Thursday, May 2, 2024
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लाॅकडाउन की तपस्या भंग

कोरोना वायरस (कोविड-19) ने पूरी दुनियां को दहशत में जीने पर मजबूर कर दिया है। हजारों लोग मौत के मुंह में समा गये। लाखों की संख्या में लोग जिन्दगी और मौत से लुका छिपी के दौर से गुजर रहे हैं। कई देश लाॅकडाउन के दौर से गुजर रहे हैं, भारत भी उनमें से एक है। लाॅक डाउन की घोषणा होते ही देश वासियों ने अपने अपने स्तर से लाॅक डाउन का पालन करने में सहयोग किया है। लेकिन राजस्व के लालच ने सब्र का बांध तोड़ने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। कोरोना के संक्रमण काल में शराब बन्दी का आदेश हटाने को कदापि उचित नहीं ठहरा सकते। यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया गया क्यों कि शराब की दुकानें खुलते ही उनके आगे जमा हुई भारी भीड़ ने शारीरिक दूरी बनाए रखने की ऐसी उपेक्षा की कि लाॅकडाउन की तपस्या भंग हो गई। यह कहना कदापि अनुचित नहीं कि सरकार का यह फैसला बिना सोंच-विचारे लिया गया। केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों व उनके स्थानीय प्रशासन को इसका पूरी तरह से ध्यान रहना चाहिए था कि शराब बिक्री की अनुमति मिलने पर उनकी दुकानों पर अफरातफरी का माहौल उत्पन्न हो सकता है। और ज्यादातर स्थानों पर ऐसा ही देखा गया। शराब के शौकीन कहें या लती लोगों ने जल्दवाजी दिखाते हुए शराब खरीदने की ललक में संयम और अनुशासन को ठेंगा दिखाते हुए लाॅक डाउन की व्यवस्था को पानी में बहा दिया।
हालांकि ऐसे में सवाल उठता है कि जब बीते 40 दिन से शराब के बगैर काम चल रहा था तो फिर कुछ दिन और रुक जाते या धैर्य रखते हुए संयम का परिचय देते शराब प्रेमी?
यह सवाल उठना भी लाजिमी है कि जब अनेक वस्तुओं की बिक्री अथवा उत्पादन पर रोक जारी है तो फिर शराब की बिक्री को लेकर उदारता दिखाने की इतनी जल्दवाजी अथवा जरूरत क्या थी सरकार को?
हालांकि शराब की दुकानों पर दिखे नजारों के चलते तमाम जगहों पर शराब की दुकाने बन्द करनी पड़ी अथवा बिक्री पर रोक लगानी पड़ी। शराब की दुकानों पर सुरक्षा बलों को तैनात करना पड़ा, शायद इसके अलावा और कोई उपाय भी नहीं था, क्योंकि लोग सर्तकता का जरा भी ध्यान देना नहीं चाहते थे। कोरोना से बचाव के लिये आवश्यक बताई गई शारीरिक दूरी को लेकर बरती जाने वाली सजगता को ताक पर रख चुके थे।
यह अजीब ही कहा जा सकता है कि एक ओर शराब के सेवन से प्रतिरोधक क्षमता में कमी होने की वकालत की जाती है तो दूसरी ओर कोरोना काल में शराब की दुकानों को खोलने का फैसला ले लिया गया। बेहतर हो कि केंद्र सरकार व राज्य सरकारें यह समझने का प्रयास करें कि जिस तरह से कोरोना के संक्रमितों की संख्या में वृद्धि निरन्तर हो रही है उससे आने वाले दिनों में उन्हें अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है।
हालांकि सत्ताधारी यह तर्क देकर अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं कि राजस्व इकट्ठा करने के लिये राज्य सरकारों के पास यही प्रमुख स्रोत है। लेकिन सरकारों को ध्यान रखना चाहिये कि धनहानि की क्षतिपूर्ति तो की जा सकती है लेकिन जनहानि की नहीं।
वहीं शराब के लिए शराब की दुकानों पर जो नजारे दिखे उससे तो यही प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार अब शराब को आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में रख दे। इससे शराबियों की इच्छा भी तृप्ति होती रहेगी और राज्य सरकारों का राजस्व भी आता रहेगा।