आज समाज में व्याप्त तमाम अपराधिक प्रवृत्तियों में सबसे ज्वलंत अपराध है महिला यौन शोषण। यह समाज की मानसिक विकृति व विक्षिप्तता की स्थिति है जो हमारे मनु स्मृति के वचन ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ पर आधारित सनातनी संस्कृति व शिक्षा पर एक बहुत बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह खड़ा करता है। स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद के आध्यात्मिक व धर्मप्रधान देश में इंसानों की पाश्विक प्रवृति क्या संकेत दे रही है?
2012 में भारत की राजधानी दिल्ली में हुआ जघन्य निर्भया आपराधिक हत्या काण्ड के दोषी आज भी दंडित नहीं हुए। भारत की लचर न्यायव्यवस्था 7 वर्ष से अधिक समय लेकर भी अपराधियों को सजा नहीं सुना पायी है। जबकि अपराधी रंगे हाथ पकड़े गए, अपराध भी कुबूल किया। किन्तु न्यायव्यवस्था न जाने किस असमंजस की स्थिति में रहती है। त्वरित निर्णय ले ही नहीं पाती। अपराध पर अपराध होते जाते हैं, न्यायव्यवस्था आंखों में पट्टी बांधे बस न्याय का तराजू हाथ में थामे मूर्तिवत खड़ा रहती है।
लेख/विचार
कौन है महिलाओं का चौकीदार ? -अनिल अनूप
आज भारत उस मुकाम पर पहुंच चुका है जहां तीन तलाक से मुक्ति मिल चुकी है, कश्मीर में धारा 370 से मुक्ति मिल चुकी है, अयोध्या जैसी समस्या का समाधान किया जा चुका है, समान आचार संहिता लागू करने की बात की जा रही है, हम टेक्नोलॉजी की ऊंचाइयों तक पहुंच चुके हैं पर रेपिस्ट के लिए कठोर कानून, फास्ट ट्रैक अभी तक मुकर्रर नहीं, किसी केस में फांसी की सजा मुकर्रर होती भी है तो भी विलंबित हो जाती है। ऐसे में हमारा चांद पर परचम लहराना भी वृथा है जहां धरती पर ही बेटियां महफूज नहीं। शहरों की तो बात छोडि़ए, यहां देवभूमि हिमाचल में भी वहां के लोगों को आज भी भोले-भाले लोगों की संज्ञा दी जाती है, संस्कृति, भाईचारे की बात की जाती है, सुरक्षित माहौल की बात की जाती है, यहां पर भी गुडि़या रेप केस ने पूरे हिमाचल को झकझोर कर रख दिया है और आरोपी अभी तक नहीं पकड़े गए हैं। ऐसे में बेटियां कैसे महफूज रहें।
महाराष्ट्र गेम ओवर या ‘पवार’ गेम रईस अहमद ‘लाली’
गेम ओवर हो गया। ‘पवार’ गेम के आगे महाराष्ट्र के नंबर गेम में भाजपा की यह हालत होनी ही थी। जिस तरह सत्ता पर काबिज होने के लिए उसने हक़ीकत को नज़रअंदाज कर उतावलापन दिखाया, उससे इस खेल में उसकी हार सुनिश्चित थी। बावजूद इसके उसने हर जरिये से हर हथकंडे अपनाने की कोशिश की। और, जब अंतत: कोई चारा नहीं बचा तो 80 घंटे के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को इस्तीफा देकर शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन सरकार का रास्ता साफ करना पड़ा।
अंतत: अब यह तय हो गया है कि महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने जा रही है। और इस सरकार का नेतृत्व करेंगे शिवसेना के उद्धव ठाकरे। जाहिर है जब सरकार की सूरत साफ लग रही है, तो इस सरकार के भविष्य को लेकर बहस-मुबाहिसों का दौर भी शुरू हो गया है। बहुतों का मानना है कि बेमेल गठबंधन की यह सरकार ज्Þयादा दिनों तक चल नहीं पाएगी। कारण, एक तरफ शिवसेना जैसी हिंदुत्वादी विचारधारा वाली पार्टी है तो दूसरी तरफ एकदम विपरीत विचारधारा वाली एनसीपी, कांग्रेस जैसी पार्टियां। नितिन गडकरी समेत कई नेताओं ने कहा है कि यह अवसरवादी सरकार होगी और बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी। वहीं कई तो अब भी इस खेल में भाजपा को ही विजेता बता रहे हैं।
क्या अब राजनीति की परिभाषा बदल गई ?
