आज हम 21वीं सदी की दहलीज़ पर खड़े है औरतों ने अपनी अठारहवीं सदी वाली छवि बदलकर रख दी है, हर क्षेत्र में नारी एक सक्षम योद्धा सी अपना परचम लहरा रही है और परिवार का संबल बनकर खड़ी है, फिर भी कुछ लोगों की मानसिकता नहीं बदली। चाहे कितनी ही सदियाँ बदल जाए कामकाजी और नाईट ड्यूटी करने वाली स्त्रियों के प्रति कुछ अवधारणा कभी नहीं बदलेगी। घर से बाहर निकलकर काम करने वाली औरतों को एक अनमनी नज़रों से ही क्यूँ देखता है समाज का एक खास वर्ग? चंद हल्की मानसिकता वाली औरतों को नज़र में रखते रात को बाहर काम करने वाली हर महिला को आप गलत नहीं ठहरा सकते। मुखर महिला यानी बदचलन, किसी मर्द के साथ हंस कर बात करने पर महिला को शक कि नज़रों से ही देखा जाता है।
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क्या हनुमान चालीसा ने विचलित किया चालीस विधायकों को-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
व्यक्ति के जीवन में धार्मिक भावनायें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। धार्मिक आधार पर ब्रैनवास कर लोगों को मानव बंम तक बना दिया जाता है। जिसके अन्तर्गत लोग स्वयं के प्राण भी न्योछावर कर देते हैं। महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार प्रतीत होता है सत्ता पाकर इतने दर्प में आ गई थी कि उसे लगता था वे जो भी करेंगे सभी विधायक आंख बंद करके उनका समर्थन करते रहेंगे। सरकार गठन के कुछ दिनों बाद से ही उद्धव सरकार अपने मूल उद्देश्य को तिलांजलि देकर अपनी सहयोगी पार्टियों को खुश करने और देश में अपनी दबंगई दिखाने के फार्मूले पर काम करती नजर आई। विगत ढाई वर्षों में कई ऐसे कार्य व वर्ताव किये जो विधायकों को क्या थोड़े से समझदार व्यक्ति तक को रास नहीं आये।सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा द्वारा मातोश्री के आगे हनुमान चालीसा की मात्र घोषणा करने भर से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दायर किया जाना तो शिवसेना के ही मूल कैडर के गले नहीं उतरा। हिन्दू धार्मिकों के लिए हनुमान चालीसा बहुत महत्व रखता है। जब उन पर कोई संकट आता है तो सर्व प्रथम हनुमान चालीसा का स्मरण या पाठ करते हैं। हिन्दुओं की गहन आस्था पर कुठाराघात शिवसेना के विधायकों को ही आहत कर गया और लगता है इसी हनुमान चालीसा पर आघात ने शिवसेना के चालीस विधायकों को विचलित किया और पार्टी में बगावत करने पर मजबूर कर दिया। जिसकी परिणति देश देख रहा है।
“कथिर से कुंदन बन गई”
कुंतल आज UPSC पास करके कलेक्टर की कुर्सी संभालने जा रही थी, उस सम्मान में एक समारोह रखा गया। पूरा हाॅल अधिकारियों और कुछ रिश्तेदारों से से खिचोखिच भरा था। कुंतल खोई-खोई दोहरे भाव से जूझ रही थी गरीबी ससुराल वालों की प्रताड़ना घर घर जाकर खाना बनाकर पाई पाई जोड़कर पढ़ना एक-एक घटना किसी फ़िल्म की तरह दिमाग में चल रही थी, की कुंतल के नाम की एनाउंसमेंट हुई। मैडम प्लीज़ स्टेज पर आईये, पर कुर्सी से स्टेज तक पहुँचते कुंतल मानों एक सफ़र से गुज़र गई। गरीब माँ-बाप की बेटी को अक्सर बोझ समझा जाता है, इसलिए बेटियों की पढ़ाई पर ज़्यादा खर्च नहीं करते, जितना जल्दी हो ब्याह दी जाती है। कुंतल दिखने में बहुत सुंदर थी, पढ़ने में होनहार थी पर सरकारी स्कूल में बारहवी कक्षा में पास होते ही एक संपन्न परिवार में कुंतल की शादी करवा दी गई। कुंतल की सुंदरता को देख ससुराल वालों ने घर में सजाने के लिए बहू बना ली पर वो हक वो दरज्जा नहीं दिया जिसकी हकदार थी। ससुराल में सब पढ़े लिखें और अंग्रेजी बोलने वाले थे, तो पति राजन कुंतल को अपने साथ किसी प्रसंग, पार्टी या समारोह में नहीं ले जाता। घर वालें भी सारी बातें अंग्रेजी में करते ताकि कुंतल समझ न सकें, कुंतल सबके सामने खुद को बौना महसूस करती। सब अनपढ़ का ताना मारते, किसीको उसके अच्छे गुणों की कद्र नहीं थी। एक अंग्रेजी नहीं बोलने की वजह से घर में एक कामवाली बनकर रह गई थी। कुंतल राजन से बेइन्तहाँ प्यार करती थी इसलिए सारी प्रताड़ना सह लेती थी।
