Tuesday, April 22, 2025
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लेख/विचार

लघुकथाः स्त्री बनना है जरूरी

जब रमा का विवाह एक प्रतिष्ठित और सम्पन्न परिवार में तय हुआ तब मन में अजीब सी कशमकश थी कि मेरी उम्र तो छोटी है। इतना बड़ा संयुक्त परिवार है। मैं कैसे सामंजस्य बैठा पाऊँगी। अभी तो किसी भी कार्य में दक्षता नहीं है। पारिवारिक रिश्ते-नाते, रीति-रिवाजों की पर्याप्त समझ आने में तो बहुत समय लगेगा। उसके मन भी बड़ी उलझन थी, पर विवाह उपरांत जब घर में गई तो सारी स्त्रियाँ केवल स्त्रियाँ ही थी। वे धौंस, रोब और अकड़ से परे थी। उन्होंने रमा से कहा कि सारे रिश्ते बाद में आते है, हम सबसे पहले स्त्री है; तुम्हारी सास, जैठानी और ननंद बाद में। तुम सबसे पहले इस घर में सहज हो जाओ। यहाँ पर कोई भी तुम्हें किसी तराजू में नहीं तौलने वाला है। वह अपनी हर छोटी से छोटी समस्या परिवार में रहने वाली स्त्रियों को बताती और सभी मिलजुलकर उस समस्या का समाधान करते। वहाँ पर सभी का सबसे बड़ा गुण माफ करना था। पुरानी बातों को छोड़कर कुछ नया सोचना था। सभी अपने कार्यों में व्यस्त रहते थे।
रमा अपनी माँ से कहती है कि मेरे ससुराल में सुंदरता, गुणों और अवगुणों को तौलने के लिए कोई तराजू नहीं है। सास अपनी पुरानी कहानियाँ नहीं सुनाती कि मेरे जमाने में ऐसा होता था, मैंने यह किया था, मैंने वह किया था। जेठानी अपनी श्रेष्ठता नहीं सिद्ध करती कि मैंने इस घर को संभालने में इतने वर्ष झोंक दिए। ननंद हर समय मान-सम्मान की दुहाई नहीं देती। हर कोई मुझे सहज महसूस कराने में लगा रहता है। माँ यदि हर परिवार में ऐसी ही परम्परा स्थापित हो जाए तो हर लड़की अपने परिवार को आसानी से अपना लेगी। माँ वहाँ की एक और विशेषता है कि वहाँ पर दोषों पर चर्चा करना स्वीकार नहीं है। दोषों पर ध्यान केन्द्रित करने से उन्नति रुक सकती है, पर समाधान और चिंतन करने से हमारी दृष्टि विकसित होती है। वहाँ पर अपनी गलती को स्वीकार करके हल्का महसूस करने पर भी बल दिया जाता है। माँ मैं भी अब अपने ससुराल के सहयोग के साथ आगे बढ़ना चाहती हूँ। अपनी सोच को उदार बनाना चाहती हूँ। माँ रमा के वाक्य सुनकर मन-ही-मन उस परिवार के प्रति धन्यवाद और मन से दुआएँ दे रही थी, जिस परिवार ने उसकी बेटी की जिंदगी आसान कर दी।

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पहली पंक्ति वाले बेदाग अपराधी दंडित हों

