैफिक भी बहुत ज्यादा रहता है कहीं फस गई होगी।”
शंकर:- “हेलो! बेटा कहां हो? घर आने में कितनी देर है? तुम्हें पता है सब फिर भी लेट कर रही हो? चलो जल्दी घर आ जाओ।”
मुस्कान:- “जी पापा! बस निकल ही रही थी, आज काम भी जरा ज्यादा था बस आधे घंटे में आ रही हूं।”
शंकर:- “हां! ठीक है ।”
(शंकर रेवती से):- “आ रही है आधे घंटे में”
रेवती:- “भगवान करे सब ठीक से निपट जाए। आज छुट्टी ले लेती तो अच्छा होता। खैर।”
करीब पौने घंटे में मुस्कान घर आई।
मुस्कान:- “सॉरी – सॉरी जरा लेट हो गई। बस! अभी दस मिनट में रेडी हो जाती हूं।” रेवती के चेहरे पर नाराजगी के भाव थे।
मुस्कान:- “मम्मी ढोकले का गोल रेडी है ना अभी बना देती हूं।”
मुस्कान:- “अरे मम्मी! क्यों गुस्सा कर रही हो सब कुछ समय पर हो जाएगा। उन्हें आने में अभी एक घंटा बाकी है तब तक सब हो जाएगा।” रेवती बिना कुछ बोले किचन में चली जाती है। करीब आधे घंटे बाद मुस्कान पटियाला सलवार कमीज पहन कर बाहर आती है। कानों में झुमके, आंखों में काजल, गले में पतली चेन, हाथों में कड़े डालकर बहुत प्यारी लग रही थी। वो सादगी में भी बहुत अच्छी दिख रही थी।
रेवती:- “अरे! लिपस्टिक क्यों नहीं लगाई और वह पेंडेंट सेट रखा था वो पहनना था बेटा! इतना सिंपल कोई तैयार होता है क्या?”

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विश्व पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) पर विशेष: आखिर क्यों धधक रही है पृथ्वी?

न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी तथा मौसम का निरन्तर बिगड़ता मिजाज गंभीर चिंता का सबब बना है। हालांकि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विगत वर्षों में दुनियाभर में दोहा, कोपेनहेगन, कानकुन इत्यादि बड़े-बड़े अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन होते रहे हैं किन्तु उसके बावजूद इस दिशा में अभी तक ठोस कदम उठते नहीं देखे गए हैं। दरअसल वास्तविकता यही है कि राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रकृति के बिगड़ते मिजाज को लेकर चर्चाएं और चिंताएं तो बहुत होती हैं, तरह-तरह के संकल्प भी दोहराये जाते हैं किन्तु सुख-संसाधनों की अंधी चाहत, सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि, अनियंत्रित औद्योगिक विकास और रोजगार के अधिकाधिक अवसर पैदा करने के दबाव के चलते इस तरह की चर्चाएं और चिंताएं अर्थहीन होकर रह जाती हैं।
प्रकृति पिछले कुछ वर्षों से बार-बार भयानक आंधियों, तूफान और ओलावृष्टि के रूप में यह गंभीर संकेत दे रही है कि विकास के नाम पर हम प्रकृति से भयानक तरीके से जिस तरह का खिलवाड़ कर रहे हैं, उसके परिणामस्वरूप मौसम का मिजाज कब कहां किस कदर बदल जाए, कुछ भी भविष्यवाणी करना मुश्किल होता जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते दुनियाभर में मौसम का मिजाज किस कदर बदल रहा है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उत्तरी ध्रुव के तापमान में एक-दो नहीं बल्कि बड़ी बढ़ोतरी देखी गई।

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जयंतिया समुदाय का जन – जीवन

जयंतिया हिल्स का भौगोलिक स्वरूप पर्वतराज हिमालय से जुड़ा हुआ है। राजनीतिक रूप से यह मेघालय राज्य का एक जिला है जो जुलाई 2012 से ईस्ट जयंतिया हिल्स और वेस्ट जयंतिया हिल्स नामक दो जिलों से नामित है। प्राकृतिक रूप से यह उपोष्णकटिबंधीय वनों से आच्छादित है। मेगालिथिक (मोनोलिथ) पत्थरों का संग्रह अतीतकालीन समन्वय का वर्तमान साक्ष्य एवं माँ दुर्गा का नार्तियांग में अवस्थित मंदिर तथा जयंतियापुर की कहानी में जयंतिया हिल्स का समग्र परिचय विद्यमान है। सांस्कृतिक प्रयोगशाला की संज्ञा से सुशोभित पूर्वोत्तर भारत सात राज्यों का समूह है जिसमें से एक राज्य अ-सम असम की गोद में बांग्लादेश का पड़ोसी बनकर मेघालय अवस्थित है। मेघों का आलय, मेघालय अति प्राचीन क्षेत्र है जो 1972 से पहले असम का स्वायत्त क्षेत्र और उससे भी पहले अभिन्न भाग हुआ करता था। वर्तमान में इसकी राजधानी शिलॉंग (प्राचीन नाम शिवलिंग) है। मेघालय में प्रमुख तीन पहाड़िया हैं यथा, खासी हिल्स, गारो हिल्स और जयंतिया हिल्स (पूर्वी एवं पश्चिमी)। पूर्व जयंतिया हिल्स का जिला मुख्यालय ख्लेहरिहट और पश्चिम जयंतिया हिल्स का जिला मुख्यालय जोवाई है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार, पूर्व जयंतिया हिल्स की जनसंख्या 1,22,939 तथा क्षेत्रफल 2040 वर्ग किलोमीटर है। पश्चिम जयंतिया हिल्स अपेक्षाकृत बड़ा है। इसकी कुल जनसंख्या 2,72,185 तथा क्षेत्रफल 3819 वर्ग किलोमीटर है। एक प्रबल मान्यता के अनुसार यहाँ के लोग इंडो-मंगोलॉयड जाति के हैं। इनकी भाषा मोन-खमेर से संबंधित एक पृथक ऑस्ट्रिक भाषा है। इनके सामाजिक उत्पत्ति के बारे में एक स्वदेशी सिद्धांत भी है जिसके अनुसार ये एक सामान्य जाति के थे जो उत्तरी भारत, बर्मा, भारत-चीन और कालान्तर में दक्षिण चीन के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिए थे।

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