Sunday, June 8, 2025
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लेख/विचार

अन्धविश्वास से उपजी कोरोना महामाई -प्रियंका सौरभ

कोरोना वायरस से पूरी दुनिया लड़ रही है। कोरोना से छुटकारा पाने के लिए कई देश इसकी वैक्सीन बनाने पर रिसर्च कर रहे हैं लेकिन अभी तक कोरोना की वैक्सीन तैयार नहीं हो पाई हैं। ऐसे में कोरोना को लेकर तमाम तरह की अफवाहें, अंधविश्वास और भ्रम भी फैलाए जा रहे हैं।कोविड-19 महामारी का कारण बने कोरोनावायरस ने देश में धीरे-धीरे भगवान का रूप ले लिया है. अंधविश्वास में लोग इसे ‘कोरोना माई’ बुला रहे हैं. वायरस को ये नया नाम देने वाले, देवी मानकर देश के कई हिस्सों में इसकी पूजा कर रहे हैं. पूजा के दौरान ‘कोरोना माई’ को लौंग, लड्डू और फ़ूल चढ़ाए जा रहे हैं. महिलाएं कोरोना को माई मानकर पूजा कर रहीं हैं। जिसकी पूजा करने से उसका प्रकोप खत्म हो जाएगा।

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योगी सरकार के योग्य शिक्षक चयन प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट का एक पक्षीय फैसला चिंतनशील मुद्दा

कोरोना से उत्पन्न हुई इस महा आपदा संकट काल में जहाँ दुनिया खुद को संभालने की कोशिश में लगी है दो वक्त की रोटी की जुगत में गरीब असहाय बेरोजगार दर-दर भटक रहे हैं। दुनिया के लगभग हर देश आर्थिक संकट से उबरने में लगे हुए हैं इन सबसे बड़ी और कठिन चुनौती कोरोना से संक्रमित हुए लोगों को उपचार व बचाव संसाधन मुहैया कराने में पूर्णतः व्यस्त हैं ऐसे में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार वह हर कार्य कर रही है जो इस संकट काल के दौरान जरूरी है। इसी परिपेक्ष में कोरोना बचाव लॉकडाउन ने भारी संख्या में लोगों को बेरोजगार बना दिया लोगों का भरण-पोषण करने का आधार उनसे छिन गया। राज्य और देश दोनों स्तर पर बेरोजगारी में इजाफा देखा जा सकता है इन सबके बीच योगी सरकार की कार्यशैली व क्रियान्वयन काबिले तारीफ है।
इस बेरोजगारी को दूर करने हेतु व शिक्षा के क्षेत्र में योग्य शिक्षक मुहैया कराने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार आज करीब दो सालों से अधर में लटकी ६९००० शिक्षक भर्ती को जल्द से जल्द पूर्ण करने में लगी थी जिससे इस बेरोजगारी में कुछ तो कमी आ सके। इससे तमाम घरों के चूल्हे फिर से जलने लगते। करीब ६९००० परिवारों का भरण-पोषण संभव हो जाता जो कि एक उत्कृष्ट कार्य होता जिसकी चर्चा भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में की जाती यह कहकर कि जब दुनिया बचाव में व्यस्त थी तो उत्तर प्रदेश की सरकार बचाव के साथ-साथ रोजगार भी मुहैया करा रही थी।

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कलाकारों पर कहर, कलाएं गई ठहर -डॉo सत्यवान सौरभ

