Tuesday, April 22, 2025
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लेख/विचार

इस बार की राह इतनी आसान नहीं होगी शिवराज के लिये

भारतीय जनता पार्टी पहली बार 5 मार्च 1990 में भोजपुर विधायक सुन्दर लाल पटवा ने मध्यप्रदेश का कमान 15 मई 1992 तक संभाली लेकिन 16 दिसम्बर से 6 दिसम्बर तक राष्ट्रपति शासन के अधीन रहा।
8 दिसम्बर 2003 से 23 अगस्त 2004 तक मलहारा के विधायक उमा भारती की नेतृत्व में सरकार चली।
23 अगस्त 2004 से 29 नवम्बर 2005 गोविंदपुरा विधायक बाबुलाल गौर ने मध्यप्रदेश का दिशा निर्देशन किया। विदिशा के विधायक श्री शिव राज सिंह चौहान के नेतृत्व में 3 दिसम्बर 2008 को मध्यप्रदेश का दिशा निर्देशन शुरु हुआ जो 2018 तक चलेगी.
आसान नहीं शिव राज की राह : 2018 में मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों का समय जैसे जैसे नजदीक आता जा रहा है वैसे वैसे प्रदेश में राजनैतिक हलचल भी तेज होती जा रही है।
वैसे तो प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी बीते 14 सालों से सत्ता में है लेकिन शिवराज शासन की अगर बात की जाए तो विगत 12 वर्षों से प्रदेश की बागडोर उनके हाथों में है। इन बारह सालों में शिवराज सिंह सरकार के नाम कई उपलब्धियाँ रहीं तो कुछ दाग भी उसके दामन पर लगे।
अगर उपलब्धियों की बात की जाए तो उनकी सबसे बड़ी सफलता मप्र के माथे से बीमारू राज्य का तमगा हटाना रहा।


बिजली उत्पादन के क्षेत्र में आज मप्र सरप्लस स्टेट में शामिल है,यहाँ 15500 मेगावाट बिजली की उपलब्धता है जबकि मांग सामान्यतः 6000 मेगावाट और रबी सीजन में अधिकतम 10000 मेगावाट रहती है।

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कट्टरपंथ का नया अड्डा

बांग्लादेश में कट्टरपंथी गुटों का प्रभाव निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। यह आश्चर्यजनक है कि बांग्लादेश का निर्माण ही पाकिस्तान सेना के अत्याचारों और उत्पीड़न के कारण हुआ था। पाकिस्तानी सेना द्वारा तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में 30 लाख बंगालियों की हत्या की गई थी तथा उनकी महिलाओं को उत्पीड़न और अत्याचार के अंतहीन कुचक्र में धकेल दिया गया था। बांग्लादेश द्वारा ऐसे खतरनाक अनुभवों के बाद भी कोई सीख नहीं ली गई है। बांग्लादेश में कट्टरपंथियों द्वारा नृशंस ढंग से प्रगतिशील लेखक अभिजीत रॉय की सरेआम हत्या कर दी गई। कट्टरपंथियों का कहना था कि अभिजीत रॉय अपने लेखन द्वारा हिंदू होते हुए भी इस्लाम की निंदा कर रहे थे, इसलिए उनकी हत्या उचित है। अभिजीत रॉय की हत्या उस समय सरेआम सड़क पर की गई, जब वह अपनी पत्नी रफीदा अहमद बन्ना के साथ पैदल जा रहे थे।  ऐसा नहीं है कि कट्टरपंथियों के निशाने पर अन्य धर्मावलंबी ही हैं। इन कट्टरपंथियों ने इस्लामिक प्रगतिशील विद्वानों को भी नहीं छोड़ा है। इसके पूर्व वर्ष 2004 में प्रोफेसर हुमायूं आजाद तथा वर्ष 2013 में राजिब हैदर की भी इस्लामी चरमपंथियों ने हत्या कर दी थी। आज तक इन हत्यारों को दंडित नहीं किया गया है। तसलीमा नसरीन से लेकर सलमान रुश्दी तक अनेक प्रगतिशील लेखक मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे हैं। अभिजीत रॉय एक प्रगतिशील व्यक्ति थे और उन्होंने ‘मुक्तमना’ नामक एक ब्लॉग शुरू किया था।



प्रगतिशील सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण व तार्किकता से युक्त कोई भी व्यक्ति इस ब्लॉग में लिखने के लिए स्वतंत्र था।

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जागरूक जनता ही करेगी स्वच्छ भारत का निर्माण