Read More »गाँव-गाँव तक पहुँचा चुनावी दंगल, चुनावी दाव पेंच में उलझते लोग
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का आगाज होते ही गाँव में एक चुनाव दाव की कसक शुरू हो जाती है l सभी के मन में एक ऐसा जन प्रतिनिधि की आस होती है जो उनके साथ-साथ सम्पूर्ण गाँव को विकास की धारा में बहा सके l एक आम वोटर इससे ज्यादा चाहेगा भी क्या ? बेचारा बस इस उम्मीद में अपना वोट दे देता है कि कभी न कभी तो इन जनप्रतिनिधियों हमारी सुध आएगी , कभी तो उनके कदम हमारी झोपडी की ओर होगा lसमाज में बदलाब के लिए आगे आने वाले लोग – समाज में तीन तरह के लोग होते है, पहले गरीब, मजदूर, दिहाड़ी करने वाले यूँ कहे तो समाज का सबसे निचले पायदान में जीवन यापन करने वाले लोग, इन लोगो को जन प्रतिनिधियों से बड़ी आस होती है कि ये इनका जीवन बदले में मदद करेंगे l देश में सबसे बड़ी संख्या भी इस तबके का ही है; इनके वोट के दम पर ही लगभग सभी जन प्रतिनिधियों की साख होती है l बड़े-बड़े लालच, प्रलोभन वादे एवं आश्वाशन में यही तबका सबसे ज्यादा ठगा भी जाता है l यदि बात करे तो यह समाज का ऐसा हिस्सा है जो अपने काम करवाने के लिए बड़े नेता एवं जिला स्तर के जन प्रतिनिधि तक पहुँच ही नहीं पाता है l
कैंसर अब लाइलाज नहीं:डॉस्टर्लिमाब दवा के ट्रायल पीरियड में सभी रोगी हुए स्वस्थ
मानव जगत के लिए एक बड़ी खुशखबरी है. पहली बार कोई दवाई कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी पर काम कर गयी है. जी हाँ, डॉस्टर्लिमाब नामक इस दवा ने अपने ट्रायल पीरियड में सभी (जिन मरीजों के ऊपर इस दवा का प्रयोग किया जा रहा था) कैंसर पीड़ित मरीजों को ठीक कर दिया है.
वैश्विक स्तर पर कैंसर मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है. चिकित्सा जगत के लिए सबसे निराशाजनक बात ये है कि कैंसर क्यों होता है, इसके पीछे कोई ज्ञात कारण हीं नहीं है. चिकित्सा जगत सालों से इस बीमारी के लिए कोई ऐसी दवाई ढूंढ रहा था जो इस बीमारी को जड़ से ख़त्म कर सके. ऐसे में यह खबर आशा की एक नई किरण लेकर आई है.मेनहट्टन, न्यूयॉर्क के मेमोरियल स्लोअन कीट्टीरिंग कैंसर सेंटर में एक क्लिनिकल ट्रायल किया जा रहा था. जहाँ कैंसर के 18 मरीजों को 6 महीने से डॉस्टर्लिमाब नाम की दवाई दी जा रही थी. इस परीक्षण के परिणाम हैरतअंगे
कौन जिम्मेदार है बढ़ते साम्प्रदायिक उन्माद के लिए: डॉ.दीपकुमार शुक्ल
बीते दिनों दो नेताओं के विवादित बयान से कानपुर में भड़का साम्प्रदायिक उन्माद बड़े दंगे का रूप ले सकता था, यदि पुलिस ने समय रहते उस पर नियन्त्रण न पा लिया होता| देश के भीतर तो स्थिति पर काबू पा लिया गया परन्तु विभिन्न मुस्लिम देशों की प्रतिक्रिया ने भारत को असहज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है| खाड़ी देशों में खुलेआम चल रही भारत विरोधी मुहीम थमने का नाम नहीं ले रही है| यहाँ तक कि यह मामला संयुक्त राष्ट्र तक जा पहुंचा है| ऐसे में सवाल उठता है कि इस परिस्थिति से आखिर निपटा कैसे जायेगा? क्या भाजपा द्वारा अपने दोनों प्रवक्ताओं के खिलाफ उठाया गया कदम नाकाफी है? क्या यह परिस्थिति अचानक उत्पन्न हुई है? क्या इसके पीछे सिर्फ भाजपा प्रवक्ताओं के बयान ही मूल कारण हैं? या फिर साम्प्रदायिक राजनीति से दो वर्गों के बीच बनती टकराव की पृष्ठभूमि का यह एक ट्रेलर है?
