Tuesday, April 22, 2025
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लेख/विचार

गोविंदपुर का जातीय हमला: किसके इशारे पर नाची पुलिस ?

मानसून आने को है। आम और जामुन के डाल पर पकने का मौसम बन गया है। आम का नाम आते ही दशहरी, लंगड़ा, अल्फांसो या किसी दूसरी प्रजाति के आम की तस्वीर आँख के सामने घूमने लगती है। जीभ में पानी आने लगता है और मन भागता है मलिहाबाद। यह आम राय बन चुकी है कि आम हो तो मलिहाबादी। वहां आम की तमाम किस्में एक ही पेड़ पर मिल जाएंगी। मगर आम तो सब जगह है। मलिहाबाद में आम की गुणवत्ता बढाने के लिए बागवान कुछ न कुछ रचनात्मक करते रहते हैं। और उसकी शोहरत दूर तक जाती है। होने को तो आपके गांव में भी अमराई होगी। जैसे रजवाड़ों और सामन्तों के गढ़ प्रतापगढ़ में आम के बगीचे खूब हैं। इस जिले को पड़ोसी बेल्हा भी कहते हैं। पर यहां आम की चर्चा नहीं होती। इस जिले की ब्रांडिंग ‘गुंडत्व’ के लिए है। ब्रांडिंग न कहें, बदनामी कहना ज्यादा ठीक होगा।

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फादर्स डे पर नहीं रियल लाइफ में भी माता-पिता से मोहब्बत करने वाले बनिये

सामने वाले घर से अचानक ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने की आवाज आने लगी। मैं यूँ ही बिस्तर पर लेटी किताब पढ़ रही थी कि उठ बैठी। सामने खिड़की पर नज़र डाली तो देखा कि सामने वाले घर में रहने वाला आदर्श अपने पिता पर चिल्ला रहा है। किसी बात को लेकर शायद बहस हो गई थी उनके बीच। पर ये कोई नई बात नहीं थी। वो हमेशा अपने पिता से ऊँची आवाज़ में बात करता था। मैंने उसे कभी उसकी पिता से अच्छे से बात करते नहीं देखा। हर छोटी बात पर गुस्सा होना उसकी फ़ितरत थी। कभी-कभी शायद उसने हाथ भी उठाया है अपने पिता पर। आदर्श उनकी इकलौती संतान है, इसीलिए उनका आदर्श के पास रहना मजबूरी है। पत्नी के देहांत के बाद वे एकदम अकेले हो गए उन्हें सिर्फ अपने बेटे का सहारा था। लेकिन आदर्श अपने परिवार में ऐसा रम गया कि उसे पिता की कोई परवाह ही नहीं। आदर्श की पत्नी भी उनसे दिनभर के सारे काम करवाती है। और कुछ कहने पर दोनों पति-पत्नी उन्हें जली-कटी बातें सुनते हैं।

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सिर्फ “फादर्स डे” ही नहीं, पिता के लिए हमारा हर दिन समर्पित होना चाहिये

“फादर्स डे’ यानी कि “पितृ_दिवस” है पर एक दिन में पिता की महत्ता नहीं बताई जा सकती, पूरा जीवन भी पिता की महत्वता बताने में कम पड़ जाएगा।
चाहें कोई भी देश हो, संस्कृति हो… माता-पिता का रिश्ता सबसे बड़ा माना गया है। भारत में तो इन्हें ईश्वर का रूप माना गया है। कोई पिता कहता है, कोई पापा, अब्बा, बाबा, तो कोई बाबूजी, बाऊजी, डैडी। कितने ही नाम हैं इस रिश्ते के पर भाव सब का एक। प्यार सबमें एक। समर्पण एक। पिता वो होता है जो हमें सही मार्ग दिखाता है, सही गलत में फर्क करना सिखाता है। आज पिता दिवस पर मेरे अस्तित्व के निर्माता, आदर्श व्यक्तित्व मेरे पिताजी के चरणो मे कोटिशः नमन… ।

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कोरोना के चलते मरीजों पर दोहरी मार -प्रियंका सौरभ

