Thursday, May 16, 2024
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कला और अभिव्यक्ति की आजादी पर हो रहे हमलों की ‘जलेस’ ने निंदा की

जन सामना डेस्क। इस महीने की 2 फरवरी को सवित्रीबाई फुले, पुणे विश्वविद्यालय के ललित कला केंद्र में परीक्षा के असाइनमेंट के तौर पर मंचित हो रहे नाटक ‘जब वी मेट’ को आरएसएस-भाजपा से जुड़े छात्र संगठन अभाविप द्वारा बाधित करके हंगामा और तोड़-फोड़ किया गया। प्रो. प्रवीण दत्तात्रेय भोले, और पांच विद्यार्थियों के खि़लाफ़ अभाविप और भाजयुमो ने एफ़आईआर दर्ज कराया जिसके आधार पर इन छह लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया। विश्वविद्यालय के प्रशासन ने हंगामा करनेवालों का पक्ष लेते हुए अपने बयान में न सिर्फ़ भावनाएं आहत होने के संबंध में क्षमा-याचना की बल्कि ‘किसी मिथकीय या ऐतिहासिक व्यक्ति की पैरोडी’ को ‘पूरी तरह से ग़लत और प्रतिबंधित’ बताया। उसके बाद 6 फरवरी को हुई विश्वविद्यालय की प्रबंधन परिषद की बैठक की शुरुआत अनेक सदस्यों द्वारा ‘जय श्रीराम’ के नारे के साथ हुई।
ठीक यही स्थिति 2022 में वरोदड़ा, गुजरात के सायाजीराव यूनिवर्सिटी में देखी गयी थी जहां ललित कला संकाय में परीक्षा संबंधी मूल्यांकन के लिए लगायी जा रही प्रदर्शनी के शुरू होने से भी पहले एबीवीपी के सदस्य तोड़फोड़ करने पहुंच गये और उसके बाद जिस कलाकृति से उनकी ‘भावनाएं आहत’ हुई थीं, उसे बनानेवाले, प्रथम वर्ष के विद्यार्थी कुंदन यादव को विश्वविद्यालय की सिंडिकेट ने बर्खास्त कर दिया और उसके शिक्षक, सुपरवाइजर और संकाय के डीन को कारण बताओ नोटिस जारी किया।
पुणे विश्वविद्यालय की घटना के कुछ ही दिनों के बाद निर्भय बनों विचार मंच द्वारा 9 फरवरी को पुणे में 66 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले, वकील असीम सरोदे और विश्वंभर चौधरी व उनके अन्य साथियों का व्याख्यान रखा गया था। इसमे जाने से पहले इन सभी को पुलिस ने 3 घंटे रोक कर रखा गया। ये सभी जिस रास्ते से जा रहे थे उसपर पुलिस के होते हुए भी प्रभात रोड, कर्वे रोड, शास्त्री मार्ग और दांडेकर पुल के रास्तों पर आधे घंटे के भीतर अलग अलग जगहों पर 4 बार पत्थरों, स्याही, लोहे के सलियों से पीछा करके भाजपा कार्यकर्ताओं की भीड़ ने हमला किया। हमलावरों ने प्राणघातक हमला करते हुए उनकी गाड़ी को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दी। लेकिन उस समय हमला कर रहे किसी भी भाजपा कार्यकर्ता को पुणे पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया।
कट्टर हिंदुत्ववादी विचारों से जुड़े संगठनों की इस गुंडागर्दी और जानलेवा हमले का ‘जनवादी लेखक संघ’ तीव्र निषेध करता है। ये हमले सीधे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला हैं। पिछ्ले कई वर्षों से सरकार से सवाल पूछने वाले लेखकों और बुद्धिजीयों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। हमले के बाद निखिल वागले ने ट्विट करते हुए कहा कि “यह हमला पुलिस की मिली-भगत से हुआ है वे इस हमले से डर कर अपनी आवाज़ बंद नहीं करेंगे यह भूमि जोतिबा फुले और आम्बेडकर की भूमि है”।
जनवादी लेखक संघ सवित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में हुए इस हमले की और उसके सम्बन्ध में प्रशासन और पुलिस के रवैये की निंदा करता है। जलेस की केन्द्रीय कार्यकारिणी ने भी ललित कला संकाय के अध्यक्ष तथा विद्यार्थियों पर लगाये गये आरोपों को वापस लिये जाने और भावनाएं आहत होने के नाम पर हंगामा और तोड़फोड़ करनेवालों पर अविलम्ब उचित कार्रवाई किये जाने की मांग की है।
भाजपा के कार्यकाल में महाराष्ट्र में इस तरह की उन्मादी भीड़ के हमले बढ़ते जा रहे हैं। इन सभी हमलों में महाराष्ट्र सरकार की भूमिका भी संदिग्ध है। यह हमला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हिंसा व बल से दबाने-कुचलने का प्रयास है। जनवादी लेखक संघ ने आरएसएस, भाजपा के कार्यकर्ताओं के इन फासिस्ट हमलावरों पर कड़ी पुलिस कारवाई की मांग की है। जलेस महाराष्ट्र राज्य कमिटी इन दोनों हिंसक घटनाओं की कड़ी निंदा करते हुए और देशभर के सभी कला व लेखन क्षेत्र से जुड़े कलाकारों-साहित्यकारों से इस दमनशाही का खुलकर विरोध करने का आवाहन किया है।