यह बात सही है कि राजनीति में अप्रत्याशित और असंभव कुछ नहीं होता, स्थाई दोस्ती या दुश्मनी जैसी कोई चीज़ नहीं होती हाँ लेकिन विचारधारा या फिर पार्टी लाइन जैसी कोई चीज़ जरूर हुआ करती थी। कुछ समय पहले तक किसी दल या नेता की राजनैतिक धरोहर जनता की नज़र में उसकी वो छवि होती थी जो उस पार्टी की विचारधारा से बनती थी लेकिन आज की राजनीति में ऐसी बातों के लिए कोई स्थान नहीं है । आज राजनीति में स्वार्थ, सत्ता का मोह, पद का लालच, पुत्र मोह, मौका परस्ती जैसे गुणों के जरिए सत्ता प्राप्ति ही अंतिम मंज़िल बन गए हैं। शायद इसीलिए अपने लक्ष्य को हासिल करने की जल्दबाजी में ये राजनैतिक दल अपनी विचारधारा, छवि और नैतिकता तक से समझौता करने से नहीं हिचकिचाते।
अभी कठिन है डगर मन्दिर की
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा श्रीराम मन्दिर के पक्ष में दिये गए ऐतिहासिक एवं अभूतपूर्व निर्णय के बाद 491 वर्ष से चले आ रहे विवाद का अन्त भले ही हो गया हो, परन्तु मन्दिर निर्माण पर घमासान होना अभी शेष है। शीर्ष अदालत के आदेशानुसार मन्दिर निर्माण का दायित्व केन्द्र सरकार द्वारा गठित न्यास या ट्रस्ट को सौंपा जायेगा। उसके बाद यह ट्रस्ट ही तय करेगा कि मन्दिर कब और कैसे बनेगा। इस ट्रस्ट में कौन-कौन होगा इसके लिए केन्द्र सरकार ने अन्दर ही अन्दर कवायद शुरू कर दी है। इसके साथ ही ट्रस्ट में महती भूमिका निभाने तथा मन्दिर निर्माण का श्रेय लेने के लिए विभिन्न धर्मगुरु, राजनेता तथा अनेक हिन्दू संगठन भी पूरी तरह सक्रिय हो गए हैं। जिसकी परिणिति अन्ततोगत्वा एक दूसरे की टांग खिंचाई के रूप में होने की पूर्ण सम्भावना है।
गौरतलब है कि सन 1989 में रष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद के नेताओं ने भव्य राम मन्दिर निर्माण हेतु शिलान्यास करवाया था। इसमें गोरखनाथ मन्दिर के तत्कालीन महन्त अवैद्यनाथ की भी महती भूमिका रही थी। गोरखनाथ मन्दिर के वर्तमान महन्त मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ हैं। अतः ट्रस्ट में योगी आदित्यनाथ की महत्वपूर्ण भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। वहीं संघ भी ट्रस्ट में अपनी विशेष भूमिका चाहेगा।
सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती विशेष
सरदार वल्लभभाई पटेल जिनको लौह पुरुष के रूप में जाना जाता है। चूंकि भारत के एकीकरण में सरदार पटेल का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था, इसलिए उन्हें भारत का लौह पुरूष कहा गया। इनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 में हुआ। भारत के लौह पुरुष के साथ-साथ भारत का बिस्मार्क के रूप में भी जाना जाता हैं। इन्होंने आज़ादी के बाद विभिन्न रियासतों के एकीकरण में प्रमुख भूमिका निभाई और भारत के और टुकड़े होने से बचाया हैं। सरदार वल्लभभाई पटेल का विचार था की,”शक्ति के अभाव में विश्वास व्यर्थ है। विश्वास और शक्ति, दोनों किसी महान काम को करने के लिए आवश्यक हैं।”
भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने। सरदार पटेल ने महात्मा गांधी से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। बारडोली सत्याग्रहका नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहाँ की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की। भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इसे भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) में परिवर्तित करना सरदार पटेल के प्रयासो का ही परिणाम है।
कुर्सी का जोड़ तोड़ बनाम जनादेश !

प्रकृति ही देगी प्लास्टिक का हल
“आदमी भी क्या अनोखा जीव है, उलझनें अपनी बनाकर आप ही फंसता है, फिर बेचैन हो जगता है और ना ही सोता है।” आज जब पूरे विश्व में प्लास्टिक के प्रबंधन को लेकर मंथन चरम पर है तो रामधारी सिंह दिनकर जी की ये पंक्तियाँ बरबस ही याद आ जाता है । वैसे तो कुछ समय पहले से विश्व के अनेक देश सिंगल यूज़ प्लास्टिक का उपयोग बंद करने की दिशा में ठोस कदम उठा चुके हैं और आने वाले कुछ सालों के अंदर केवल बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का ही उपयोग करने का लक्ष्य बना चुके हैं। भारत इस लिस्ट में सबसे नया सदस्य है। जैसा कि लोगों को अंदेशा था, उसके विपरीत अभी भारत सरकार ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक को कानूनी रूप से बैन नहीं किया है केवल लोगों से स्वेच्छा से इसका उपयोग बन्द करने की अपील की है। अच्छी बात यह है कि लोग जागरूक हो भी रहे हैं और एक दूसरे को कर भी रहे हैं।
प्लास्टिक बंद लेकिन विकल्प क्या..?