हम मानसिक रूप से आज भी गुलाम हैं और इस गुलामी को बनाये रखने में हमारी असफल शिक्षा व्यवस्था की भूमिका अहम है। वास्तविक रूप से शिक्षित हुए बिना ही कॉलेजों/ विश्वविद्यालयों से डिग्रियाँ मिल जाती हैं और येन केन प्रकारेण उच्च पद या उच्च सफलता को हथियाने में सफलता मिल जाती है। कम पढ़े लिखे, संघर्षमय दौड़ में शामिल न हो सकने वाले लोग या मनचाही सफलता से वंचित लोग तथाकथित सफल एवं उच्च पदस्थ लोगों को अपना आदर्श मान लेते हैं। यही से एक प्रछन्न अपराध जन्म लेता है।
आइये, जरा विचार करें। किसी आशाराम, कामुक मौलवी, रेपिस्ट पादरी या रामरहीम के पास भक्तों की अगली पंक्ति में कौन होते हैं ? निःसंदेह हमारा इशारा कुछ डी एम, एस पी, न्यायाधीश, वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर, सी ए, प्रोफेसर, पूँजीपति एवं राजनेताओं की ओर होगा। बेचारी जनता जब बाबाओं के पास ऐसे महाभक्तों को देखती है तो खुद। अपने दिमाग से सोचना छोड़ देती है और आँखें बंद करके उनके पीछे लग जाती है क्योंकि अग्रिम पंक्ति की तथाकथित महान हस्तियों की अंधभक्ति उसके विवेक पर भारी पड़ती है। फलस्वरूप भीड़ बढ़ने लगती है और बाबाओं के आशीर्वाद की रोचक व चमत्कारी कथाएँ जंगल में लगी आग की तरह फैलने लगती हैं। अपार आत्मसुख देती है। शक्तिशाली चुम्बल की तरह अपनी ओर खींचे रहती है।
फिर तो भक्तों की जमात देखकर ये तथाकथित बाबा भी खुद को जगद्नियंता परमेश्वर या पैगम्बर समझने लगते हैं। उनकी वाणी ईश्वर – इच्छा सी हो जाती है। उनके भक्त बाबा/पीर की आलोचना या मूल्यांकन पर मारने – मरने के लिए तत्पर हो जाते हैं……। कालान्तर में भक्ति परिवर्तित होते हुए शक्ति बन जाती है। लोकतन्त्र पर भीड़तन्त्र प्रभावी हो जाता है और साथ ही प्रभावी हो जाता है अनशन, प्रदर्शन और हिंसा का भयावह खेल। पापलीला का अभ्युदय, ब्लैक बिजनेस की तरक्की और बेकाबू शक्ति प्रदर्शन शुरु हो जाते हैं ।

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देवताओं को अमृतपान कराकर अमर किया था धन्वन्तरि ने

दीवाली से दो दिन पूर्व ‘धनतेरस’ नामक त्यौहार मनाया जाता है, जो इस वर्ष 22 अक्तूबर को मनाया जा रहा है। हालांकि कुछ लोगों द्वारा यह पर्व 23 अक्तूबर को भी मनाया जाएगा। दरअसल इस बार धनतेरस मनाने की तिथि को लेकर भ्रम बना रहा है। धनतेरस के प्रचलन का इतिहास बहुत पुराना माना जाता है। यह त्यौहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है तथा इस दिन आरोग्य के देवता भगवान धन्वन्तरि एवं धन व समृद्धि की देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है।
धनतेरस मनाए जाने के संबंध में जो प्रचलित कथा है, उसके अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं और असुरों द्वारा मिलकर किए जा रहे समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से निकले नवरत्नों में से एक धन्वन्तरि ऋषि भी थे, जो जनकल्याण की भावना से अमृत कलश सहित अवतरित हुए थे। धन्वन्तरि ऋषि ने समुद्र से निकलकर देवताओं को अमृतपान कराया और उन्हें अमर कर दिया। यही वजह है कि धन्वन्तरि को ‘आरोग्य का देवता’ माना जाता है और आरोग्य तथा दीर्घायु प्राप्त करने के लिए ही लोग इस दिन उनकी पूजा करते हैं।
इस दिन मृत्यु के देवता यमराज के पूजन का भी विधान है और उनके लिए भी एक दीपक जलाया जाता है, जो ‘यम दीपक’ कहलाता है। यमराज के पूजन के संबंध में एक कथा प्रचलित है। धार्मिक ग्रथों में इस कथा का वर्णन इस प्रकार किया गया है-

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बेहतर सैन्य फैसलों के लिए याद रहेंगे नेता जी

