Friday, September 20, 2024
Breaking News
Home » मुख्य समाचार » कर्नाटक चुनावः नफरत की बाजार खत्म हुई है और मोहब्बत की दुकान खुली है-राहुल गाँधी

कर्नाटक चुनावः नफरत की बाजार खत्म हुई है और मोहब्बत की दुकान खुली है-राहुल गाँधी

राजीव रंजन नागः नई दिल्ली। कर्नाटक में बजरंगबली के भरोसे चुनाव जीतने का सपना देख रही भारतीय जनता पार्टी को संकटमोचक ने पटखनी दे दी है। तमाम चुनावी सर्वेक्षणों को झुठला कर चुनाव जीतने का दावा करने वाली भाजपा ने दोपहर में अपनी हार मान ली और वह भारी सदमे में है। विधानसभा चुनावों के नतीजे ने राज्य में 38 सालों की परंपरा इस बार फिर बहाल हो गई। 224 सदस्यीय राज्य विधान सभा में कांग्रेस को 135 सीटें मिली हैं जबकि भाजपा को महज 66 सीटें जीत सकी है। जेडीएस के हिस्से में 19 व अन्य के खाते में 4 सीटें आई हैं। इस तीसरी ताकत का राज्य की राजनीति में कोई खास असर नहीं है।
भावी मुख्यमंत्री के नाम पर सहमति कायम करने के लिए कांग्रेस रविवार को बंगलूरु में बैठक कर रही है। डी के शिवा कुमार और सिद्धारमैय्या दो ऐसे बड़े नेता हैं जिनके नाम पर विचार या जाना है। कर्नाटक की 224 सीटों के लिए 10 मई को वोटिंग हुई थी। 2,615 उम्मीदवारों के लिए 5.13 करोड़ मतदाताओं ने वोट डाले। चुनाव आयोग के मुताबिक, कर्नाटक में 73.19 प्रतिशत मतदान हुआ। यह 1957 के बाद राज्य के चुनावी इतिहास में सबसे ज्यादा रहा।
अपने लिंगायत समर्थन के आधार को मजबूत करने के लिए भाजपा के आखिरी मिनट के खले गए सारी रणनीति वफल साबित हुई है। कांग्रेस ने प्रभावशाली समुदाय के वर्चस्व वाली सीटों पर भारी बढ़त हासिल कील है। लिंगायतों की कर्नाटक की आबादी में 17 फीसदी हिस्सेदारी है और राज्य में 78 सीटों पर इनका प्रभाव माना दाता है। यहां की यह जाति राज्य की राजनीति मे खासा दखल रखती है।
राहुल की भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक में 21 दिन चली, 7 जिलों से गुजरी. इन जिलों में 48 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से 32 सीटें कांग्रेस ने जीत ली है। 2018 के विधानसभा चुनाव में इन सात जिलों में कांग्रेस 15 सीटें जीत पाई थी। बीजेपी ने 17, जेडीएस ने 14 और बाकी बची 2 सीट अन्य के पास थी।
चुनाव परिणामों पर टिप्पणी करते हुए राहुल गांधी ने कहा, ‘हम गरीबों के मुद्दे पर लड़े। हमने मोहब्बत से प्यार से यह लड़ाई लड़ी। कर्नाटक की जनता ने हमें दिखाया कि मोहब्बत इस देश को अच्छी लगती है। कर्नाटक में नफरत का बाजार बंद हुआ है। मोहब्बत की दुकानें खुली हैं। यह कर्नाटक की जनता की जीत है।
कर्नाटक में हार स्वीकार करते हुए मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि हम मंजिल तक नहीं पहुंच पाए। बीएस येदियुरप्पा ने हार स्वीकार करते हुए कहा कि हार-जीत बीजेपी के लिए बड़ी बात नहीं है। 2 सीट से शुरुआत कर बीजेपी आज सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। कार्यकर्ताओं को दुखी होने की जरूरत नहीं है। हम अपनी हार पर पुनर्विचार करेंगे।
पार्टी को बहुमत मिलने के बाद कर्नाटक कांग्रेस चीफ डीके शिवकुमार रो पड़े। उन्होंने कहा, ‘मैंने राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी को जीत का आश्वासन दिया था।’
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि कांग्रेस की जीत जनता की जीत है। जनता ने एक भ्रष्ट सरकार को हराया है. हमें आगे बहुत कुछ करना है। हमें वादे निभाने हैं। अपने पांच वादे पूरे करेंगे। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कहा- ‘अंतकाल’ शुरू हो गया है। ये नए सकारात्मक भारत का महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और वैमनस्य के खिलाफ सख्त जनादेश है।
कांग्रेस नेता सिद्धारमैया कहा कि इस चुनाव का परिणाम लोकसभा चुनाव की एक सीढ़ी है। मुझे उम्मीद है कि सभी गैर-भाजपा दल एक साथ आएंगे। मुझे उम्मीद है कि राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं। पार्टी को बहुमत मिलने के बाद कर्नाटक कांग्रेस चीफ डीके शिवकुमार रो पड़े। उन्होंने कहा, ‘मैंने राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी को जीत का आश्वासन दिया था।’ कांग्रेस ने रविवार को विधायक दल की बैठक बुलाई है।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए जहां संजीवनी सरीखा है। राज्य का चुनाव परिणाम पार्टी में जान और ऊर्जा डालने का काम करेगी। वहीं, बीजेपी के लिए चुनाव में हार किसी सदमे जैसा है। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत राज्य की उस 38 साल की परंपरा का भी दोहराव है कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के कारणों की जितनी चर्चा हो रही है, उतनी ही या उससे ज्यादा चर्चा बीजेपी की हार की हो रही है।