मानव का ‘मन’ सबसे अच्छा तीर्थस्थान है!
मनुष्य का जन्म तो सहज होता है लेकिन मनुष्यता उसे कठिन परिश्रम से प्राप्त करनी पड़ती है। सब कुछ हमारे अंदर स्थित मन रूपी तीर्थस्थान में ही है। स्वर्ग-नरक कहीं बाहर या आसमान में नहीं वरन् हमारे मन में ही है। यदि मन में हमने ईश्वरीय विचारों को बसा रखा है तो हमारे अंदर ही स्वर्ग है। यदि हमने अपने मन में स्वार्थ से भरे विचार भर रखे हैं तो जीवन नरक के समान है। हम संसार के किसी भी तीरथ में चले जाये यदि हमारे मन में अशांति है तो किसी भी तीरथ में शांति नहीं मिल पायेगी। क्योंकि हम अशांति की अपनी पूंजी साथ-साथ लेकर जायंेगे। अन्त में हम इस निष्कर्ष में पहंुचते है कि मानव का मन सबसे अच्छा तीर्थस्थान है। मानव प्राणी अपने प्रभु से पूछे किस विधि पाऊँ तोहे, प्रभु कहे तू मन को पा ले, पा जायेगा मोहे। आइये, मन के महत्व को एक सुन्दर भजन की इन पंक्तियों द्वारा समझते हैं – तोरा मन दर्पण कहलाये भले बुरे सारे कर्मों को, देखे और दिखाये। मन ही देवता, मन ही ईश्वर, मन से बड़ा न कोय। मन उजियारा जब जब फैले, जग उजियारा होय। इस उजले दर्पण पे प्राणी, धूल न जमने पाये। सुख की कलियाँ, दुख के कांटे, मन सबका आधार। मन से कोई बात छुपे ना, मन के नैन हजार। जग से चाहे भाग ले कोई, मन से भाग न पाये। तन की दौलत ढलती छाया मन का धन अनमोल। तन के कारण मन के धन को मत माटी मंे रौंद। मन की कदर भुलाने वाला हीरा जनम गवाये। मानव शरीर भगवान् की सबसे बड़ी सौगात है। मनुष्य का जन्म भगवान का हमारे लिए सबसे बड़ा उपहार है। जीवन को छोटे उद्देश्यों के लिए जीना तो जीवन का अपमान है। अपनी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों को भुलाकर उसे समाज विरोधी कामांे, भोग एवं वासनाओं में लगाना बेहोशी में जीवन बर्बाद करने के समान है। जीवन अनन्त है हमारी शक्तियाँ भी अनन्त हंैं, हमारी प्रतिभाएँ भी अनन्त हैं। ऐसा मानना है कि हम अपनी मानसिक शक्तियों का मात्र 1 प्रतिशत से अधिकतम 8 प्रतिशत तक ही उपयोग कर पाते हैं। अभी तक संसार का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति 8 प्रतिशत तक ही अपनी बुद्धि का उपयोग कर पाया है। यह मानव जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी है कि मनुष्य की 92 प्रतिशत बुद्धि सुप्त अवस्था में ही है। कैरियर, नौकरी या व्यवसाय के द्वारा हम अपने अंदर के संगीत को बिना खुलकर तथा खिलकर अभिव्यक्त किये अपनी कब्र में साथ लेकर चले जाते हंै। सिकुड़कर जीना प्रभु प्रदत्त अनमोल हीरे जैसे जीवन को कोयले के मूल्य में आंकना के समान है। मेरा शरीर मैं नहीं हूँ, शरीर मेरा मित्र है। मेरा मन मैं नहीं हूँ, मन मेरा औजार है। हवेली में जब मालिक आता है तो सारे नौकर आलस्य छोड़कर अपने काम में लग जाते हैं। अर्थात जब हमारे शरीर रूपी मंदिर से होने वाले प्रत्येक कार्य-व्यवसाय आत्मा की इच्छा तथा आज्ञा के अनुसार होते हैं तो पांचों इन्द्रियां (आंख, कान, नाक, जीभ तथा स्पर्श) तथा छठीं इंद्रिय मन रूपी नौकर अपने-अपने कार्यों को अखण्ड आज्ञाकारी सेवक की तरह करते हुए महान उद्देश्य की प्राप्ति कराते हैं। इसलिए जरूरी है कि हमें शरीर रूपी मंदिर में आत्मा के रूप में ईश्वर की स्थापना करनी चाहिए। सारे कार्य ईश्वर की इच्छा तथा आज्ञा के