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का 82 साल की उम्र में विगत दिनों निधन हो गया। वे लम्बे समय से बीमार चल रहे थे और हरियाणा के मेदांता अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवम्बर 1939 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में हुआ था। वे राम मनोहर लोहिया के विचारों से काफी प्रभावित थे। सन् 1950 के दषक में वे राजनीति में सक्रिय हुए और किसानों के लिए लड़ाई लड़ी। उनके संघर्श तथा जुझाारूपन के लिए पुर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह उन्हें ‘लिटिल नैपोलियन’ कहकर पुकारते थे। मुलायम सिंह यादव तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और 1 जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक देश के रक्षा मंत्री भी रहे। रक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने कुछ ऐतिहासिक फैसले लिए जो विशेष उपलब्धि वाले हैं जिन्हें सैन्य क्षेत्र के लोग कभी नहीं भूल सकते हैं।
1990 के दशक में मुलायम सिंह यादव जब उत्तर प्रदेश की सत्ता से हटे तो उन्होंने केन्द्रीय राजनीति में प्रवेश किया। इस समय तक वे लम्बे अनुभव के बाद राजनीति में काफी पारंगत हो चुके थे। वे यह समझ चुके थे कि कब और कहां उन्हें अपनी अहमियत साबित करनी है। वे राजनीति के माहिर खिलाड़ी थे और इसका फायदा भी उठाया। सन् 1996 में जब लोक सभा चुनाव हुए तो उनकी पार्टी ने 17 सीटों पर विजय हासिल की। यह वो समय था जब देश में अस्थिरता का दौर चल रहा था। इस चुनाव के बाद श्री अटल बिहारी वाजपेई की सरकार बनी लेकिन वह मात्र 13 दिन में ही गिर गई। इसके बाद एच. डी. देवगौड़ा की सरकार बनी जिसमें मुलायम सिंह यादव पहले एच. डी. देवगौड़ा और उसके बाद इन्द्र कुमार गुजराल की सरकार में तकरीबन दो साल तक रक्षा मंत्री रहे। अपने इसी कार्यकाल के दौरान उन्होंने रक्षा क्षेत्र के लिए कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिए जिसके कारण वे देश के सफल रक्षा मंत्री के रुप में जाने जाते हैं।

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करवा चौथ व्रत के बाद माता अहोई अष्टमी का व्रत

करवा चौथ व्रत के बाद माता अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। इस व्रत में माताएं निर्जल व्रत रखते हुए उदय होते तारों को देखकर व्रत का समापन करती हैं। जिस तरह करवाचौथ के व्रत में चंद्रमा का महत्व है, उसी तरह अहोई अष्टमी व्रत में तारों का विशेष महत्व होता है।
अहोई अष्टमी करवा चौथ के समान ही है। यह एक सख्त उपवास का दिन है। इस व्रत को रखने वाली महिलाएं पूरे दिन पानी पीने से भी परहेज करती हैं। वे केवल शाम को तारों को देखने और उनकी पूजा करने के बाद ही उपवास तोड़ सकतीं हैं।
यह व्रत माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु की कामना के लिए करती हैं। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। सुबह उठकर स्नान के बाद साफ वस्त्र पहनें फिर दीवार पर अहोई माता की तस्वीर बनाएं या लगाएं। रोली, चावल और फूलों से माता अहोई की पूजा करें। इसके बाद कलश में जल भरकर माताएं अहोई अष्टमी कथा सुनें। माता अहोई को हलवा पूरी या फिर किसी मिठाई का भोग लगाएं।
अहोई अष्टमी व्रत से संबंधित दो कथाएं प्रचलित हैं,
पहली कथा-
एक समय एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात-सात बेटे- बहुएं और एक बेटी थीं। दीपावाली से कुछ दिन पहले उसकी बेटी अपनी भाभियों संग घर की लिपाई के लिए जंगल से साफ मिट्टी लेने गई। जंगल में मिट्टी निकालते वक्त खुरपी से एक स्याहू का बच्चा मर गया। इस घटना से दुखी होकर स्याहू की माता ने साहूकार की बेटी को कभी भी मां न बनने का शाप दे दिया। उस शाप के प्रभाव से साहूकार की बेटी का कोख बंध गया। इस शाप से साहूकार की बेटी दुखी हो गई और उसने अपनी भाभियों से कहा कि उनमें से कोई भी एघ्क भाभी अपनी कोख बांध ले। ननद की बात सुनकर सबसे छोटी भाभी तैयार हो गई। उस शाप के दुष्प्रभाव से उसकी संतान केवल सात दिन ही जिंदा रहती थी। जब भी वह कोई बच्चे को जन्म देती, वह सात दिन में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता था। वह परेशान होकर एक पंडित से मिली और उपाय पूछा।

