Thursday, May 9, 2024
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योगी सरकार पर भारी पड़ रही अफसरशाही ?

बुल्डोजर शैली के चलते उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में अपराधी भले ही खौफजदा हैं और इसके साथ ही अफसरशाही पर लगाम कसने का प्रयास किया जा रहा है, फिर भी योगी सरकार पर अफसरशाही भारी पड़ती दिख रही है, इसी का उदाहरण कह सकते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने अधिकारियों को यह नसीहत बार बार देनी पड़ती है कि ‘सूबे की जनता की समस्याएं न सुनना अब अधिकारियों को भारी पड़ेगा।’ वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भले ही जोर है कि सूबे के लोगों की समस्याओं के निस्तारण पर पूरा जोर दिया जाए। जिले के अफसर, जनता की समस्याएं स्थानीय स्तर पर ही सुनें और बेवजह लोगों को कार्यालयों के चक्कर ना लगवायें। वावजूद इसके जनता की समस्याओं को कितना सुना जा रहा है और उनका समाधान ठीक तरीके से कितना किया जा रहा है, उस पर सवाल उठ रहे हैं।
मुख्यमंत्री जी, सूबे के अधिकारियों को यह चेतावनी समय-समय पर दिया करते हैं लेकिन उनके दिशा-निर्देशों का असर सूबे के अफसरों पर कितना पड़ रहा है, सवालों के घेरे में है। क्योंकि अगर प्रदेश में जमीनी स्तर पर सबकुछ चंगा होता तो दूरदराज की जनता को अपनी समस्याओं के लिए मुख्यमंत्री की चौखट पर आना नहीं पड़ता!! ऐसे में मुख्यमन्त्री कार्यालय अथवा दरबार में पहुंच रही शिकायतों से यह सवाल तो उठता ही है कि जिला प्रशासन क्या अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन भली प्रकार से नहीं कर रहा है? कमोवेस यही हाल मुख्यमन्त्री जी के ‘जनसुनवाई- समाधान’ पोर्टल का है। उस पर पीड़ितों की सुनवाई कितनी की जा रही है यह तो पीड़ितों का फीडबैक देखकर ही पता चल जायेगा!
वहीं योगी जी को भी शायद अपने अफसरों की कार गुजारियों का आभास हो रहा है और उनकी चिंता सामने आ रही है। परिणामतः योगी जी को बार-बार यह कहना पड़ रहा है कि अफसर निर्धारित समय पर अपने कार्यालय पहुंचें और जनता की समस्या को सुनें और निस्तारण करें। विभिन्न विभागों से संबंधित जो भी समस्याएं लेकर लोग लखनऊ आ रहे हैं वो अफसरों की कार्यशैली पर सवाल तो उठा ही रहें हैं क्योंकि अगर जिले स्तर पर उनकी शिकायतों को ठीक से सुना जा रहा होता तो पीड़ित लखनऊ दरबार में क्यों आते ???
सूबे के बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे की बात करें तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोगों की सहूलियत को ध्यान में रखते हुए सड़कों को गड्ढामुक्त बनाने के लिए अफसरों को निर्देंश दिए थे लेकिन जिम्मेदारों ने अपनी जिम्मेदारी किस तरह से निभाई, वह किसी से छुपी नहीं है। सरकारी मशीनरी की लापरवाही व मनमानी इस कदर हावी रही कि वर्तमान में गड्ढों में सड़क ढूंढ़ना मुश्किल हो गया है। हाईवे हो या शहर की सड़कें बदहाल हैं। इनमें देहात क्षेत्र की सड़कों का तो और बुरा हाल है। सड़कों के निर्माण, मरम्मत और रखरखाव के लिए भारी भरकम रकम खर्च की जाती है। लेकिन सरकारी धन के बंटवारे में सड़कों का निर्माण और मरम्मत दोनों बेहद घटिया सामग्री से होता है, जिससे सड़कें महीने भर में उखड़ जाती हैं। लेकिन अफसर और निर्माण एजेंसियां सड़कों की तरफ मुड़कर नहीं देखते हैं जिससे यात्रा करने वाले ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने के लिए मजबूर हैं। सड़क निर्माण के लिए दर्जन भर से ज्यादा विभाग बने हैं। लोक निर्माण विभाग में निर्माण खंड, प्रांतीय खंड, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना खंड, नेशनल हाईवे खंड, ग्रामीण अभियंत्रण विभाग, जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत, ग्राम पंचायत, विधायक निधि, सांसद निधि, विधान परिषद सदस्य निधि, विश्व बैंक योजना, नहर विभाग, सिंचाई विभाग आदि के तहत सड़कों का निर्माण होता है। लेकिन सड़कों के निर्माण में भारी भ्रष्टाचार किया जाता है जिससे सड़कें बनने के बाद ही ध्वस्त हो जाती हैं। वहीं सरकारी अधिकारी समस्या का समाधान करने के वजाय एक विभाग के अधिकारी दूसरे विभाग के पाले में गेंद डाल जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं।
इसी तरह से प्रदेश के लगभग हर विभाग में चल रहा है और अफसर, अपना पुराना रवैया बदलने को तैयार नहीं है। इसमें कतई दो राय नहीं कि अफसरों की मनमानी बढ़ गई है और उनके द्वारा निर्देश-निर्देश का खेल खेला जा रहा है, फोटो खिचाऊ कार्यो के सहारे सबकुछ चल रही है और अपने अपने स्तर से औपचारिकतायें निभायीं जा रही हैं।
ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या योगी सरकार पर अफसरशाही भारी पड़ रही है ?

-Shyam Singh Panwar