2 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान को अक्टूबर 2017 में तीन वर्ष पूर्ण हो रहे हैं।
स्वच्छ भारत अभियान के मकसद की बात करें तो इसके दो हिस्से हैं, एक सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर साफ सफाई तथा दूसरा भारत के गाँवों को खुले में शौच से मुक्त करना।
बात निकली ही है तो यह जानना भी रोचक होगा कि स्वच्छता का यह अभियान इन 70 सालों में भारत सरकार का देश में सफाई और उसे खुले में शौच से मुक्त करने का कोई पहला कदम हो या फिर प्रधानमंत्री मोदी की कोई अनूठी पहल ही हो ऐसा भी नहीं है।
1954 से ही भारत सरकार द्वारा ग्रामीण भारत में स्वच्छता के लिए कोई न कोई कार्यक्रम हमेशा से ही आस्तित्व में रहा है लेकिन इस दिशा में ठोस कदम उठाया गया 1999 में तत्कालीन सरकार द्वारा।
खुले में मल त्याग की पारंपरिक प्रथा को पूरी तरह समाप्त करने के उद्देश्य से ‘निर्मल भारत अभियान’ की शुरुआत की गई, जिसका प्रारंभिक नाम ‘सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान’ रखा गया था।
इस सबके बावजूद 2014 में आई यूएन की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत की करीब 60 प्रतिशत आबादी खुले में शौच करती है और इसी रिपोर्ट के आधार पर प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की।




अब एक बार फिर जब इस अभियान की सालगिरह आ रही है तो हमारे देश के नेता अभिनेता और विभिन्न क्षेत्रों के सेलिब्रटीस एक बार फिर हाथों में झाड़ू लेकर फोटो सेशन करवाएंगे। ट्विटर और फेसबुक पर स्वच्छ भारत अभियान हैश टैग के साथ स्टेटस अपडेट होगा,अखबारों के पन्ने मुख्यमंत्रियों नेताओं और अभिनेताओं के झाड़ू लगाते फोटो से भरे होंगे और ब्यूरोक्रेट्स द्वारा फाइलों में ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) गाँवों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही होगी लेकिन क्या वास्तव में हमारा देश साफ दिखाई देने लगा है?
क्या हम धीरे धीरे ओडीएफ होते जा रहे हैं?

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आवश्यक है विश्व धरोहर रामलीला का संरक्षण एवं संवर्धन

परम्परागत लोकनाट्य विधाओं में सर्वाधिक पुष्ट एवं समृद्ध लोकनाट्य रामलीला को ही माना जाता है। सात दिन से लेकर एक माह तक की अवधि में मंचित होने वाली रामलीलाएं भारत की प्राचीन संस्कृति के सार्वभौमिक स्वरुप का दर्शन कराने में सर्वथा सक्षम हैं। बशर्ते कि मंचन करने और कराने वाले लोग रामलीला को उसके मूल स्वरूप में प्रस्तुत करने की क्षमता एवं दृढ इच्छा रखने वाले हों। रामलीला अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम के जीवन से जुड़ी घटनाओं का मात्र नाट्य रूपान्तरण नहीं है बल्कि भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के उच्च आदर्शों की गाथा है। यह गाथा है उच्च मानवीय मूल्यों की। यह गाथा है उच्च आदर्शवादी समाज की। यह गाथा है आदर्शों के उच्चतम शिखर पर दृढ़ता से खड़ी राजनीति की। यह गाथा है आदर्श परिवार की। यह गाथा है मर्यादा की सीमाओं में बंधे ईमानदार एवं दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व की।
रामलीला का प्रारम्भ किस समय अवधि में हुआ इसका ज्ञान शायद ही किसी को हो। हाँ यह अवश्य कहा जा सकता है कि लोकगीतों में रामकथा का गायन जितना पुराना है, रामलीला को भी उतना ही प्राचीन मानना चाहिए। क्योंकि लोकगीतों एवं लोकनाट्यों का अन्तः सम्बन्ध नाकारा नहीं जा सकता है। यदि यह कहा जाये कि लोकनाट्य लोकगीतों का ही नाट्य रुपान्तरण हैं तो अतिसंयोक्ति नहीं होगी। सुदूर ग्रामीण अंचलों में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते रामकथा पर आधारित लोकनाट्य आज भी देखने को मिल जायेंगे। चित्रकूट क्षेत्र में ‘राउत’ जन समुदाय द्वारा खेले जाने वाले नाटक रामकथा पर ही आधारित हैं।