कितनी ओर फाइलें
कश्मीर फाइल्स देखी तो दिल को बहुत ठेस पहुंची थी। जो अत्याचार अपने ही वतन में हुआ वह 1947 से कम भयावह नहीं था। वह जो वक्त था कि बयान करने से नहीं बनता।कितनी ही दर्दनाक चीखे जो उस वक्त सुनी थी वह आज भी हवाओं में गूंज रही हैं अगर कोई सुनने वाला हो तो! अगर सुनाई दे तो समझो वह अपने लिये एक वार्निंग हैं।पार्टीशन होने की मुख्य दो वजहें गिनी जायेगी,धर्म और राजनीति। आम नागरिकों का उसने कोई मतलब नहीं दिखाई देता।सिर्फ धर्म के नाम पर राजनैतिक फैसलों को अंजाम दिया गया था।लेकिन न ही धर्म के ठेकेदारों का कोई जान माल का नुकसान हुआ और न ही राजनैतिग्यों का,जो कुछ सहन किया वह आम नागरिकों ने ही किया हैं।
Read More »वाह रे गुरुर!!!
गुरुर में रहोगे तो रास्ते भी ना देख पाओगे – मंजिल पाना तो बहुत दूर की बात है!!
लक्ष्यों की सफ़लता में गुरुर सबसे बड़ा बाधक!! नम्रता, सहयोग, इमानदारी लक्षित मंजिलों तक पहुंचाने की चाबी – एड किशन भावनानी
गोंदिया – कुदरत ने इस खूबसूरत सृष्टि में मानव काया की अनमोल रचना कर उसे कुशाग्र बुद्धि क्षमता के रूप में अनमोल अस्त्र सौंपा है! तो गुरूर, अभिमान, अहंकार, अकड़, अहंवाद, गुमान, नखरो जैसी अनेक विशुद्धयां भी डाली है, ताकि मानवीय जीवन यात्रा में अच्छे काबिल और उचित लोग उस उचित स्थान याने मंजिल तक पहुंच सके और सारी मानवता का कल्याण कर अच्छाई से अपनी जीवन यात्रा पूर्ण कर वापस वैकुंठ धाम में प्रवास करेंl साथियों हमने अपने बड़े बुजुर्गों से सुने हैं कि जिस मानव के पास लक्ष्मी मां प्रवास करती है तो उसे पद, प्रतिष्ठा देकर उसकी परीक्षा लेती है, जिसमें विकारों से लेकर उपरोक्त विशुद्घियां और नम्रता, सहयोग, इमानदारी जैसी शुद्घियों का घेरा डालती है!! फिर मानव का कार्य है कि अपनी बुद्धि के बल पर विशुद्धियों और शुद्धियों का चुनाव करें स्वाभाविक ही है, कुशाग्र बुद्धि का व्यक्ति शुद्धियों को और बाकी लोग विशुद्धियों को चुनेंगे जिसके कारण लक्ष्मी मां वहां से प्रस्थान कर ती है यह महत्वपूर्ण बात संपूर्ण मानव जाति के लिए रेखांकित करने योग्य बात है। इन उपरोक्त पैरा में बताए गए शब्दों को हम गुरूर में परिभाषित कर सकते हैं, यही लक्ष्यों की सफलताओं में सबसे बड़ा बाधक है इसलिए हर व्यक्ति को चाहिए कि नम्रता, सहयोग, ईमानदारी सहित सभी शुद्धि सूचक शब्दों को अपनाकर लक्षित मंजिलों तक पहुंचकर अपना खुद का, समाज, जिला, राज्य और राष्ट्रीय का भला कर सकते हैं
Read More »15 मई – परिवारों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस:टूट रहे परिवार हैं, बदल रहे मनभाव ;प्रेम जताते ग़ैर से, अपनों से अलगाव