आज देश में एक तरफ कोरोना का भय है तो दूसरी तरफ अस्पतालों में इलाज के लिए सात-आठ लाख रुपये एडवांस में जमा कराने का दवाब लोगों को डर के साये में जीने के लिए मजबूर कर रहा है। ऐसे में आखिर लोग जाएं तो जाएं कहां। जीवन को बचाने की जद्दोजहद में वे जिस अस्पताल में है और डॉक्टर में भगवान् का रूप देख रहे हैं, वे इस संकट काल में जीवन का सौदा करने में लगे हैं। ऐसी ख़बरों का आना निसंदेह एक चिंता का विषय हैं. दरअसल संक्रमण के खिलाफ जंग के लिए निर्णय क्षमता का अभाव हर समय नजर आया है। यही वजह है कि एक दिन कुछ आदेश जारी होते हैं और फिर अगले दिन वे आदेश वापस हो जाते हैं। क्या ये सब स्वास्थ्य की समस्या को संभालने की निर्णय की प्रक्रिया में स्वास्थ्य विशेषज्ञों को शामिल नहीं करने का परिणाम है।

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आरक्षण के मामलों में कोर्ट के फैसले विरोधाभासी क्यों है ?? -प्रियंका सौरभ

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कुछ समुदायों को सीटों का आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। आरक्षण पर सुप्रीम कार्ट ने ये एक बड़ी टिप्‍पणी की है. शीर्ष न्‍यायालय ने कहा है कि किसी एक समुदाय को सीटों का आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका जिसमे मेडिकल (नीट) की उन सीटों पर 50 फीसदी ओबीसी आरक्षण देने की मांग की गई थी पर सुनवाई से मना करते हुए यह बात कही है।इसे तमिलनाडु की सभी राजनीतिक पार्टियों ने दाखिल किया था। साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि पिछड़े वर्ग के कल्‍याण के लिए सभी राजनीतिक दलों की चिंता का हम सम्‍मान करते हैं। लेकिन, आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है।
इससे पूर्व इस साल फ़रवरी माह में सरकारी नौकरियों में प्रमोशन के लिए आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि प्रमोशन में आरक्षण की मांग करना मौलिक अधिकार नहीं है। यह राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर करता है कि उन्हें प्रमोशन में आरक्षण देना है या नहीं? कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार की अपील पर यह फैसला सुनाया।

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पड़ोसी मुल्कों में बँट रही चीन की चाशनी भारत के लिए खतरनाक संदेश

एलएसी पर जारी तनाव के बाद चीन ने आर्थिक कूटनीति के आधार पर भारत के पड़ोसी मुल्कों को फसाना तेज कर दिया है। श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान का आर्थिक दोहन करने के बाद अब चीन की निगाहें भारत के एक और पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश पर लगी हैं। चीन एक के बाद एक भारतीय पड़ोसी मुल्कों पर जिस तरह अपनी पकड़ मजबूत करने में तन-मन-धन तीनों से तेजी दिखा रहा है उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि चीन शांति और समझौते की आड़ में कुछ बड़ा करने के फिराक में लगा है। चीन का पाकिस्तान की तरफ झुकाव पहले से ही जग-जाहिर है उसके बाद उसने श्रीलंका में निवेश बढ़ा कर श्रीलंका को भी अपने पाले में लगभग शामिल ही कर लिया है। वह यहीं नहीं रुकता उसने अपनी कूटनीतिक चालों से नेपाल व भारत के रोटी-बेटी के रिश्ते में भी दरार बना दिया है।

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सार्वजनिक परिवहन को ज्यादा साफ-सुरक्षित बनाना होगा – डॉo सत्यवान सौरभ

अब परिवहन सड़कों पर लौट आया है, लेकिन जब तक कोरोनोवायरस संक्रमण बढ़ रहा है, चीजें सामान्य से बहुत दूर रहेंगी। अर्थव्यवस्था को फिर से गति देने और शहरों में कामगारों को कार्यस्थल पर लाने में सार्वजनिक परिवहन एक प्रमुख माध्यम है, लेकिन कोरोना वायरस महामारी के समय में बसों, ट्रेनों की यात्रा को सुरक्षित बनाने की जरूरत महसूस हो रही है। कोविड-19 महामारी से प्रभावित पूरी दुनिया में सार्वजनिक परिवहन नये रूप में सामने आ रहा है। पहले जैसा होने में सालों लग जायेंगे। अब सवाल यही है क्या हम पहले जैसे परिवहन के साधनों का इस्तेमाल कर पाएंगे और कब से कर पाएंगे।
जब तक ये सामान्य नहीं हो जाता तब तक क्या सावधानियां रखने की जरूरत है और वायरस के साथ रहने वाले ’की वास्तविकता के अनुरूप सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में बदलाव लाने की तत्काल आवश्यकता है? कोविड-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए भारत में परिवहन का पूर्ण बंद था।

