कानपुरः स्वप्निल तिवारी। नए संक्रमण एवं लिवर की बीमारी रोकने के लिए हेपेटाईटिस की समय पर जांच व देखभाल की जागरूकता को बढाने के लिए वल्र्ड हैपेटाईटिस डे से पूर्व स्वरूप नगर स्थित गैस्ट्रोलिवर हास्पिटल में डा. वी. के मिश्रा द्वारा एक वार्ता का आयोजन किया गया। इस अवसर पर उन्होने बताया कि पांच करोड भारतीय हैपेटाईटिस बी से क्रोनिक रूप से संक्रमित है और 12 से 18 करोड लोगो को हेपेटाइटिस सी है। उन्होने यह भी कहा कि यदि हेपेटाईटिस बी वं सी का समय पर इलाज न किया जाये तो यह जानलेवा बीमारियां जैसे लिवर की क्रोनिक बीमारी साईरोसिस और लिवर कैंसर तक कर सकती है, इस लिए इसकी जागरूकता और इसपर नियंत्रण जरूरी है डा0 वीके मिश्रा नेक हा हेपेटाइटिस बीस और सी संक्रमण से पीडित लोगो के लिए आवश्यक है कि वो दवाईया बिल्कुल परामर्श के अनुरूप ले। ऐसा न करने पर वायरस एंटीवायरल दवाईयों के प्रति रजिस्ट्रैस विकसित कर लेता है साथ ही दवाई समय से पहले बंद के वायरल लोड एवं लिवर एंजाईम में वृद्धि हो सकती है, जिससे लिवर खराब हो सकता है और अन्य गंभीर समस्याये भी हो सकती है। इसीलिए एचबीवी और एचसीवी से पीडित मरीजों को हैल्थकेयर प्रोफेशनल द्वारा नियमित तौर पर निरीक्षण करवाना चाहिये ताकि बीमारी को ठीक से नियंत्रित किया जा सके। उन्होेन बताया एक्यूट एचबीवी एवं एचसीवी संक्रमणों के ज्यादातर मामले एंसिपटोमेटिक होते है। कुछ मरीजो में लक्षण कई हफ्तो तक दिखाई देते है, कुछ की त्वचा व आखों पीली पड जाती है व गहरे रंग की मूत्र, अत्याधिक थकावट, बेहाशी, उल्टी एवं पेट दर्द की शिकायत होती है। 6 साल से कम आयु के बच्चे, जिन्हे हैपेटाईटिस वायरस का संक्रमण होता है उन्हे क्रोनिक संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। व्यस्कों के रूप में संक्रमित होने वाले 5 प्रतिशत से कम लोगों को क्रेानिक संक्रमण होता है और क्रोनिक संक्रमण वाले 20 से 30 प्रतिशत व्यस्कों का साईरोसिस या लिवर कैंसर हो जाता है। बताया ये दो वायरस संक्रमित खून या वायरस से पीडित व्यक्ति के शरीर के अन्य द्रव्यों के संपर्क में आने से फेलते है। यह यौन, संसर्ग, संक्रमित सुई या सिरिंज, संक्रमित इन्वेसिव मेडिकल उपकरणों के उपयोग या माता-पिता से वर्टिकल ट्रांमिशन द्वारा फैल सकता है लैल्थकेयर वर्कर को सबसे ज्यादा जोखिम होता है क्योंकि वो मरीजो या संक्रमित सामग्री के लगातार संपर्क में रहते है। बताया एक बार संक्रमण हो जाये तो पूरे इलाज का भरासा नही दिलया जा सकता है इन्हे एंटीवायरल दवाईयों से नियंत्रित किया जाता है जिसके लिए अजीवन दवाई की जरूरत पडती है