Wednesday, April 16, 2025
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विधेयकों पर सहमति न देना अवैध और मनमाना : सुप्रीम कोर्ट

राजीव रंजन नाग : नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा 10 विधेयकों पर मंजूरी रोकना और उन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए सुरक्षित रखना अवैध था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्यपाल आरएन रवि का 10 प्रमुख विधेयकों पर सहमति न देने का फैसला अवैध और मनमाना था। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल सहमति न देने के बाद विधेयकों को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित नहीं कर सकते।
कोर्ट ने आदेश दिया कि विधेयक राज्यपाल के समक्ष पुनः प्रस्तुत किए जाने की तारीख से ही स्वीकृत माने जाएंगे। शीर्ष अदालत के ताजा फैसले के बाद राज्यपाल रवि पर इस्तीफा का दबाव बढ़ सकता है। शीर्ष अदालत के फैसले से एम के स्टालिन सरकार को बड़ी जीत मिली है।
10 विधेयकों के लिए राज्यपाल द्वारा की गई सभी कार्रवाइयों को रद्द किया जाता है। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार की उस याचिका पर यह फैसला सुनाया, जिसमें राज्यपाल रवि द्वारा राज्य विधानसभा द्वारा पारित कई विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार करने के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा कि राज्यपाल रवि ने सद्भावना से काम नहीं किया। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने फैसले को ऐतिहासिक बताया है। उन्होंने कहा, यह न केवल तमिलनाडु बल्कि सभी भारतीय राज्यों के लिए एक बड़ी जीत है। डीएमके राज्य की स्वायत्तता और संघीय राजनीति के लिए संघर्ष करना और जीतना जारी रखेगी।
सर्वाेच्च न्यायालय ने (शायद) अभूतपूर्व कदम उठाते हुए कहा कि 10 विधेयकों को उस तिथि से मंजूरी प्राप्त माना जाएगा, जिस तिथि को उन्हें विधानमंडल द्वारा पुनर्विचार के बाद राज्यपाल के समक्ष पुनः प्रस्तुत किया गया था। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि राज्यपाल को उस समय विधेयक पर स्वीकृति देनी चाहिए, जब वह राज्य विधानसभा द्वारा पुनर्विचार के बाद उनके समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वह केवल तभी स्वीकृति देने से इंकार कर सकते हैं, जब विधेयक अलग हो।
संविधान के अनुच्छेद 200 में राज्यपाल के समक्ष विकल्प निर्धारित किए गए हैं, जब राज्य सदन द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। राज्यपाल अपनी सहमति दे सकते हैं, सहमति रोक सकते हैं या विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख सकते हैं। राज्यपाल विधेयक को कुछ प्रावधानों पर पुनर्विचार के लिए सदन या सदनों को वापस भेज सकते हैं। यदि सदन इसे फिर से पारित करता है, तो राज्यपाल सहमति नहीं रोकेंगे। सिर्फ उस स्थिति में राज्यपाल राष्ट्रपति के विचार के लिए किसी विधेयक को सुरक्षित रख सकते हैं, जब उन्हें लगता है कि संविधान, राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के विपरीत है या राष्ट्रीय महत्व का मामला है।
अदालत ने आज इन विकल्पों का उपयोग करने के लिए समय सीमा भी निर्धारित की और कहा कि इन समय सीमाओं को चूकने पर राज्यपाल की कार्रवाई की न्यायिक जांच होगी। न्यायालय ने राज्यपालों के लिए विधेयक पर अपनी सहमति वापस लेने तथा मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से इसे राष्ट्रपति की समीक्षा के लिए सुरक्षित रखने के लिए एक महीने की समय-सीमा निर्धारित की है। अदालत ने कहा कि जब कोई विधेयक मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना सुरक्षित रखा जाता है, तो यह समय-सीमा तीन महीने होगी। यदि कोई विधेयक राज्य विधानसभा द्वारा पुनर्विचार के बाद राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो उसे एक महीने के भीतर इसे मंजूरी देनी होगी। न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा किया गया कोई भी प्रयोग न्यायिक समीक्षा के लिए उत्तरदायी है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह किसी भी तरह से राज्यपाल की शक्तियों को कम नहीं कर रहा है। राज्यपाल के सभी कार्यों को संसदीय लोकतंत्र के सिद्धांत के अनुरूप होना चाहिए।
पूर्व आईपीएस अधिकारी (आर एन रवि) जिन्होंने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) में भी काम किया है ने 2021 में तमिलनाडु के राज्यपाल का पद संभाला। तब से, एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के साथ उनके संबंध टकराव वाले रहे हैं। डीएमके सरकार ने उन पर भाजपा प्रवक्ता की तरह काम करने और विधेयकों और नियुक्तियों को रोकने का आरोप लगाया है। राज्यपाल ने कहा है कि संविधान उन्हें कानून पर अपनी सहमति वापस लेने का अधिकार देता है।
राज्य सरकार और राजभवन के बीच विधानसभा में राज्यपाल के पारंपरिक अभिभाषण के दौरान भी टकराव हुआ है। पिछले साल राज्यपाल ने अभिभाषण की शुरुआत में राष्ट्रगान नहीं गाए जाने के विरोध में सदन से वॉकआउट कर दिया था। परंपरा के अनुसार, सदन की बैठक के समय राज्य गान तमिल थाई वल्थु गाया जाता है और अंत में राष्ट्रगान गाया जाता है। लेकिन राज्यपाल रवि ने इस पर आपत्ति जताई और कहा कि राष्ट्रगान दोनों समय गाया जाना चाहिए।
2023 में राज्यपाल रवि ने विधानसभा में पारंपरिक अभिभाषण देने से इनकार कर दिया और कहा कि मसौदे में सत्य से कोसों दूर भ्रामक दावों वाले कई अंश हैं। उससे एक साल पहले उन्होंने भाषण के उन हिस्सों को पढ़ने से इनकार कर दिया था जिनमें बीआर आम्बेडकर, पेरियार, सीएन अन्नादुरई का नाम, द्रविड़ मॉडल वाक्यांश और तमिलनाडु में कानून और व्यवस्था के कुछ संदर्भ थे।
तमिलनाडु सरकार ने तर्क दिया था कि राज्यपाल इन विधेयकों पर अनिश्चित काल के लिए अनुमति रोककर पूरे राज्य को बंधक बना रहे हैं। ऐसी स्थिति में न्यायालय को हस्तक्षेप करना चाहिए, सरकार ने तर्क दिया था।
वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी, मुकुल रोहतगी, राकेश द्विवेदी और पी विल्सन ने तमिलनाडु राज्य का प्रतिनिधित्व किया। भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने तमिलनाडु के राज्यपाल का प्रतिनिधित्व किया। 11 फरवरी को न्यायालय ने राज्यपाल से पूछा था कि वह एक विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचारार्थ कैसे भेज सकते हैं, जबकि उस पर राज्य विधानमंडल द्वारा पुनर्विचार किया जा चुका है और उसे दूसरी बार पारित किया जा चुका है। इससे पहले की सुनवाई के दौरान भी न्यायालय ने इस बात पर गंभीर टिप्पणी की थी कि राज्यपाल ने तमिलनाडु विधान सभा द्वारा पारित कई विधेयकों पर अपनी सहमति न देने के लिए अपनी खुद की प्रक्रिया तैयार की है, जिससे संवैधानिक प्रावधान बेमानी हो गए हैं ।