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कोरोना से जंग में योग की भूमिका

जैसा कि हम सब जानते हैं कि अभी तक कोविड -19 रूपी खतरनाक वायरस का पूरी दुनिया में कोई मान्यता प्राप्त इलाज नहीं मिल पाया है। यह वैश्विक महामारी दिन-प्रतिदिन प्रचण्ड रूप धारण करती जा रही है। एक के बाद एक नये और बड़े आंकड़े इस बीमारी के परिपेक्ष में देखने को मिल रहे हैं। लोगों के मन में इस बीमारी को लेकर एक अजीब सा खौफ घर कर चुका है लोग बेहद डरे हुए हैं। इस वैश्विक महामारी ने जहाँ एक तरफ लोगों के मुँह से निवाला छीना तो दूसरी तरफ लोगों की जिंदगियों से भयानक खेल भी खेलती जा रही है। दुनिया भर के डॉक्टर वैद्य इसका इलाज तलाशने में लगे हैं मगर अब तक असफलता ही हाथ लगी है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह वायरस कितना खतरनाक व जानलेवा है।

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हर्ड इम्युनिटी के भरोसे तो पूरा भारत कोरोनामय हो जायेगा -प्रियंका सौरभ

भारत में जैसे-जैसे कोरोना का प्रसार तेज हो रहा है, तो हर्ड इम्यूनिटी को लेकर चर्चा जोर पकड़ रही है। हर्ड इम्यूनिटी यानी अगर लगभग 70-90 फीसद लोगों में बीमारी के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाए तो बाकी भी बच जाएंगे। लेकिन इसके लिए वैक्सीन जरूरी है। क्या कोरोना वैक्सीन की अनुपलब्धता में हर्ड इम्युनिटी अपना काम कर पाएगी?
कोरोना की शुरुआत में ब्रिटेन ने हर्ड इम्यूनिटी का प्रयोग करने की कोशिश की। हालांकि वहां के तीन सौ से अधिक वैज्ञानिकों ने सरकार के इस कदम का विरोध किया और कहा कि सरकार को सख्त प्रतिबंधों के बारे में सोचना चाहिए, ना कि ‘हर्ड इम्यूनिटी’ जैसे विकल्प के बारे में, जिससे बहुत सारे लोगों की जान को अनावश्यक खतरा हो सकता है। मगर ब्रिटेन की सरकार ने कुछ दिनों तक अपने प्रयोग जारी रखे और वहां कोरोना ने भीषण तबाही मचाई।

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समाज में आज भी है सामन्तवाद का दबदबा

हमें समाज में आज भी सामन्तवादी झलक देखने को मिलती है। शादी विवाह या संबध हैसीयत के हिसाब से नहीं होता बल्कि व्यवहार से होता है, पर क्या यह व्यावहारिक है..?
हमारे यहां प्राचीन काल से ही माता-पिता अपने पुत्र-पुत्री को एक नया संसार बसाने में मदद करने के लिए अपनी ओर से सहायता देते आए हैं। यह एक स्वाभाविक मानव इच्छा होती है जिसके कारण लोग अपने बच्चों के प्रति स्नेह और अपनी आर्थिक क्षमता के अनुरूप उन्हें भेंट देते हैं।
कहा जाता है कि आजादी के इन सत्तर सालों में भारत ने बहुत प्रगति की है, लेकिन क्या इस प्रगतिशील देश में महिला की स्थिति में कुछ बदलाव आया है…?
एक ओर तो नारी सेना, प्रशासनिक सेवाओं, राजनीति और न जाने कहां-कहां कदम रख रही है और दूसरी ओर, दहेज के लोभी महिषासुर उसी नारी को जिन्दा जला डालते हैं। उपभोक्तावाद के इस दौर ने क्या विवाह को एक मण्डी नहीं बना दिया है जहां हर कोई अपनी बोली लगवाने के लिए सजा-धजा खड़ा है?

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