Thursday, April 25, 2024
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एन्डस (ENDS) से मिलिये और उन्हें प्रतिबंधित न कीजिए

विश्व स्वास्थ संगठन की ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2016 के अनुसार विश्व में सामने आए कुल 10.3 मिलियन नए टीबी मामलों में से 2.8 मिलियन मामले भारत से हैं। इसके अलावा, यह रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत में मुंह के कैंसर से होने वाली सालाना मौतों की संख्या 10 लाख से अधिक हो गई है। ये संख्या खतरनाक है, भारत, स्वास्थ्य देखभाल के संकट की कगार पर है, जबकि पोशण टीबी रोगियों की संख्या वृद्धि का प्रमुख कारण हो सकता है, तम्बाकू की खपत में वृद्धि को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हर गुजरते बजट के साथ वित्त मंत्री ने तम्बाकू और इससे संबंधित उत्पादों के उत्पाद शुल्क में वृद्धि की घोशणा की। 2017 में तम्बाकू या गुटखा युक्त पान मसाला उत्पादों पर उत्पाद शुल्क 10 से बढ़कर 12 प्रतिशत हो गया। अन्य गैर-विनिर्मित तम्बाकू के लिए यह शुल्क पहले 4.2 प्रतिशत से बढ़कर 8.3 प्रतिशत कर दिया गया। नाॅन-फिल्टर सिगरेट पर एक्साइज़ ड्यूटी 215 रूपए प्रति हजार से बढ़ाकर 311 रूपए कर दी गई है। 2016 में सरकार ने सिगरेट पर उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क 9 प्रतिशत बढ़ा दिया था। इस वर्श तम्बाकू और संबंधित उत्पादों को 28 प्रतिशत के उच्च्तम जीएसटी ब्रैकेट और 5 प्रतिशत सेस में रखा गया है। इसके अलावा, पिछले कुछ महीनों में सिगरेट पैक पर जारी पैकेजिंग चेतावनियों पर भी एक बहस हुई है।
लेकिन असली सवाल यह है कि इन उपायों का तम्बाकू या इससे संबंधित उत्पादों की बिक्री और उपभोग पर काफी प्रभाव पड़ा है। मधुमेह और हृदय रोगों के साथ, भारत में तम्बाकू की खपत एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभरी है। पारम्परिक सिगरेट में निकोटीन और रसायनों की उच्च मात्रा नशे की लत बढ़ाती है और एक व्यक्ति द्वारा इसे छोड़ना असंभव बना देती है। यह समय की ज़रूरत है कि ऐसे विकल्पों पर विचार किया जाए जिससे नशे की आदत और अंत में धूम्रपान को छोड़ा जा सके। वेपिंग का एसे प्रयास में एक विकल्प के रूप में विचार किया जाना चाहिए।
कैंसरकारक पदार्थों के खिलाफ एक हालिया प्रयास में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तम्बाकू नियंत्रण प्रभाग ने संशोधन के लिए सार्वजनिक डोमेन से सिगरेट के संशोधन को वापस लेने और अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम (सीओटीपीए), बिल 2015 को वापस लेने के लिए एक नोटिस भेजा है। नए अपेक्षित संशोधित संशोधनों में ई-सिगरेट/वेपिंग उपकरणों को बढ़ावा देने के खिलाफ कार्रवाई शामिल होगी।
ivape.in के संस्थापक नीलेश जैन ने कहा, ‘‘सरकार और मंत्रालय को एक समग्र दृष्टिकोण के साथ एक कल्याणकारी प्रयास के साथ वेपिंग पर विचार करना चाहिए और बिना उचित शोध के निष्कर्ष नहीं लेना चाहिए। हम मानते हैं कि एण्ड्स का नियमन 120 मिलियन धूम्रपान करने वालों को प्रौद्योगिकी तक पहुंच प्रदान करेगा, जो उनके लिए जीवन और मृत्यु के बीच का अंतर बना सकते हैं। एक ब्लैंकेट बैन एक समाधान नहीं है, बल्कि बेहतर चुनाव के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है और धूम्रपान पर सुरक्षित विकल्प है।’’
विषेषज्ञों के मुताबिक वेपिंग को नुकसान को कम करने वाले उपकरण के रूप में माना जाता है। वेपिंग सांस लेने और छोड़ने का एक कार्य है, जो प्रोपलीन, ग्लाइकाॅल, ग्लिसरीन और स्वादरंगों से बने एक तरल के वाश्पीकरण द्वारा किया जाता है, जिसे एक बैट्री चलित इलेक्ट्राॅनिक उपकरण द्वारा संचालित किया जाता है। नवम्बर माह में ivape.in ने नो स्मोक नोवेम्बर नामक एक अभियान शुरू किया और ग्राहकों की प्रशंसा प्राप्त की, जिन्होंने अपने अनुभव को साझा करते हुए सिगरेट के स्थान पर वेपिंग को अपनाने के बदलाव पर बात की तथा एक स्वास्थ्य और कल्याण एक्सपो में भी भाग लिया। यह पहला अवसर था जब एक वेपिंग ब्राण्ड एक ऐसे कार्यक्रम का हिस्सा बना, जहां डाॅक्टर्स, पोशण विशेशज्ञ और फिटनेस उत्साही वेपिंग के फायदों को जानने के लिए उत्सुक थे। जैन ने आगे जोड़ते हुए कहा, ‘‘हम मानते हैं कि भारत में वेपिंग के बारे में जागरूकता न्यूनतम है। इससे वहीं समस्याएं बढ़ेगी जिनका सरकार पहले से ही सामना कर रही है। उत्पादों को अवैद्य रूप से बेचा जाएगा और उत्पाद की गुणवत्ता से भी समझौता किया जा सकता है। वर्तमान में हम जो उत्पाद बेच रहे हैं वह आईएसओ प्रमाणित हैं।’’
अगर हम अमेरिका को देखें तो वहां एफडीए नीति तम्बाकू से निकोटीन तक फोकस करने पर काम कर रही है और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर एक दूरगामी प्रभाव की दिशा में काम हो रहा है। साक्ष्य यह दर्शाता है कि लोगों के स्वास्थ्य के नुकसान को कम करने के लिए डिजाइन किए गए वैकल्पिक उत्पादों का जल्द ही परिणाम देखने को मिलेगा। जाहिर है कि विशेश रूप से भारत में, जहां तम्बाकू एक बड़ा बोझ है और जहां सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा का उपयोग सबसे कम है, एैसी जगह पर नुकसान की कमी को प्रमाणित करने के लिए अधिक शोध किए जाना चाहिए। प्रतिरक्षात्मक उपायों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। भारतीय नियामकों और स्वास्थ्य मंत्रालय को भी नई नीतियों की दिशा में कदम उठाना चाहिए और नुकसान को कम करने के विकल्पों को प्रोत्साहित करना चाहिए, तभी सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ अभूतपूर्व हो सकता है।