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डा. अब्दुल कलाम की सादगी और उनके आदर्श

⇒अब्दुल कलाम जयंती (15 अक्तूबर) पर विशेष
देश के महान् वैज्ञानिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति, प्रख्यात शिक्षाविद् डा. एपीजे अब्दुल कलाम (अवुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम) सच्चे अर्थों में ऐसे महानायक थे, जिन्होंने अपना बचपन अभावों में बीतने के बाद भी अपना पूरा जीवन देश और मानवता की सेवा में व्यतीत कर दिया। छात्रों और युवा पीढ़ी को दिए गए उनके प्रेरक संदेश तथा उनके स्वयं के जीवन की कहानी देश की आने वाले कई पीढ़ियों को भी सदैव प्रेरित करने का कार्य करती रहेगी। न केवल भारत के लोग बल्कि पूरी दुनिया मिसाइल मैन डा. कलाम की सादगी, धर्मनिरपेक्षता, आदर्शों, शांत व्यक्तित्व और छात्रों व युवाओं के प्रति उनके लगाव की कायल थी। डा. कलाम देश को वर्ष 2020 तक आर्थिक शक्ति बनते देखना चाहते थे। पढ़ाई-लिखाई को तरक्की का साधन बताने वाले डा. कलाम का मानना था कि केवल शिक्षा के द्वारा ही हम अपने जीवन से निर्धनता, निरक्षरता और कुपोषण जैसी समस्याओं को दूर कर सकते हैं। उनके ऐसे ही महान विचारों ने देश-विदेश के करोड़ों लोगों को प्रेरित करने और देश के लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने का कार्य किया। उनका ज्ञान और व्यक्तित्व इतना विराट था कि उन्हें दुनियाभर के 40 विश्वविद्यालयों ने डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि प्रदान की।
तमिलनाडु के एक छोटे से गांव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में 15 अक्तूबर 1931 को जन्मे डा. कलाम छात्रों का मार्गदर्शन करते हुए अक्सर कहा करते थे कि छात्रों के जीवन का एक तय उद्देश्य होना चाहिए और इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि वे हरसंभव स्रोतों से ज्ञान प्राप्त करें। छात्रों की तरक्की के लिए उनके द्वारा जीवन पर्यन्त किए गए महान् कार्यों को देखते हुए ही सन् 2010 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा उनका 79वां जन्म दिवस ‘विश्व विद्यार्थी दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया और तभी से डा. कलाम के जन्मदिवस 15 अक्तूबर को ही प्रतिवर्ष ‘विश्व विद्यार्थी दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है।

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भारत की मुख्य धारा में जुड़ चुका है अनुपम अपूर्व पूर्वाेत्तर

मानव चिंतनशील प्राणी है अतएव अनवरत अज्ञेय को ज्ञेय करना चाहता है। रहस्य को उद्घाटित किए बिना इसे चौन कहाँ! वर्तमान से संतुष्ट होता ही नहीं और भविष्य में सपनों के बुर्ज खड़ा करता रहता है। तभी तो विकास एवं परिवर्तन की प्रक्रिया सुचारु हो पाती है। यह एक श्रृंखलाबद्ध प्रक्रिया है जो निरंतर चलती रहती है। समय-समय पर इसमें ऐसे लोग जुड़ जाते हैं जो नई सोच एवं नये जोश के साथ विकास की गति को तेज करने में सक्षम होते हैं। नए प्रतिमान गढ़ने में समर्थ होते हैं। नई इबारत लिख देते हैं। ऐसे लोग ही उस काल के महानायक, महाविजेता, महापुरुष कहलाते हैं जिनके प्रति आगामी पीढ़ियाँ कृतज्ञ होती हैं। पूर्वाेत्तर के गठन एवं सर्वांगीण विकास में कुछ महान लोगों की भूमिका अति महत्वपूर्ण रही है जिनके हम ऋणी हैं।
पूर्वाेत्तर असम है, मेघों का घर है, नागा, मणि एवं मिजो भूमि है, त्रिपुर देवी एवं अरुणोदय स्थल है। वनाच्छादित एवं प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा उदाहरण है। लिखित एवं मौखिक बहुभाषा एवं बहुबोली का क्षेत्र है। सम्पर्क भाषा के रूप में हिंदी पर आश्रित है। विविध संस्कृतियों एवं जाति/उपजाति एवं प्रजाति का निवास व प्रवास है। अर्थात् कह सकते हैं कि पूर्वाेत्तर क्या नहीं है! खलती रही तो बस एक कमी, शेष भारत से कुछ कटे-कटे रहना। इसमें गलती किसकी थी? इसमें गलती किसकी नहीं थी? इसके लिए हम गलत थे, आप गलत थे, ये भी गलत थे, हम सब गलत थे। शेष भारत ने इन्हें गले से लगाया नहीं। पड़ोसी देशों ने पलक पावड़े बिछाए, अपनत्व दिखाया या यूँ कहें तो जाल फेंककर लुभाया फिर फँसाया। तभी तो पूर्वाेत्तर से दिल्ली की दूरी बढ़ती गई और पड़ोसी देशों की दूरियाँ घटती गई। बाहरी सांस्कृतिक चासनी में डुबो डुबोकर धर्मांतरण कराया गया। परिणाम स्वरूप पूर्वाेत्तर के कुछ भाग अ-भारत जैसे लगने लगे थे।

