Saturday, June 7, 2025
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लेख/विचार

पृथ्वी पर कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसको समस्या ना हो, कोई समस्या ऐसी नहीं जिसका समाधान ना हो

समस्या ही सफलता की जननी है – दुख रूपी चाबी से सुखों का द्वार खुलता है – एड किशन भावनानी
किसी ने ठीक ही लिखा है कि, पृथ्वी पर कोई भी एसा व्यक्ति नहीं होगा, जिसको कोई भी समस्या नहीं हो और पृथ्वी पर कोई भी समस्या ऐसी नहीं होगी, जिसका समाधान ना हो। गुरुनानक देव जी ने भी अपनी वाणी में कहा है कि : नानक दुखिया सब संसार। याने, दुनिया में हर व्यक्ति को कोई ना कोई दुख या समस्या जरूर होगी। इस पृथ्वीलोक पर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पद पर आसीन व्यक्ति से लेकर अंतिम श्रेणी के आखिरी व्यक्ति को भी कोई ना कोई समस्या या दुख जरूर होगा। चाहे वह कितना भी दावा करे कि वह सर्वसंपन्न भाग्यशाली व्यक्ति है, परंतु कहीं ना कहीं कोई ऐसी उसकी दुखती रग होगी जो उसकी समस्या या दुख का कारण होगा यह पक्की बात है।

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वुहान लैब से वायरस लीक होने की थ्योरी – डाॅ0 लक्ष्मी शंकर यादव

अमेरिकी राश्ट्रपति जो बाइडेन ने भी हाल ही में लैब से वायरस के लीक होने की थ्योरी सहित कोरोना की उत्पत्ति कैसे हुई, इसकी जांच करने के लिए दोबारा प्रयास करने कें आदेश दिए हैं। राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बीती 26 मई को अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को आदेश दे दिया है कि वे कोरोना के स्रोत का पता लगाने के लिए गहराई से जांच कर 90 दिनों में उनके समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करें। हालांकि चीन ने वुहान लैब से वायरस के लीक होने की थ्योरी को अत्यन्त असंभव कहकर खारिज कर दिया है और अमेरिका पर राजनीतिक हेरफेर का आरोप लगाया है। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलियन ने 8 जून को व्हाइट हाउस में संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि हम अपने अन्तरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ चीन पर पारदर्शिता बरतने के लिए दबाव डालते रहेंगे और इसके साथ ही हम अपनी जांच प्रक्रिया भी जारी रखेंगे।

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शब्दों का कारवाँ

आंख में ज्वाला और सीने में त्रिशूल रखते हैं;
हम भी अपनी ज़िंदगी के कुछ उसूल रखते हैं
हम वह हैं जो खुद को दिखाते हैं रास्ता;
बेकार की बातों के लिए लफ्ज़ फिजूल रखते हैं
जो करते हैं दिल से मोहब्बत हमसे;
अपने आपको हम उनमें मशगूल रखते हैं
हम नहीं कहते बड़े – बड़े शायर कहते हैं;
अल्फ़ाज़ आपके दिल में एक रसूल रखते हैं
हमारा भी दिल है कोई पत्थर नहीं;
हम भी चाहने वालों की तस्वीर वसूल रखते हैं।
शिवांगी जैन युवा लेखिका/साहित्यकार

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बच्चों के मौलिक अधिकारों को बाधित करता है बालश्रम – अतुल गोयल

बाल श्रम के खिलाफ हर साल 12 जून को ‘विश्व बाल श्रम निषेध दिवस’ मनाया जाता है। पहली बार यह दिवस वर्ष 2002 में बाल श्रम को रोकने के लिए जागरूकता और सक्रियता बढ़ाने के लिए शुरू किया गया था। बाल श्रम इतनी आसान समस्या नहीं है, जितनी लगती है। बच्चों को उनकी इच्छा के विरुद्ध किसी भी प्रकार के काम में शामिल करने का कार्य है बाल श्रम, जो उनके मौलिक अधिकारों को बाधित करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार चौदह वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को किसी कारखाने या खदान में या किसी खतरनाक रोजगार में नियोजित नहीं किया जाएगा। बाल श्रम की समस्या केवल भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह पूरे विश्व में प्रचलित है। यह समस्या अफ्रीका और भारत सहित कई अविकसित या विकासशील देशों में प्रमुख है। बाल श्रम एशिया में 22 फीसदी, अफ्रीका में 32 फीसदी, लैटिन अमेरिका में 17 फीसदी, अमेरिका, कनाडा, यूरोप और अन्य धनी देशों में 1 फीसदी है।

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बच्चे भविष्य की नींव बच्चों को मजदूरी नहीं किताबें दें

बच्चों को शिक्षित करें – शिक्षा सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक क्षेत्रों का सशक्त उपकरण, रोजगार का अस्त्र – एड किशन भावनानी
वैश्विक रूप से हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है। वैश्विक रूप से यह देखा गया है कि अनेक कमर्शियल संस्थानों, औद्योगिक संस्थानों, दवा उद्योग, खेत खलियानों गृहउद्योग, इत्यादि अनेक व्यवसायिक क्षेत्रों में छोटे-छोटे बच्चों से श्रम करवाया जाता है, क्योंकि उन क्षेत्रों में कामों के लिए यह छोटे-छोटे बच्चे आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं और अपेक्षाकृत रोजी या मजदूरी भी इनकी कम होती है और डेली वेजेस के रूप में रखकर आसानी से अपना काम करवा लेते हैं। दूसरी तरफ हम अनेक चौराहों, बाजारों, हाट बाजारों, में हमने छोटे-छोटे बच्चों को अकेले या अपने मातापिता के साथ खिलौने खाद्य पदार्थों इत्यादि बेचने को देखते रहते हैं।

