Monday, April 29, 2024
Breaking News
Home » महिला जगत » विकास की बदलती तस्वीर में महिलाओं की भागीदारी

विकास की बदलती तस्वीर में महिलाओं की भागीदारी

भारत एक सम्पन्न परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों से समृद्ध देश है, जहां महिलाओं का समाज में प्रमुख स्थान रहा है। ग्रामीण परिदृश्य में महिलाओं की बड़ी आबादी है। आजादी के बाद महिलाओं का समाज में सम्मान बढ़ा, लेकिन उनके सशक्तिकरण की गति दशकों तक धीमी रही। गरीबी व निरक्षरता महिलाओं की प्रगति में गंभीर बाधा रही हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल के माध्यम से महिलाओं को व्यवसाय की ओर प्रोत्साहित कर इन्हें आर्थिक रूप से सुदृढ़ किया जा सकता है। विशेषकर कृषि प्रसंस्करण उद्योगों, बैंकिंग सेवाओं और डिजिटलीकरण की सहायता से महिलाओं के सामाजिक और वित्तीय सशक्तिकरण की शुरुआत की जा सकती है।
भारतीय महिलाएं ऊर्जा से लबरेज, दूरदर्शिता, जीवन्त उत्साह और प्रतिबद्धता के साथ सभी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है। रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों में “हमारे लिए महिलाएं न केवल घर की रोशनी हैं, बल्कि इस रौशनी की लौ भी हैं”। अनादि काल से ही महिलाएं मानवता की प्रेरणा का स्रोत रही हैं। मदर टेरेसा से लेकर भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले तक, महिलाओं ने बड़े पैमाने पर समाज में बदलाव के बडे़ उदाहरण स्थापित किए है।
एक समय था जब महिलाएँ चार दिवारी तक सिमित थी, घर परिवारों के दायित्वों के इर्दगिर्द सारा जीवन निर्वाह हो जाता था। समय एवं परिस्थिति के अनुसार आज यह परिवेश में काफी बदलाव आया है। आजादी के बाद महिलाओं की शिक्षा के साथ-साथ रोजगार, राजनीति, आदि में सहभागिता ने देश विकास को एक धुरी प्रदान की है।
महिलाओं में जन्मजात नेतृत्व गुण समाज के लिए संपत्ति हैं। “जब एक आदमी को शिक्षित होता हैं, तो वह एक आदमी शिक्षित होता है हैं परन्तु जब एक महिला को शिक्षित होती है तो मान लीजिये एक पीढ़ी शिक्षित होती हैं”। भारतीय इतिहास महिलाओं की उपलब्धि से भरा पड़ा है। विज्ञान, व्यापार, अंतरिक्ष, खेल, राजनीति हर क्षेत्र में भारतीय नारी ने नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। जिस तरह सरदार वल्लभभाई पटेल को लौह पुरुष कहा जाता है उसी तरह इंदिरा गाँधी ने प्रधानमंत्री के रूप में भारत का नाम संपूर्ण विश्व में गौरवान्वित किया है। सौन्दर्य के क्षेत्र में ऐश्वर्या राय, सुस्मिता सेन ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में सम्मान प्राप्त किया है। संगीत की दुनिया में लता मंगेशकर को साक्षात सरस्वती माँ का दर्जा दिया गया है। किरण बेदी, पीटी उषा, कल्पना चावला जैसी महिलाओं ने साबित किया है कि वे किसी से कम नहीं हैं। डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि यदि किसी समाज की प्रगति के बारे में सही-सही जानना है तो उस समाज की स्त्रियों की स्थिति के बारे में जानो। कोई समाज कितना मजबूत हो सकता है, इसका अंदाजा इस बात से इसलिए लगाया जा सकता है क्योंकि स्त्रियाँ किसी भी समाज की आधी आबादी हैं। बिना इन्हें साथ लिए कोई भी समाज अपनी संपूर्णता में बेहतर नहीं कर सकता है। समाज की आदिम संरचना से सत्ता की लालसा ने शोषण को जन्म दिया है। स्त्रियों को दोयम दर्जे के रूप में देखने की कवायद इसी कड़ी का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
आजादी से पूर्व भारत में महिलाएँ केवल घरों में रहती थीं। उन्हें घर से बाहर निकलने, पढ़ने-लिखने, खेलने, पुरुषों की तरह बाहर काम करने आदि अनेक क्षेत्रों में अनुमति नहीं थी। भारतीय संविधान में महिला एवं पुरुष दोनों के लिए समान अधिकार बनाए गए हैं, किन्तु निरक्षरता एवं घरेलू तथा भारतीय धार्मिक परंपराओं की वजह से महिलाएँ उन समस्त अधिकारों का सम्पूर्ण उपयोग नहीं कर पाई हैं। पूरे विश्व में 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। हरिशंकर परसाई जी के व्यंग्य की पंक्ति है कि “दिवस कमजोरों के मनाए जाते हैं, मजबूत लोगों के नहीं।“ सशक्त होने का आशय केवल घर से बाहर निकल कर नौकरी करना या पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलना भर नहीं है। सशक्त होने का आशय यहाँ पर उसके निर्णय ले सकने की क्षमता का आधार है कि वह अपने निर्णय स्वयं ले रही है या इसके लिए वह किसी और पर निर्भर है। इसी प्रकार आज आर्थिक रूप से सशक्त होने उसके लिए बहुत आवश्यक है। यदि वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं है तो वह कभी भी सशक्त नहीं हो सकेगी, इसलिए यह एक और अन्य महत्वपूर्ण पहलू है। दोहरे दायित्वों से लदी महिलाओं ने अपनी दोगुनी शक्ति का प्रदर्शन कर सिद्ध कर दिया है कि समाज की उन्नति आज केवल पुरूषों के कन्धे पर नहीं, अपितु उनके हाथों का सहारा लेकर भी ऊंचाइयों की ओर अग्रसर होती है। उन्नत राष्ट्र की कल्पना तभी यथार्थ का रूप धारण कर सकती है, जब महिला सशक्त होकर राष्ट्र को सशक्त करें। महिला स्वयं सिद्धा है, वह गुणों की सम्पदा हैं। आवश्यकता है इन शक्तियों को महज प्रोत्साहन देने की। यही समय की मांग है।
भारत में महिला शिक्षा देश के समग्र विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह न केवल आधे मानव संसाधनों के विकास में मदद करता है , बल्कि घर और बाहर जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में भी मदद करता है। अगर यह कहा जाए कि शिक्षा ही सभी समस्याओं की कुंजी है, तो यह अनुचित नहीं होगा। किसी भी समाज, राज्य या देश में महिला सशक्तीकरण सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। एक महिला ही बच्चे के बुनियादी जीवन में प्रमुख भूमिका निभाती है। महिलाएँ हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण वर्ग हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण के साधन के रूप में शिक्षा एक सकारात्मक दृष्टिकोण परिवर्तन ला सकती है। इसलिए, यह भारत की सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है।


श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्त्ता, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)