आधुनिक परिवेश में सांस्कृतिक मूल्यों को सहेजने का यदि कोई कार्य कर रहा है तो वह कलाकार ही हैं। मनुष्य को मनुष्यता का पाठ पढ़ाने वाली शिक्षा, जिसमें त्याग, बलिदान और अनुशासन के आदर्श निहित हैं, यदि कहीं संरक्षित है तो वह मात्र लोक कलाओं में ही है। लेकिन कोरोना महामारी के कारण देश भर में कला क्षेत्र के लोग रोजी रोटी के लिए तरस गए है, इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है कि दुनिया भर के लोगो को अपनी कलाओं और हुनर से जगरूक करने वाले लोग अपने अधिकारों के लिए आगे नहीं आये।
उन्होंने अपने आप ही सब कुछ ठीक होने में संतुष्टि समझी लेकिन उनको क्या पता था कि ये दौर बहुत लम्बा चलेगा और मंच, नुक्कड़ व् सिनेमा उनसे कोसों दूर हो जायेगा परिणामस्वरूप आज उनके पास काम नहीं है बड़े कलाकार तो जमा पूँजी पर गुजरा कर लेंगे लेकिन परदे के पीछे के कलाकारों का आज बुरा हाल है उनके लिए तो मजदूरों और प्रवासी लोगो जैसे सुर्खिया, खबरें, योजनाएं लॉक डाउन में ही कैद होकर रह गई है।

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हल्के भूकम्पों की अनदेखी कहीं भारी न पड़ जाए

दिल्ली में लगातार बीते दो महीनों में 14 बार भूकम्पीय झटके लगे हालांकि इन झटकों से किसी भी प्रकार के जान-माल का खतरा नहीं हुआ है क्योंकि यह भूकम्पीय झटके रिक्टर पैमाने पर बहुत हल्के तौर पर अंकित किए गए। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलाजी ने बताया सोमवार को दोपहर एक बजे के लगभग दिल्ली एनसीआर में फिर से भूकम्पीय झटके महसूस किए गए हालांकि इसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 2.1 आंकी गई जो कि बहुत हल्की तीव्रता थी। इस भूकम्प का केंद्र दिल्ली-गुरुग्राम बार्डर था इसकी गहराई 18 किलोमीटर बताई गई है। गौरतलब है कि दिल्ली एनसीआर में अप्रैल माह से अब तक लगभग दर्जनों मध्यम व निम्न तीव्रता वाले भूकम्प के झटके महसूस किए गए हैं हालांकि इससे किसी के भी हताहत होने की कोई सूचना नहीं मिली है।

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चिंतन का महत्व

मनुष्य प्रकृति का एकमात्र ऐसा प्राणी है जिसमें सोच विचार, तर्क वितर्क, चिंतन, विश्लेषण आदि मानसिक क्रियाएं होती रहती हैं। जब भी कोई घटना घटित होती है अथवा समस्या उत्पन्न होती है तो उसका समाधान विचार विमर्श और चिंतन के द्वारा खोजने का प्रयास किया जाता है। यह प्रयास व्यक्तिगत या सामूहिक किसी भी रूप में हो सकता है।निजी समस्याओं के लिए व्यक्तिगत और पारिवारिक अथवा सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए सामूहिक चिंतन की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया के दौरान हमें अनेक अनुभव प्राप्त होते हैं जो हमारी समझ बढ़ाने का प्रयास करते हैं। हम अपने अनुभवों को भिन्न-भिन्न तरीकों से देखते हैं, उसका विश्लेषण करते हैं और फिर उससे सीखते हैं। चिंतन का तात्पर्य केवल अपने अनुभवों की पुनरावृत्ति नहीं है बल्कि यह अनुभव और समझ के बीच की कड़ी है।प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जॉन डीवी के अनुसार, “हम अक्सर तब चिंतन करते हैं जब दुविधा या संघर्ष की स्थिति होती है।” जब हम अपने जीवन में किसी चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना करते हैं तो हम भावनात्मक स्तर पर प्रभावित होते हैं और उससे निकलने के लिए उपायों की खोज हेतु चिंतन करते हैं यह चिंतन पूर्व अनुभव या परिस्थिति को आधार बनाकर किया जाता है जिससे कि उस परिस्थिति विशेष से निपटने के लिए हल प्राप्त होता है। यदि चिंतन या सोच विचार किए बिना ही हम किसी दुविधा या संघर्ष की स्थिति से निकलने का प्रयास करें तो संभव है कि हम संकट में पड़ जाएं। चिंतन के दौरान सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों पर विचार किया जाना चाहिए जिससे हम मार्ग की बाधाओं का सामना करने के लिए मानसिक तौर पर तैयार रहें।

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हमारे समाज की सोच बनाम स्त्री का अस्तित्व