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अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस: अब हमारा समय है – हमारे अधिकार हमारा भविष्य

आदिअनादि काल से भारतीय संस्कृति में महिलाओं का बहुत सम्मान किया जाता रहा है। उन्हें देवियों का अवतार माना जाता रहा है, परंतु बड़े बुजुर्गों की कहावत सत्य ही है कि, समय कभी एक सा नहीं रहता परंतु उनकी वह भी शिक्षा है कि वह अपनी सकारात्मक सोच सच्चाई नारी सम्मान परमार्थ बुरी नजर से बचना सहित अनेक गुणों को समय के साथ न बदलते हुए स्थाई रखना मानवीय स्वभाव में समाहित करना जरूरी है। परन्तु जैसे-जैसे समय बीतता गया इनकी स्थिति में काफी बदलाव आया, लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदलने लगी, बालविवाह प्रथा, सती प्रथा, दहेज़ प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या इत्यादि रुढ़िवादी प्रथायें काफी प्रचलित हुआ करती थी, इसी कारण लड़कियों को शिक्षा, पोषण, कानूनी अधिकार और चिकित्सा जैसे अधिकारों से वंचित रखा जाने लगा था, लेकिन अब इस आधुनिक युग में लड़कियों को उनके अधिकार देने और उनके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए कई प्रयास किये जा रहे हैं। भारतीय सरकार भी इस दिशा में काम कर रही है और कई योजनायें लागू कर रही है। चूंकि 11 अक्टूबर 2022 को हम अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मना रहे हैं जिसकी थी। अब हमारा समय है-हमारे अधिकार हमारा भविष्य, इसलिए आज हम मीडिया के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से दुनिया को बदलने के लिए सही साधनों के साथ बालिकाओं को सुरक्षित शिक्षित सशक्त और स्वस्थ जीवन शैली सुनिश्चित करना समय की मांग है इसपर चर्चा करेंगे।

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चीनी आक्रामकता का सामना करेंगे भारत-ताइवान

दो अक्टूबर को ताइवान के अनौपचारिक राजदूत बौशुआन गेर ने एक साक्षात्कार में क्षेत्र में चीन के आक्रामक रुख का जिक्र करते हुए कहा कि भारत और ताइवान दोनो एक अधिनायकवादी चीन का सामना कर रहे हैं। इसलिए अब समय आ गया है कि उसकी निरंकुशता के खतरे एवं विस्तार को ध्यान में रखकर भारत और ताइवान को न केवल निकट रणनीतिक सहयोग बढ़ाने की जरूरत है बल्कि आवश्यक है। उन्होंने पूर्व और दक्षिण चीन सागर, हांगकांग और गलवान घाटी में में तनाव को रेखांकित करते हुए कहा कि कि इस खतरे से निपटने के लिए भारत और ताइवान को हाथ मिलाने की जरूरत है। चीन की सैन्य आक्रामकता के मद्देनजर ताइवान की खाड़ी में न्याय, शान्ति और स्थिरता के लिए खड़े रहने के लिए उनका देश भारत की सराहना करता है। इस समय भारत और ताइवान साइबर, समुद्र, अंतरिक्ष, हरित उर्जा, खाद्य सुरक्षा, पर्यटन और पाक कला के क्षेत्र में सहयोग बढ़ा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि भारत और ताइवान के साथ औपचारिक कूटनीतिक संबंध नहीं हैं लेकिन दोनों के बीच व्यापारिक संबंध हैं। नई दिल्ली ने 1995 में ताइपे में दोनों पक्षों के बीच बढ़ावा देने के लिए भारत-ताइपे संघ की स्थापना की गई थी। अब उम्मीद है कि ताइवान से सम्बन्ध बढ़ेंगे।