अनुकूल होने चाहिए। संसार में मिट्टी, पत्थर, लोहे तथा गारे से बने जिन मंदिरों, मस्जिदों, गिरजों तथा गुरूद्वारों में हम श्रद्धा के साथ जाते हैं। ये मनुष्य ने सामूहिक रूप से किसी पवित्र स्थान में बैठकर पूजा, पाठ, इबादत, नमाज, प्रेयर, सबत आदि करने के लिए बनाये हैं। ये मंदिर, मस्जिद, गिरजा तथा गुरूद्वारा मनुष्य द्वारा निर्मित हंै तथा मानव शरीर रूपी मंदिर, मस्जिद, गिरजा तथा गुरूद्वारा ईश्वर निर्मित हैं। इस ईश्वर निर्मित मानव शरीर को सर्वोच्च महत्व देना चाहिए क्योंकि शरीर के द्वारा ही जीवन के महान उद्देश्य अपनी आत्मा का विकास किया जा सकता है। शरीर के ऊपर इन्द्रियाँ, इन्द्रियों के ऊपर मन, मन के ऊपर बुद्धि, बुद्धि के ऊपर आत्मा का स्थान होना चाहिए। इसके क्रम के बिगड़ने से जीवन असंतुलित हो जाता है। शरीर से लेकर आत्मा तक के सही क्रम को कायम रखने के लिए हमें स्वयं के सत्य अर्थात मैं कौन हूं? इस संसार में किस महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आया हूं?, पांच इन्द्रियों (आंख, कान, नाक, जीभ तथा स्पर्श) के सत्य तथा मनोशरीर यंत्र के सत्य का ज्ञान होना चाहिए। हमारा जीवन संसार में इन्हीं सत्यों की वास्तविकताओं के चारों तरफ घूमता है। असहज मन जब हमारे जीवन को अपनी मर्जी के अनुसार चलाने लगता है तब जीवन अनेक कठिनाइयों तथा दुखों से घिर जाता है। इसलिए हमें मन को अपना बनाने के लिए कार्य करना चाहिए। मन हमारा अकंप हो, मन हमारा प्रेम से भरा हो, मन हमारा निर्मल हो तथा मन हमारा अखण्ड आज्ञाकारी हो। आत्मा ईश्वरीय गुणों के प्रकाश से प्रकाशवान होती है। प्रकाशित आत्मा संसार से ‘और अधिक की चाह’ को समाप्त कर ‘सब कुछ अंदर है’ के विश्वास को जगाती है। हमें प्रभु की इच्छा को अपनी इच्छा बनाना चाहिए ना कि अपनी इच्छा को प्रभु की इच्छा बनाने की कोशिश करनी चाहिए। गीता हमें सीख देती है कि अब कर्म करते हुए फल की इच्छा नहीं करना चाहिए वरन् अब यज्ञ करना चाहिए। अर्थात सीधे अपने स्रोत से महाफल की चाह के साथ महाकर्म करना चाहिए। एक व्यक्ति एक संत के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचा। उस व्यक्ति ने संत से दुःखी होकर निवेदन किया कि उसकी प्रबल इच्छा है कि वह अपने जीवन काल में एक सुन्दर तथा भव्य मंदिर बनाये। लेकिन उस भव्य मंदिर को बनाने के लिए उसके पास पैसा नहीं है। संत ने मुस्कराकर उससे कहा कि तुम्हें दुःखी होने के कोई आवश्यकता नहीं है। बस तुम एक काम करो अपने मन को ही भगवान का मंदिर बनाने का निर्माण कार्य इसी क्षण से शुरू कर दो। यदि उसके बाद भी तुम्हारे अंदर और मंदिरों का निर्माण करने की इच्छा जाग्रत हो तो अपने आसपास के लोगों के जीवन को भी इसी प्रकार अच्छा बनाने के लिए निरन्तर मनोयोगपूर्वक लगे रहना। संत के सुझाव से उस दुःखी व्यक्ति की समस्या का समाधान सहजता से हो गया। मन रूपी मंदिर को बनाने में कोई खर्चा नहीं आता केवल हृदय को पवित्र बनाने की आवश्यकता होती है। इसके लिए मस्तिष्क से हृदय तक 13 इंची सुंरग खोदकर हृदय से मस्तिष्क तक आध्यात्मिक मार्ग बनाना चाहिए। सबसे पहले कोई विचार हृदय से उठता है, फिर वह मस्तिष्क में जाता है, जहां उस विचार की मस्तिष्क के द्वारा मालिश-पालिश होती है।
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