ज़माना बेशक आज बहुत आगे बढ़ चूका हो, मगर स्त्रियों के बारे में पुरुषों के द्वारा कुछ जुमले आज भी बेहद प्रचलित हैं, जिनमें से एक है स्त्रियों की बुद्धि उसके घुटने में होना… “क्या तुम्हारी बुद्धि घुटने में है”
ऐसी बातें आज भी हम आये दिन, बल्कि रोज ही सुनते हैं…. और स्त्रियाँ भी इसे सुनती हुई ऐसी “जुमला-प्रूफ” हो गयीं हैं कि उन्हें जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता इस जुमले से।
हम कहते हैं कि हिंदुस्तान पहले से बहुत बदल गया है। आज महिलाओं की स्थिति सुदृढ़ है मगर है कहां सुदृढ़ स्थिति है यदि सुदृढ़ स्थिति है तो आए दिन किसी भी लड़की के साथ बलात्कार जैसी घटनाएं क्यों घटित होती है…?
क्यों कहीं पर मार कर फेंक दी जाती है ? चाहे फिर वह जवान हो या 6 महीने की बच्ची ही क्यों ना हो क्यूँ नहीं सुरक्षित है वह आज भी जबकि वर्तमान समय तो पूरा का पूरा नियम कानून संविधान से भरा पूरा है फिर ऐसी स्थितियां समाज में वरिष्ठ जनों और विद्वानों के रहते हुए कैसे उत्पन्न होती है …?
फिर कहते हैं कि पुरातन से आधुनिकता की ओर रुख कर रहे हैं मगर आज यथा स्थिति को देखते हुए बड़े ही सोचनीय दयनीय शब्दों में कहना पड़ता है कि आखिर किस समाज में जी रहे हैं हम, भले ही पाश्चात्य सभ्यता में हम लिप पुत चुके हैं और निरंतर इस ओर अग्रसर है, मगर हम अपने संस्कारों की रवायत भूलते जा रहे हैं। अपनी मां बहन बेटियों के प्रति सम्मान का भाव कहीं पर खोते जा रहे हैं आखिर किस के मद में चूर हो गए।

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विश्व महासागर दिवस- जीने के लिए महासागरों को बचाना होगा

जीवन में महासागरों के महत्व को समझते हुए पर हम पृथ्वी वासियों का ध्यान महासागरों के अस्तित्व को अक्षुण्ण रखने की ओर अवश्य ही जाना चाहिए। वर्तमान में मानवीय गतिविधियों का असर समुद्रों पर भी दिखने लगा है। समुद्र में ऑक्सीजन का स्तर लगातार घटता जा रहा है और तटीय क्षेत्रों में समुद्री जल में भारी मात्रा में प्रदूषणकारी तत्वों के मिलने से जीवन संकट में हैं। तेलवाहक जहाजों से तेल के रिसाव के कारण समुद्री जल के मटमैला होने पर उसमें सूर्य का प्रकाश गहराई तक नहीं पहुँच पाता, जिससे वहाँ जीवन को पनपने में परेशानी होती है और उन स्थानों पर जैव-विविधता भी प्रभावित हो रही है। महासागरों के तटीय क्षेत्रों में भी दिनों-दिन प्रदूषण का बढ़ता स्तर चिंताजनक है।

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मैंने तुम पर भरोसा किया, तुमने किया विश्वासघात

आदमी अपने जीवन काल में क‍िसी न क‍िसी जानवर को पानी प‍िलाता ही है या क‍िसी न क‍िसी रूप में उसे खाना देता ही है। ऐसे में मनुष्‍य और इन जानवरों के बीच कम से कम एक भरोसे का रिश्‍ता तो रहा ही है। बेशक कोई व्‍यक्‍त‍ि हाथी को अपने घर में नहीं पालता, लेक‍िन जब आदमी हाथी को छूता है तो दोनों के बीच एक भरोसा तो होता ही है क‍ि दोनों में से कोई भी क‍िसी को नुकसान नहीं पहुंचाएगा।
देश में गजानन के स्‍वरुप की प्रतीक एक गर्भवती हथि‍नी को भोजन के रूप में पटाखे खिलाकर उसके पेट में पल रहे भ्रुण के साथ उसके जीवन को बेहद ही बेरहमी के साथ ध्‍वस्‍त करने की हदृयव‍िदारक घटना उसी देश में होती है, जहां पुण्‍य-प्रताप के ल‍िए पक्षि‍यों को दाना-पानी और चींटी को आटा खि‍लाया जाता है। गाय और कुत्‍तों को रसोई घर में बनी पहली रोटी खि‍लाई जाती है।