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हिंसा का अंतहीन दौर

यमन में वर्चस्व और सत्ता के लिए शिया और सुन्नी समुदायों के मध्य कड़ा संघर्ष चल रहा है। इस संघर्ष में जहां अलकायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे खतरनाक आतंकी संगठन सुन्नियों का साथ दे रहे हैं, वहीं शिया लड़ाकों की अगुवाई हूती मिलिशिया जैसे विद्रोही संगठन कर रहे हैं। मौजूदा हालात को देखते हुए यह नहीं लगता है कि यमन बहुत जल्द गृह युद्ध और हिंसा की जटिल परिस्थितियों से बाहर आ सकेगा।
गृहयुद्ध के कगार पर पहुंच चुके अरब देश यमन में शिया हाउती विद्रोहियों के ठिकानों पर सऊदी अरब के नेतृत्व में हवाई हमले शुरू किए गए। राजधानी सना और उसके आसपास के इलाकों में किए गए हमलों तथा सत्ता संघर्ष में सरकार और विद्रोहियों में जारी हिंसा में हजारों नागरिकों की मौत हो चुकी है तथा कई लाख नागरिक बेघर हो गए हैं। हजारों इमारतें और मकान ध्वस्त हो गए हैं तथा चारो ओर आतंक और दहशत का हाहाकार मचा हुआ है। इन हमलों के बाद मुस्लिम राष्ट्र दो गुटों में बंट गए हैं। एक ओर सऊदी अरब के नेतृत्व में कतर, बहरीन, कुवैत, मिस्र जैसे देश हैं, जो किसी भी कीमत पर शिया हाउती विद्रोहियों से यमन के राष्ट्रपति आब्दीरब्बू मंसूर हादी को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी ओर ईरान इन देशों के विरोध में खड़ा हो गया है। हवाई हमलों पर नाराजगी जताते हुए ईरान ने कहा है कि इससे विवादों का हल तलाशने में मदद नहीं मिलेगी।

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अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सफल सरकार आखिर राष्ट्रीय मोर्चों पर असफल क्यों ?

मार्च 2017 में उप्र के चुनावी नतीजों के बाद देश भर के विभिन्न मीडिया सर्वे में जुलाई तक जिस मोदी को एक ऐसे तूफान का नाम दिया जा था जिसे रोक पाना किसी भी पार्टी के लिए ‘मुश्किल ही नहीं लगभग नामुमकिन है’, वही मीडिया सर्वे सितम्बर माह के आते आते मोदी के तेजी से दौड़ते विजयी रथ को ब्रेक लगाते दिखाई दे रहे हैं।
अगर उनके द्वारा दिए गए आंकड़ों की बात की जाए तो पिछले साल की तुलना में मोदी सरकार से संतुष्ट लोगों की संख्या में 2 प्रतिशत की गिरावट आई है (46 प्रतिशत से 44 प्रतिशत) वहीं दूसरी तरफ इस सरकार से असंतुष्ट लोगों की संख्या में 3 प्रतिशत से 36 प्रतिशत की वृद्धि हुई है ।
कल तक जो सोशल मीडिया मोदी की तारीफों से भरा रहता था आज वो ही विपक्षी दलों द्वारा मोदी सरकार के दुष्प्रचार का सबसे बड़ा जरिया बन गया है।
बात यहाँ तक कही जा रही है कि ‘द टेलीग्राफ‘ के अनुसार संघ के एक अन्दरूनी सर्वे में यह बात सामने आई है कि 2019 में मोदी की चुनावी राह में बिछे फूलों की जगह काँटों ने ले ली है।
तो आखिर इन दो महीनों में ऐसा क्या हो गया?
देश की जनता जो मोदी के हर निर्णय को सर आँखों पर इस कदर बैठाती थी कि उसे श्अन्धभक्तश् तक का दर्जा दे दिया गया था आज देश हित में दूरगामी प्रभाव वाले पेट्रोल की बढ़ती कीमत को सहजता के साथ स्वीकार नहीं कर पा रहीं है।

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बिटकॉइन आधुनिक दुनियाँ की मुद्रा या सिर्फ निवेश का नया माध्यम?