(भौतिकवादी युग में एक-दूसरे की सुख-सुविधाओं की प्रतिस्पर्धा ने मन के रिश्तों को झुलसा दिया है. कच्चे से पक्के होते घरों की ऊँची दीवारों ने आपसी वार्तालाप को लुप्त कर दिया है. पत्थर होते हर आंगन में फ़ूट-कलह का नंगा नाच हो रहा है. आपसी मतभेदों ने गहरे मन भेद कर दिए है. बड़े-बुजुर्गों की अच्छी शिक्षाओं के अभाव में घरों में छोटे रिश्तों को ताक पर रखकर निर्णय लेने लगे है. फलस्वरूप आज परिजन ही अपनों को काटने पर तुले है. एक तरफ सुख में पडोसी हलवा चाट रहें है तो दुःख अकेले भोगने पड़ रहें है. हमें ये सोचना -समझना होगा कि अगर हम सार्थक जीवन जीना चाहते है तो हमें परिवार की महत्ता समझनी होगी और आपसी तकरारों को छोड़कर परिवार के साथ खड़ा होना होगा तभी हम बच पायंगे और ये समाज रहने लायक होगा.)
आखिर क्यों गहरा रहा है देश में बिजली का संकट?
भीषण गर्मी के बीच बिजली की तेजी से बढ़ती मांग के कारण देश के कई राज्यों में बिजली की कमी का संकट गहरा रहा है। बिजली की मांग बढ़ने के साथ ही थर्मल पावर प्लांटों में कोयले की खपत तेजी से बढ़ी है और इसी कारण कुछ राज्यों के बिजली संयंत्रों में कोयले का स्टॉक घट रहा है। दरअसल गर्मी के कारण कई बिजली कम्पनियों में बिजली की मांग में वृद्धि हुई है और जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है, बिजली की मांग में भी उसी तेजी से वृद्धि हो रही है। कोरोना लॉकडाउन के बाद बड़ी मुश्किल से पटरी पर लौट रही औद्योगिक गतिविधियों के कारण उद्योगों में भी बिजली की खपत बढ़ी है, इससे भी बिजली की मांग बढ़ रही है लेकिन मांग के अनुरूप पावर प्लांटों में कोयले का स्टॉक नहीं है। कोयले की कमी के संकट को लेकर कोल इंडिया स्वीकार चुकी है कि गर्मी शुरू होने के साथ ही देश के बिजली संयंत्रों में कोयला भंडार नौ साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया था। हालांकि संघीय दिशा-निर्देशों के अनुसार बिजली संयंत्रों में कम से कम 24 दिनों का कोयला स्टॉक होना चाहिए।
आंकड़े देखें तो महाराष्ट्र में करीब 28 हजार मेगावाट बिजली की मांग है, जो गत वर्ष के मुकाबले 4 हजार मेगावाट ज्यादा है। उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना इत्यादि राज्य भी इस समय कोयले की किल्लत से जूझ रहे हैं, जिस कारण कुछ राज्यों में कुछ पावर प्लांटों में तो बिजली उत्पादन ठप्प हो गया है तोे कुछ प्लांटों में बिजली उत्पादन अपेक्षाकृत कम हो पा रहा है। केन्द्रीय बिजली प्राधिकरण (सीईए) के मुताबिक देश में 173 बिजली संयंत्रों में से 155 गैर-पिथेड बिजली संयंत्र हैं, जहां पास में कोई कोयला खदान नहीं है और इनमें औसतन कोयले का करीब 28 फीसदी स्टॉक है जबकि कोयला खदानों के पास स्थित 18 पिथेड संयंत्रों का औसत स्टॉक सामान्य मांग का 81 फीसदी है। पिछले साल अक्तूबर माह में भी बिजली की मांग करीब एक फीसदी बढ़ जाने के कारण कोयला संकट के चलते बिजली संकट गहराया था और तब यह भी स्पष्ट हुआ था कि बिजली संयंत्रों को कोयले की वांछित आपूर्ति नही होने के अलावा कई नीतिगत खामियां भी बिजली संकट का प्रमुख कारण हैं।