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आत्मनिर्भरता से पहले जागरूकता की जरूरत

आज देश में आत्मनिर्भरता की मुहिम जो चल रही है वह अपने आप में एक उत्कृष्ट पहल है जिसे बहुत पहले ही चलाया जाना चाहिए था। जब स्थितियां सामान्य थीं लोगों का अर्थतंत्र गतिशील था लोग आत्मनिर्भरता को हासिल करने में सक्षम थे तब यह मुहिम शायद काफी ज्यादा प्रभावी होती मगर आज देश ही नहीं बल्कि पूरा विश्व इस कोरोना महामारी की चपेट में है और सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था चरमाराई हुई है लोगों के रोजगार छिन गए हैं लोग भूखे-प्यासे दर-दर भटक रहे हैं निम्न व मध्यमवर्गीय लोगों में तो इतनी भी क्षमता नहीं कि वो खुद को ही संभाल सकें ऐसे में आत्मनिर्भरता की बात तो बेमानी होगी।
इस आत्मनिर्भरता की रोटी को थाली में परोसने से पहले उसे इस रोटी को खाने के तरीके से अवगत कराया जाना चाहिए था क्योंकि बिना जागरूकता के कोई भी अभियान का सफल होना नामुमकिन है। जागरूकता किसी भी अभियान के लिए वह संजीवनी बूटी है जो शून्यावस्था के अभियान को एकजुट होकर शिखर पर पहुंचा देती है।

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विकास का आधार स्तंभ प्रवासी श्रमिकों का पलायन

कोरोना का कहर पूरे विश्व में छाया है कोरोना को फैलाव को रोकने के लिए सरकार सम्पूर्ण भारत मे लॉकडाउन कर रखा है जिससें पूरा देश
थम गया है सभी गतिविधियां बंद है हवाई, रेलवें, सड़क यातायात बंद है सभी शहरों व गांवों की सड़कें और गलियां सुनी पड़ी हैं। जो जहाँ है वो वही ठहर गया सभी देशवासी अपने घरों में कैद जीवन को जी रहे है सरकार ने मुलभूत आवश्यकओं के लिए राशन, दवाई आदि की दुकानों को सोसल डिसटेंस के साथ खोलने और होम डिलीवरी की सुविधा दी है।
लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो शहरों में दिहाड़ी कर शाम को अपने तथा अपने परिवार की रोटी का जुगाड़ करता था वह कहां? जाए। इन प्रवासी मजदूरों की जेब में न तो पैसे हैं और न ही खाने के लिए घर में राशन घर में बैठकर कोरोना वायरस से जंग जीतने के लिए कोई विकल्प नहीं है। लॉकडाउन के कारण सारा कामकाज ठप है। व्यवस्था अस्त-व्यस्त है। दिहाड़ीदार मजदूर जो छोटे-मोटे उद्योगों, दुकानों व ढाबों पर कार्य करते थे उनके पास भी कुछ करने को नहीं है। उनके पास काम नहीं तो पैसा नही खाने के लाले उपर कमरे के किराए के लिए प्रेशर भूखे और बदहाली में कोरोना, संक्रमण और जमा पूंजी के खत्म होने के साथ मौत के काउंडाउन के बीच अपने भूख प्यास से बिलखते परिवार की जान की सुरक्षा और भविष्य की चिंता और हालात से मजबूर जाएं तो जाएं कहां! चूंकि लॉकडाउन की अवधि धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है इससे प्रवासी मजदूरों मे अनिश्चितता के डर और घबराहट की स्थिति में शहरों से पलायन कर अपने घर-गांव वापस जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।

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