Tuesday, May 14, 2024
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लेख/विचार

अंध मातृ-पितृ भक्त बनने से बचे (लघुकथा)

कहते है जीवन में साक्षात भगवान का स्वरूप माता-पिता होते है और यह सच भी है कि बच्चे के लालन-पालन में माता-पिता स्वयं ही खर्च हो जाते है। माता-पिता बनने के बाद उनकी केवल एक ही अभिलाषा रह जाती है कि मेरे बच्चे का कभी अहित न हो। भवानी को अपनी शिक्षा और इंटर्नशिप के कारण अपने गुरु के घर जाकर भी कभी-कभी अध्ययन में आने वाली परेशानियों के समाधान हेतु उनसे परामर्श लेना पड़ता था क्योंकि गुरुजी अत्यंत व्यस्त रहते थे। वे धन के अत्यंत ही लोभी थे इसलिए अतिरिक्त जिम्मेदारियों को भी लेने के लिए हमेशा तैयार रहते थे क्योंकि इससे उनकी आमदनी में इजाफा होता था। यहीं स्वभाव उनकी पत्नी में भी था। चापलूसी और चाटुकारिता भी उनका पीछा छोड़ नहीं पाई।

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आज की लड़की डिवोर्स और सेप्रेशन से नहीं घबराती

उनकी स्वायत्तशासी का स्वीकार करो पितृसत्ता के पक्षधरों, अपनी लकीरों में खुद खुशियाँ भरना सीख गई है, आज की नारी प्रताड़ित होते देहरी के भीतर आँसू बहाना भूल गई है। था एक ज़माना जब महिलाएं कमज़ोर, बेबस, लाचार कहलाती थी। किसी और के तय किए हुए दायरे में सिमटी आज़ादी को तरसती, कोई भी निर्णय लेने से डरती हर हाल में जी लेती थी। तलाक और सेप्रेशन जैसे शब्दों से परहेज़ करती जैसे पति और ससुराल वालें रखें रह लेती थी। पर आज की लड़की मुखर हो गई है ज़िंदगी जीने का द्रष्टिकोण ही बदल लिया है। दहलीज़ के बाहर कदम धरने की फिराक में सदियों की जद्दोजहद से जूझते ख़्वाहिशों को परवाज़ देने कि हिम्मत बटोर ली है। नहीं घबराती अब ज़िंदगी की चुनौतियों से मर्द की प्रतिस्पर्धी बनकर उभर रही है।

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न्यायपालिका में 50% महिला आरक्षण कितना जरूरी?

भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने महिला वकीलों को 50% आरक्षण की मांग उठाने की बात कही। अभी कुछ समय से महिलाओं ने वकालत के पेशे में अच्छी पहचान बनायी है। जिससे शहरों में अब लोग उन्हें जानने लगे हैं लेकिन गांव और पंचायत में उन्हें अभी भी पहचान नहीं मिल पा रही है। अभी भी वकील की नजर से देखने के बजाय “महिला” की नजर से ज्यादा आंकते हैं लोग। एक मानसिकता बनी हुई है कि यह महिला है और यह केस कैसे लड़ेगी? मतलब कि उसकी काबिलियत पर शक किया जाता है। उच्च न्यायालयों में 11.5% महिला जज है और सुप्रीम कोर्ट में 11. 12% महिला जज हैं 33 में से चार। देश में 17 लाख वकील है उनमें से सिर्फ 15% महिलाएं हैं।

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पर्यावरण की भयावह समस्या पैदा करता प्लास्टिक कचरा

पर्यावरण के लिए प्लास्टिक पूरी दुनिया में बेहद खतरनाक साबित हो रहा है। इसीलिए इसका उपयोग सीमित करने और कई प्रकार के प्लास्टिक पर प्रतिबंध की मांग उठती रही है। भारत में भी ऐसी ही मांग निरन्तर होती रही हैं और समय-समय पर इसके लिए अदालतों द्वारा सख्त निर्देश भी जारी किए जाते रहे हैं किन्तु इन निर्देशों की पालना कराने में सख्ती का अभाव सदैव स्पष्ट परिलक्षित होता रहा है। यही कारण है कि लाख प्रयासों के बावजूद प्लास्टिक के उपयोग को कम करने में सफलता नहीं मिल पा रही है।

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उम्र और सुख की तलाश (लघुकथा)

गौरी बालकनी में बैठे-बैठे अपने अतीत की यादों में खोई हुई थी। कैसे बाल्यकाल से ही सबसे बड़ी होने का दायित्व निभाया। कभी छोटी बहन अस्वस्थ हूई, असमय पिता एक्सीडेंट का शिकार हुए, उसके बाद माँ की ज़िम्मेदारी और भाई की मानसिक स्थिति। इन सबके बीच गौरी केवल और केवल परिस्थितियों से जूझती रहीं। गौरी की बाल्यावस्था तो मात्र संघर्ष की अनवरत यात्रा थी। बाल्यकाल में तो उसे कभी सुख की परिभाषा समझ ही नहीं आई। कुछ समय पश्चात शुरुआत हुई किशोरावस्था की। गौरी को चन्द्रशेखर का साथ मिला। पर यह क्या था चन्द्रशेखर की नजर में तो गौरी की कोई कीमत ही नहीं थी। वह तो सिर्फ उसके लिए खाना बनाने वाली थी। ससुराल वालों की जिद के चलते लड़का होने की लालसा में उसने चार-चार पुत्रियों को जन्म दिया। प्रसव पीड़ा से लेकर बच्चियों के लालन-पालन में परिवार का न मानसिक और न शारीरिक सहयोग मिला। पर गौरी ने अपनी पुत्रियों की शिक्षा-दीक्षा में स्वस्तर पर भी भरसक प्रयत्न किए।