P_20160818_191621_BFबिटकॉइन अगर ये शब्दसुनने के बाद आपके मन में आ रहा है के “शायद  ये किसी देश की मुद्रा होगी  और उस देश का  नाम आपको  नहीं पता ” अगर आप  ऐसा ही सोचते है तो मैं आपको बताता चलु के आप नयी तकनिकी दुनियां से थोडा सा पीछे है ,दरसल बिटकॉइन किसी एक देश की मुद्रा का नाम नही है और ना ही इसका कोई आकार  बल्कि ये एक नई और डिजिटल मुद्रा है। जो की अद्रश है जिसको ना तो हम अपनी जेब में रख सकते है और नाहीं  छु सकते है दरसल इन दिनों  इसका उपयोग सिर्फ कंप्यूटर नेटवर्किंग पर आधारित भुगतान हेतु किया जा रहा  है। बिटकॉइन एक वर्चुअल यानी आभासी मुद्रा है  आभासी मतलब कि अन्य मुद्रा की तरह इसका कोई भोतिक स्वरुप नहीं है यह एक डिजिटल करेंसी है | यह  केवल इलेक्ट्रॉनिक स्टोर होती है अगर किसी के पास बिटकॉइन है तो वह आम मुद्रा की तरह ही सामान खरीद सकता है |

वर्तमान में संसार मे  बिटकॉइन काफी लोकप्रिय हो रहा है इसका आविष्कार  सातोशी नकामोतो नामक एक अभियंता ने  2008 में किया था और 2009 में ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर के रूप में इसे जारी किया गया था परन्तु ये अभी तक ज्ञात नही हुआ है के सातोशी नकामोतो असलियत में कौन  व्यक्ति है बिटकॉइन के प्रसिद होने तक कई लोगो ने सातोशी नकामोतो होने का दावा की है परतु अभी तक ये पुख्ता नही हुआ है के असल व्यक्ति कौन है?

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साहब भारत इसी तरह तो चलता है

Untitled-1 copyवैसे तो भारत में राहुल गाँधी जी के विचारों से बहुत कम लोग इत्तेफाक रखते हैं (यह बात 2014 के चुनावी नतीजों ने जाहिर कर दी थी) लेकिन अमेरिका में बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में जब उन्होंने वंशवाद पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में  “भारत इसी तरह चलता है  ” कहा, तो सत्तारूढ़ भाजपा और कुछ खास लोगों ने भले ही उनके इस कथन का विरोध किया हो लेकिन देश के आम आदमी को शायद इसमें कुछ भी गलत नहीं लगा होगा। काबिले तारीफ बात यह है कि वंशवाद को स्वयं भारत के एक नामी राजनैतिक परिवार के व्यक्ति ने अन्तराष्ट्रीय मंच पर बड़ी साफगोई के साथ स्वीकार किया, क्या यह एक छोटी बात है? यूँ तो हमारे देश में वंश या  ‘घरानों’ का आस्तित्व शुरू से था लेकिन उसमें परिवारवाद से अधिक योग्यता को तरजीह दी जाती थी जैसे संगीत में ग्वालियर घराना,किराना घराना, खेलों में पटियाला घराना,होलकर घराना,रंजी घराना,अलवर घराना आदि लेकिन आज हमारा समाज इसका सबसे विकृत रूप देख रहा है।
अभी कुछ समय पहले उप्र के चुनावों में माननीय प्रधानमंत्री को भी अपनी पार्टी के नेताओं से अपील करनी पड़ी थी कि नेता अपने परिवार वालों के लिए टिकट न मांगें। लेकिन पूरे देश ने देखा कि उनकी इस अपील का उनकी अपनी ही पार्टी के नेताओं पर क्या असर हुआ। आखिर पूरे देश में ऐसा कौन सा राजनैतिक दल है जो अपनी पार्टी के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले एक साधारण से कार्यकर्ता को टिकट देने का जोखिम उठाता है?