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पूरी दुनिया देखेगी भारतीय वायुसेना की ताकत

⇒भारतीय वायुसेना के 90वें स्थापना दिवस (8 अक्तूबर) पर विशेष
8 अक्तूबर को भारतीय वायुसेना अपना 90वां स्थापना दिवस मना रही है। प्रतिवर्ष इस विशेष अवसर पर हिंडन एयरबेस में एक भव्य एयर-शो का प्रदर्शन किया जाता है लेकिन इस बार वायुसेना दिवस समारोह दिल्ली एनसीआर के बाहर चंडीगढ़ में आयोजित किया जा रहा है, जिसमें होने वाले एयर शो में कुल 83 एयरक्राफ्ट शामिल हो रहे हैं। एयर शो के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और तीनों सेना प्रमुखों के साथ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगी। इस बार वायुसेना के 90वें स्थापना दिवस पर चंडीगढ़ में सुखना झील परिसर में वायुसेना दिवस ‘फ्लाई-पास्ट’ के लिए तैनात किए जाने वाले विमानों और हेलीकॉप्टरों में नए लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर भी शामिल हैं और वायुसेना के बेड़े में हाल ही में शामिल हुआ भारत का पहला स्वदेशी हल्का लड़ाकू हेलीकॉप्टर ‘प्रचंड’ भी एयर शो के दौरान अपनी हवाई शक्ति का प्रदर्शन करेगा। आसमान में देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह भारतीय वायुसेना के ही हाथों में होती है, इसलिए दुश्मन देशों की चुनौतियों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए वायुसेना को लगातार मजबूती प्रदान करना बेहद जरूरी है।
भारत के लिए गर्व की बात है कि भारतीय वायुसेना को अब दुनिया की चौथी बड़ी सैन्यशक्ति वाली वायुसेना माना जाता है। वायुसेना का ध्येय वाक्य है ‘नभः स्पृशं दीप्तम’ अर्थात् आकाश को स्पर्श करने वाले दैदीप्यमान। भारतीय वायुसेना देश की करीब 24 हजार किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी मुस्तैदी के साथ निभाती है। राफेल सहित कुछ और शक्तिशाली लड़ाकू विमानों, हेलीकॉप्टरों तथा अत्याधुनिक मिसाइलों के वायुसेना की विभिन्न स्क्वाड्रनों में शामिल होने से हमारी वायुसेना कई गुना शक्तिशाली हो चुकी है। वायुसेना की युद्धक क्षमताएं बढ़ने से हम हवा में पहले से बहुत ज्यादा मजबूत हुए हैं तथा दुश्मन की किसी भी तरह की हरकत का पहले से अधिक तेजी और ताकत के साथ जवाब देने में सक्षम हुए हैं। पड़ोसी देशों की फितरत को देखते हुए अत्याधुनिक तकनीकों से सुसज्जित एयरक्राफ्ट तथा लड़ाकू विमान वायुसेना में शामिल किए जाने की प्रक्रिया लगातार जारी है। हमारी वायुसेना आज इतनी ताकतवर हो चुकी है कि इसमें फाइटर एयरक्राफ्ट, मल्टीरोल एयरक्राफ्ट, हमलावर एयरक्राफ्ट तथा हेलीकॉप्टरों सहित 2200 से अधिक एयरक्राफ्ट तथा करीब 900 कॉम्बैट एयरक्राफ्ट शामिल हो चुके हैं।

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