कर्नाटक में बीजेपी की हार के ये पांच कारण हैं-
बीएस येदियुरप्पा को किनारे करना
बीजेपी ने बीएस येदियुरप्पा को संसदीय बोर्ड का सदस्य बनाया। कर्नाटक में उनसे बड़े पैमाने पर चुनाव प्रचार कराया, लेकिन जिस तरह से उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाया गया, उससे लिंगायत वोटों की नाराजगी बढ़ी। ये नाराजगी चुनाव में भारी पड़ी। मतदाताओं में यह संदेश गया कि येदियुरप्पा पार्टी की अंदरूनी राजनीति में अपने विरोधी और ताकतवर नेता बीएल संतोष के शिकार बने। लिंगायत बहुल सीटों पर कांग्रेस की बड़ी जीत बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई न करना
बीजेपी उन नेताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करती नहीं दिखी, जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। पार्टी ने ईश्वरप्पा का टिकट जरूर काटा, लेकिन उनसे दूरी न बना कर इस मुद्दे पर कांग्रेस को आक्रामक होने का मौका दे दिया। कांग्रेस ‘40 प्रतिशत कमीशन’ की सरकार का लेबल बीजेपी पर चिपकाने में कामयाब रही।
स्थानीय मुद्दों के जगह राष्ट्रीय मुद्दों को तरजीह देना
बीजेपी कांग्रेस के सधे चुनावी अभियान का स्थानीय स्तर पर मुकाबला करने में नाकाम रही। कांग्रेस स्थानीय मुद्दों पर हावी रही। बीजेपी इसके मुकाबले राष्ट्रीय और सांप्रदायिक मुद्दे उछालती रही। बीजेपी ने अपना घोषणा-पत्र लाने में बहुत देरी की। तब तक कांग्रेस अपनी पांच गारंटियों को जनता तक पहुंचा चुकी थी।
गुजरात मॉडल को लागू न करना
बोम्मई सरकार के 11 मंत्री और कई विधायक चुनाव हार गए। यह सरकार के प्रति लोगों के गुस्से का सबूत है। बीजेपी एंटी-इंकमबेंसी का मुकाबला नहीं कर सकी। चुनाव से पहले यह मांग उठी थी कि बीजेपी ‘गुजरात मॉडल’ को लागू करते हुए बड़ी संख्या में विधायकों के टिकट काटे। हार की संभावना से भयभीत भाजपा ऐसा करने से परहेज करती रही।
मोदी बनाम राहुल नहीं हुआ
बीजेपी विधानसभा चुनाव को भी मोदी बनाम राहुल कर राष्ट्रीय स्वरूप देने की रणनीति पर काम करती है। इसी तरह बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को मोबेलाइज कर मतदाताओं को वोट देने के लिए लाती है। लेकिन इस माइक्रो-मैनेजमेंट पर कांग्रेस का वोकल फॉर लोकल भारी पड़ा। टिकट बंटवारे में गड़बड़ी, अंदरूनी राजनीति, भितरघात बीजेपी के खिलाफ गया। वहीं, कांग्रेस स्थानीय मुद्दों से टस से मस नहीं हुई। राहुल गांधी भी अपने प्रचार में राष्ट्रीय मुद्दों को तूल देने से बचे। चुनाव को मोदी बनाम राहुल बनने से कांग्रेस ने बखूबी रोक दिया।
प्रभावशाली समुदाय को भाजपा के प्रमुख समर्थन आधार के रूप में जाना जाता है।भाजपा के पास अनुभवी बीएस येदियुरप्पा और मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज एस बोम्मई सहित समुदाय के बड़े नेता हैं। रुझानों से यह भी पता चलता है कि 2018 के चुनावों की तुलना में लिंगायत बहुल सीटों पर भाजपा का स्कोर 28 तक गिर गया और कांग्रेस को 29 का फायदा हुआ। इन सीटों पर बीजेपी का खराब प्रदर्शन चुनाव से पहले लिंगायतों तक पहुंचने की बेताब कोशिश के बावजूद आया है। लिंगायत समुदाय का बीजेपी से मोहभंग 2021 में राज्य के सबसे बड़े लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाने के साथ शुरू हो सकता है। भले ही भाजपा ने श्री येदियुरप्पा की जगह श्री बोम्मई को ले लिया, जो लिंगायत भी हैं, लेकिन यह शक्तिशाली समूह को शांत करने के लिए पर्याप्त नहीं था।
एक बड़े विवाद को जन्म देने वाले एक फैसले में, भाजपा सरकार ने मार्च में मुसलमानों के लिए चार प्रतिशत आरक्षण को समाप्त करने और प्रभावशाली लिंगायतों और वोक्कालिगाओं के बीच आरक्षण को फिर से आवंटित करने का फैसला किया। मुस्लिम जो आरक्षण लाभ के लिए पात्र थे, उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की श्रेणी के तहत वर्गीकृत किया गया था।
इस कदम को एक कठिन चुनावी मुकाबले से पहले लिंगायतों और वोक्कालिगाओं का समर्थन सुनिश्चित करने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी के हताश प्रयास के रूप में देखा गया था।
राज्य के लिंगायत मतदाता एक बार फिर चर्चा का विषय बन गए, जब समुदाय के एक प्रमुख नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार ने कांग्रेस का दामन थाम लिया।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पार्टी के अच्छे प्रदर्शन को ‘जनता जनार्दन’ की जीत करार देते हुए कहा कि ‘‘लोग खुद खड़े हुए और हमारा समर्थन किया। उन्होंने भाजपा के खराब प्रशासन का खिलाफ गुस्से का इजहार करते हुए मतदान किया।’’