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उपेक्षा का शिकार हिन्दी

कहा जाता है कि ज्ञान जितना अर्जित किया जाये उतना ही कम होता है फिर चाहे वह किसी क्षेत्र का हो, सांस्कृतिक हो या भाषायी। लेकिन भाषायी क्षेत्र की बात करें तो हिन्दी भाषा को सम्मान व उचित स्थान दिलाने के लिए हर वर्ष पूरे देश में 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। बावजूद इसके हिन्दी को उचित सम्मान नहीं मिल पा रहा है। ज्यादातर सरकारी विभागों में सिर्फ हिन्दी दिवस का बैनर लगाकर हिन्दी पखवाड़ा मनाकर इति श्री कर ली जाती है। यह एक श्रृद्धान्जलि ही हिन्दी के प्रति कही जा सकती है। वहीं न्यायालयी क्षेत्र की बात करें तो वहां भी सिर्फ लकीर ही पीटी जाती है। लिखा पढ़ी में अंग्रेजी प्रयोग करने वाले व्यक्तियों को ज्यादा बुद्धिमान माना जाता है अपेक्षाकृत हिन्दी लिखने व बोलने वालों के। यह नारा भी सिर्फ मुंह चिढ़ाने के अलावा कुछ नहीं दिखता कि ‘हिन्दी में कार्य करें, हिन्दी एक….।।’ लेकिन क्या आप जानते हैं कि 14 सितम्बर के दिन ही हिन्दी दिवस क्यों मनाया जाता है? कहा जाता है कि जब वर्ष 1947 में भारत से ब्रिटिश हुकूमत का पतन हुआ तो देश के सामने भाषा का सवाल एक बड़ा सवाल था क्योंकि भारत देश में सैकड़ों भाषाएं और हजारों बोलियां थीं और उस दौरान भारत का संविधान तैयार करने के लिए संविधान सभा का गठन हुआ। संविधान सभा के अंतरिम अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा बनाए गए। बाद में डाॅक्टर राजेंद्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष चुना गया। वहीं डाॅ0 भीमराव आंबेडकर संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी (संविधान का मसौदा तैयार करने वाली कमेटी) के चेयरमैन थे। संविधान सभा ने अपना 26 नवंबर 1949 को संविधान के अंतिम प्रारूप को मंजूरी दे दी। इसके बाद भारत का अपना संविधान 26 जनवरी 1950 से पूरे देश में लागू हुआ।

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रोहिंग्या शरणार्थियों का बढ़ता संकट

2017-09-12-01 SSP- lky– डाॅ0 लक्ष्मी शंकर यादव
म्यामांर के रखाइन में 25 अगस्त को प्रातः 24 पुलिस पोस्ट और आर्मी बेस पर रोहिंग्या उग्रवादियों के हमले में एक दर्जन सुरक्षा कर्मियों सहित लगभग 89 लागों की मौत हो गई। स्टेट काउंसलर के कार्यालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक तकरीबन 150 रोहिंग्या उग्रवादियों ने दो दर्जन से ज्यादा पुलिस चैकियों एवं एक सैन्य अड्डे पर तेज हमला किया। इस हमले में देशी बारूदी सुरंगों का भी प्रयोग किया गया। रखाइन के साथ-साथ बुथिदाउंग शहर भी भीषण हिंसा का शिकार हुआ। धार्मिक घृणा के चलते बंटे तटीय देश में पिछले साल अक्टूबर से चल रही हिंसा में यह सबसे बड़ा भीषण हमला था। रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश से आए हुए बताए जाते हैं। अवैध प्रवासी बताकर म्यांमार ने इन्हें नागरिकता देने से इंकार कर दिया है। रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ पिछले वर्ष सेना ने बड़ी कार्रवाई की थी जिसके परिणामस्वरूप लगभग 87 हजार रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश चले गए थे।
म्यांमार के अशान्त रखाइन प्रान्त की स्थिति दिन पर दिन बिगड़ती जा रही है। 24 अगस्त के हमले के बाद सेना ने रोहिंग्या विद्रोहियों और उनके अड्डों को खत्म करने का अभियान छेड़ दिया है। एक सितम्बर तक इस खूनी टकराव में लगभग 400 लोग मारे जा चुके हैं। म्यांमार सेना के द्वारा बताई गई जानकारी के मुताबिक मरने वालों में 370 रोहिंग्या विद्रोही, 13 सेना के जवान, दो सरकारी अधिकारी और 14 आम नागरिक हैं। इसके अलावा कुछ विद्रोहियों को पकड़ा भी गया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इस सैन्य अभियान के बाद 38 हजार रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश की सीमा में प्रवेश कर गए हैं और तकरीबन बीस हजार से ज्यादा शरणार्थी सीमावर्ती इलाकों में फंसे हुए हैं। इस दौरान शरणार्थियों से लदी एक नौका म्यामांर तथा बांग्लादेश को बांटने वाली नफ नदी में डूब गई थी जिसमें तकरीबन 40 लागों की मौत हो गई। बांग्लादेश के सीमाई इलाके काॅक्स बाजार में हजारों की तादाद में भूखे-प्यासे रोहिंग्या शरणार्थी पहुंच रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतेरस ने हिंसा में आम लोगों मारे जाने की रिपोर्ट पर गहरी चिन्ता जताई है। गुतेरस के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिका की ओर से जारी बयान में बांग्लादेश से शरणार्थियों का सहयोग करने आग्रह किया गया है।

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