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पीडीएस में तकनीकी प्रगति हो मगर पात्र लाभार्थियों की उपेक्षा नहीं

(वर्तमान में दिल्ली के मुख्यम्नत्री द्वारा घर-घर राशन वितरण की बात को लेकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) फिर से चर्चा में है. जरूरतमंदों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने और किसानों को उचित पारिश्रमिक सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली एक आवश्यक तरीका है.)
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) सस्ती कीमतों पर खाद्यान्न के वितरण और प्रबंधन की एक प्रणाली के रूप में विकसित हुई। हम देखते ही कि पिछले कुछ वर्षों में, पीडीएस देश में खाद्य अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के लिए सरकार की नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। यह समाज के जरूरतमंद वर्गों को बहुत सस्ते दामों पर बुनियादी खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुओं को वितरित करने की दिशा में काम करता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा वितरित की जाने वाली कुछ प्रमुख वस्तुएं गेहूं, चावल, दालें आदि हैं।

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जनसंख्या वृद्धि संसाधनों को निगल जायेगी

जनसंख्या बढ़ती गई, यूँ ही बेतरतीब, तो मानव को अन्न-जल, होगा नहीं नसीब, जनसंख्या की वृद्धि के, निकले ये परिणाम, जीवन के हर मोड़ पर, कलह और कुहराम।
जनसंख्या ज्वलंत समस्या बन कर आज हमसे समाधान मांग रही है। धरती की भी धारण करने की अपनी सीमा होती है। इस सीमा को पार करने के नतीजे जल, जंगल और जमीन की बौखलाहट के रूप में हम भुगत रहे हैं। हमारी लगातार बढ़ती आबादी के साथ उसकी जरूरतों की आपूर्ति के लिये प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है और नतीजे में हम बार-बार प्रकृति के प्रकोप का सामना करने को अभिशप्त हो गए हैं। मानव आबादी का बढ़ना दुनिया के कई हिस्सों में चिंता का कारण बन गया है, मुख्यतः गरीब देशों में। भारत बढ़ती जनसंख्या की समस्या से जूझ रहा है।

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महामारी के दौरान ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में कमी?

( देश के अधिकांश स्वास्थ्य केंद्र अकुशल या अर्ध-कुशल पैरामेडिक्स द्वारा चलाए जाते हैं और ग्रामीण सेटअप में डॉक्टर शायद ही कभी उपलब्ध होते हैं। आपात स्थिति में मरीजों को अपने जान पहचान के देखभाल अस्पताल भेजा जाता है जहां वे अधिक भ्रमित हो जाते हैं और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और बिचौलियों के एक समूह द्वारा आसानी से धोखा खा जाते हैं। )
2020 में पहली लहर की तुलना में, 2021 की दूसरी लहर में ग्रामीण हिस्सों में संक्रमण और मौतों की संख्या में तेजी से वृद्धि देखी गई है, जो देश की 1.3 बिलियन आबादी का 65% है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की अनिश्चित स्थिति को देखते हुए, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) ने सरकार से इन क्षेत्रों में परीक्षण और टीकाकरण को प्राथमिकता देने के लिए कहा है। भारतीय ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे को तीन स्तरीय प्रणाली के रूप में विकसित किया गया है।

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भारत ने बासमती चावल के पीजीआई टैग के लिए यूरोपीय यूनियन में आवेदन किया

– 27 सदस्यीय यूरोपीय संघ में पड़ोसी मुल्क द्वारा आवेदन का विरोध
भारत के बासमती चावल का वैश्विक निर्यात – यूरोपीय यूनियन पीजीआई टैग से खास उत्पाद के साथ क्वालिटी खुद ही जुड़ जाती है – एड किशन भावनानी
भारत एक गांव प्रधान व किसान प्रधान देश है भारत की मिट्टी ऐसी ओजस्वी है कि हीरे मोती रूपी खूबसूरत, सामर्थ, स्वास्थ्य और अपनी महक को विदेशों तक पहुंचाने वाले खाद्य पदार्थों वस्तुओं का जनन इस भारत माता की मिट्टी से होता है। न केवल इस मिट्टी से भारत में जन्मे व्यक्तित्व में निखार, संस्कार ओजस्वी तेज, आता है बल्कि इस मिट्टी के खेत खलियानों से उत्पन्न खाद्य वस्तुओं में भी गजब की महक व मिठास होती है।…बात अगर हम भारत की मिट्टी में उगे बासमती चावल की करें तो वाह!!! क्या बात है!!! भारतीय बासमती चावल का नाम सुनने से ही दूर दूर तक महक महसूस होने लगती है। भारत और पड़ोसी मुल्क के दायरे में हिमायल के कुछ खास भौगोलिक निचले क्षेत्रों में ही बासमती पैदा होती है।

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कुछ बेटियों से उनकी यातना के बारे में भी पूछो

एक अजन्मी अंतिमा की पीड़ा सुनों, 
मत उम्मीद रखो मुझसे की मेरी ज़िंदगी का अनुवाद तुम्हारी भावनाओं से जुड़ा हो “मैं अजन्मी अंतिमा हूँ एक छोटा सा अदम्य आक्रोशित किरदार” और तुम मुझे कभी नहीं समझ सकते। तुम्हें मुझे पढ़ने के लिए उस क्षितिज तक जाना होगा जहाँ से मेरी लिखी हर संज्ञा को महसूस कर सको। मेरे दर्द की कथोपकथन की सघनता को थामना किसी के बस में नहीं।
दर्द की आज्ञा का पालन करते मैंने शब्दों को थोड़ा सहलाया है, रेशमी एहसास के पन्नों पर मोतीयों की तरह पिरो कर लहू की स्याही से लिखी है एक दास्ताँ कहती हूँ।

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