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असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा

रोज़गार और कल्याणकारी योज़नाओं का लाभ उठाने ई-श्रमिक पोर्टल पर पंजीकरण मील का पत्थर साबित होगा
ई-पोर्टल पर पंजीकृत असंगठित श्रमिकों की दुर्घटना में मृत्यु पर दो लाख़, स्थाई विकलांगता पर एक लाख़ आर्थिक सहायता का प्रावधान सराहनीय कदम – एड किशन भावनानी
भारत में असंगठित क्षेत्र विशाल स्तर पर है। साथियों हम आगे चर्चा करें इसके पहले हमें संगठित और असंगठित श्रमिकों के बारे में समझना होगा। संगठित क्षेत्र वह है जो उचित प्राधिकारी या सरकार के साथ शामिल हो और उसके नियमों और विनियमों का पालन करे। इसके विपरीत, असंगठित क्षेत्र को सेक्टर के रूप में समझा जा सकता है, जो सरकार के साथ शामिल नहीं है और इस प्रकार, किसी भी नियम का पालन करने की आवश्यकता नहीं है।…

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अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा चीन

देश का कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति जब भी अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर जाता है तो चीन को मिर्ची जरूर लगती है और वह वहां पर अपना दावा दोहराने लगता है। ताजा मामला देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू की 9 अक्टूबर की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा का है। इस यात्रा पर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झााओ लिजियन ने कहा कि चीन भारत के उपराष्ट्रपति की हाल की अरुणाचल यात्रा का कड़ा विरोध करता है। लिजियन ने कहा था कि चीन अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं देता है।

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जीएसटी, आयात शुल्क में कटौती का लाभ उपभोक्ताओं को मिला या नहीं इसकी सुनिश्चितता ज़रूरी

केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कर शुल्कों में दी गई राहत का आम उपभोक्ताओं को लाभ सुनिश्चित करने की तकनीकी विकसित करना ज़रूरी – एड किशन भावनानी
मानव जीवन यापन में ज़रूरी करीब-करीब हर वस्तु एवं सेवा पर अनेक प्रकार के करों शुल्कों का बोझ होता है जो जीएसटी, आयात शुल्क, सेस लोकल टैक्स इत्यादि के रूप में होता है। किस वस्तु पर कितना आयात उत्पाद शुल्क, जीएसटी, सेस है इसकी जानकारी अधिकतम आम उपभोक्ताओं को नहीं होती। एक साधारण सी बात है, हम मार्केट में दुकानदारों से वस्तुएं खरीदते हैं, कुछ लोग मोलभाव करके, कुछ लोग मुंहमांगी कीमत पर खरीद लेते हैं। परंतु हमें पता नहीं होता इसकी कीमत में कितना सरकारी शुल्क और उत्पादक, होलसेलर और चिल्लर विक्रेता का कितना मुनाफ़ा शामिल है? हमें कुछ पता नहीं होता।

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दिव्यांग का लॉकडाउन

कोरोना त्रासदी ने तो जीवन के माईने ही बदल दिए। लॉकडाउन ने जीवन की परिभाषा को नवीन रूप में परिवर्तित कर दिया। स्वतन्त्रता और स्वच्छंदता क्या होती है शायद इसकी कटु अनुभूति का सामना हुआ, पर क्या कभी हमनें सोचा है की जो दिव्यांगजन खुलकर जीवन नहीं जी पाते उनके मन में कैसी टीस होती होगी। उनका लॉकडाउन कैसे होता होगा। उनके मन की क्या व्यथा और मनोदशा होती होगी। कई बार हम लोग उदास होने पर घूम फिरकर माहौल में परिवर्तन कर किसी पर्यटक स्थल, तीर्थ स्थल या किसी बगीचे में जाकर अपने जीवन को एक नई ऊर्जा देते है और अच्छा महसूस करने लगते है, पर शायद दिव्यांगजन यह सब कुछ सहजता से नहीं कर पाते।

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कानून को अपना काम करने दीजिए

आर्यन खान के सपोर्ट में अब फ़िल्म मेकर हंसल मेहता ने अजीब ट्वीट किया है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है कि गांजा और भांग कई देशों में लीगल है। हंसल मेहता का कहना है कि 377 की तरह इस कानून को बदलने के लिए आंदोलन होना चाहिए, क्योंकि इसका गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। अब तो हद ही हो गई सुपर स्टार का बेटा न होकर कोई राजा का बेटा हो गया जिनके लिए कानून को जड़ से बदलने की शिफ़ारिस होने लगी है।

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