Sunday, May 5, 2024
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एससी-एसटी आरक्षण की समीक्षा के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर लोगों ने उठाई मांग

ईडब्ल्यूएस आरक्षण की समीक्षा को गठित हो सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ
सुप्रीम कोर्ट में लंबित है 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण के खिलाफ याचिकाएं
मुद्दा यह कि संवैधानिक ढांचे का उलंघन करता है गत वर्ष से लागू ईडब्ल्यूएस आरक्षण
पंकज कुमार सिंह-
कानपुर। देश में फैली कोराना महामारी यानि कोविड-19 वायरस हमले के संकटकालीन दौर में पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने देशवासियों के बीच एक बड़ी बहस छेड़ दी है। गत हफ्ते गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सरकार को अपना फैसला दिया कि अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति में क्रीमीलेयर सिद्धान्त लागू करे, जो एससी-एसटी के लोग आरक्षण का लाभ लेकर आगे बढे या धनी हो चुके हैं, उन्हें शाश्वत रूप से आरक्षण देना जारी नहीं रखा जा सकता। जस्टिस अरूण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह फैंसला दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर देश की एक बङी आबादी के लोगों के बीच असहमति पूर्वक विरोध देखने को मिला है। ऐसे में लोगों के बीच ईडब्ल्यूएस (ईकोनाॅमिकली वीकर सेक्सन) यानि सवर्ण आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिकाओं की सुनवाई और इसकी समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में संविधान पीठ के गठन को लेकर आवाज उठने लगी है। गौरतलब है 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ देखा जा रहा है और इसको कानून के रूप में लाने के लिए पीएम मोदी की अगुवाई वाली केन्द्र की भाजपा सरकार व इसकी समर्थक राजनैतिक पार्टियों की सामाजिक जातीय राजनीति करार दिया जा रहा है।
बताते चलें कि गत 25 जनवरी 2019 को 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर रोक को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका की सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने फौरी रोक लगाने सें इंकार कर दिया था और सरकार को नोटिस जारीकर इस पर जवाब मांगा था।
गजट नोटिफिकेशन के बाद से ईडब्लूएस आरक्षण लगातार प्रभावी है।
गरीबी उन्मूलन का कार्यक्रम नहीं है आरक्षण-
संवैधानिक जानकार बताते हैं कि आरक्षण यानि ‘संवैधानिक तौर पर रीप्रजेंटेशन’ यह गरीबी उन्मूलन का कार्यक्रम नहीं है। यह सोशल जस्टिस और सामाजिक पिछङेपन को दूर करके मुख्यधारा में शामिल करने की एक संवैधानिक व्यवस्था है। ऐसे में 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस यानि सवर्ण आरक्षण संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है। संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। संविधान के 124वें संसोधन के तहत लागू 10प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण संविधान की मूल ढांचे का उलंघन करता है। कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा देश की विभिन्न स्तरीय व्यवस्थाओं में जातीय आरक्षित वर्ग के रीप्रजेंटेशन की समीक्षा कराई जानी चाहिए साथ ही 2011 के जनगणना के जातीय आंकङो को सार्वजनिक कराकर कानूनन न्याय स्थापित हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धता दे रहा ईडब्ल्यूएस आरक्षण
संवैधानिक जानकार यह भी बताते हैं कि 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण 1992 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के उस फैसले को धता दे रहा है जिसमें कहा गया था कि आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता ऐसे में ईडब्ल्यूएस सहित कुल आरक्षण 59 फीसदी तक लागू हो रहा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का एससी-एसटी आरक्षण की समीक्षा का फैसला चौकाने वाला है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में यूथ फाॅर इक्वलिटी नामक एक एनजीओ की याचिका में 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण के कानून को चेलेंज किया गया था। जिसपर फैसला लंबित है। याचिका की सुनवाई पर गत वर्ष जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम इस मुद्दे पर परीक्षण करेंगे।
ईडब्ल्यूएस आरक्षण मुद्दे पर सवाल-दर-सवाल
कोरोना महामारी के बीच आरक्षण की समीक्षा पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने बहस तो छेङ दी है ऐसे में केन्द्र की भाजपा सरकार के साथ राजनैतिक पार्टियों पर भी सवाल खङे हुए हैं। 124 वें संविधान संसोधन कर 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस यानि सवर्ण आरक्षण का कानून संसद में पास हो गया था लेकिन सवाल आज भी लगातार जिंदा बने हुए हैं। 10 प्रतिशत आरक्षण आखिर किस आधार पर लागू हुआ? सवर्ण जनसंख्या के आंकङें कहां हैं? गरीबी की परिभाषा और आर्थिक आधार पर मानक कैसे तय किए गए? न्यायपालिका, कार्यपालिका में संवैधानिक तौर पर रीप्रजेंटेशन स्थापित करने के आंकङे सवाल उठाते हैं। 2011 की जनगणना से पूर्व हुई देश में जातीय जनगणना के मुताबिक 15 प्रतिशत सवर्ण आबादी सामने आई थी और वर्तमान में यह आंकङा 13 से 15 फीसदी के बीच में अनुमानित है। जिसमें 52 से 55 फीसदी ओबीसी(अदर बैकवर्ड क्लास) शेष अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति व अन्य शामिल है।
ईडब्ल्यूएस आरक्षण की व्यवस्था पर ऐसे उठे सवाल
ईडब्ल्यूएस आरक्षण के दायरें आने के लिए जो कानूनन व्यवस्था केन्द्र की भाजपा सरकार लाई इसमें तहत 8 लाख से कम वार्षिक आय होना जरूरी है इसके साथ 5 एकङ से कम कृषि भूमि, शहरी क्षेत्र में 1000 स्क्वायर फीट से कम व ग्रामीण क्षेत्र में 2000 स्क्वायर फीट से कम रिहायस क्षेत्र होना शामिल है। ऐसे में गौरतलब है कि सदियों से पिछङे और गरीब रहे ओबीसी 8 लाख की आय पर आते क्रीमी लेयर में शामिल होकर आरक्षण से बाहर हो जाता है। बताते चलें किस व्यवस्था के तहत लगातार भर्तियों के विज्ञान जारी हो रहे हैं। ऐसे में सामाजिक विश्लेषक और जानकार संवैधानिक ढांचे की मूल भावना को बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट से ईडब्ल्यूएस आरक्षण की समीक्षा और इसका परीक्षण की मांग जरूरी मानते हैं। और इसी के तहत आरक्षण सरीखी सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम प्रणाली पर सवाल भी सवाल उठाते हैं।