Monday, April 29, 2024
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एक कटु सत्य-चेहरे की सुंदरता से ही नहीं चलती ज़िन्दगी

जिंदगी में सुंदरता के अलावा भी और बहुत सारा कुछ है, जिसके जिन्दगी में होने से ही जिंदगी का कोई मर्म निकलता है, कोई सार समझ में आता है।
सौंदर्य की जब बात छिड़ती है तब स्त्रियाँ याद आती हैं और स्त्री की बात जहाँ आती है, उसके सौन्दर्य की चर्चा स्वत: जुड़ जाती है। मानो, स्त्री सौंन्दर्य का पर्याय है, लेकिन अब वक्त बदला है।
हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी पैठ बनाई है। आज की नारी अपने सौंन्दर्य से ज्यादा अपनी योग्यता और काबिलियत की प्रशंसा सुनना अधिक पसंद करती है, क्योंकि अब सुन्दरता के मायने बदल गए हैं। सच भी है, अब नारी सिर्फ श्रृंगार की व्याख्या बन उसमें ही सिमट कर रहना नहीं चाहती।
वैसे सुंदरता के मापदंण्ड क्या हैं…??
यदि स्त्री को अन्तर्दृष्टि से देखो तो दुनियां की हर एक स्त्री सुंदर है… विशेष है। मैं तो समझती हूँ सौंन्दर्य की प्रतियोगिता जीतने वाली स्त्री जितनी सुंदर है, एक श्रमिक नारी भी, जिसके हाथ मिट्टी से सने और चेहरे पर धूल की परत होती है,, उतनी ही सुंदर है।
संसार का हर मनुष्य जन्म से लेकर वृद्ध अवस्था तक स्त्री के कईं रूप और स्वरूपों, यथा माँ, बहन, बीबी, बेटी और मित्र के स्नेह, ममता और प्यार की छत्रछाया और संरक्षण में जीवन व्यतीत करता है,, आदमी से इंसान बनता है, तो हर रिश्ते को बखूबी निभाती वो स्त्री बदसूरत और किसी के लिए बोझ कैसे हो सकती है..??
बहुत सारी स्त्रियों को देखती हूँ, खुद को स्लिम करने के लिए, खुद को सुंदर दिखाने के लिए उससे संबंधित साधनों में खोए रहना और सिर्फ वह सिर्फ और सिर्फ़ स्लिम व सुंदर होने के लिए प्रयास करते रहना। उनकी जिंदगी का जैसे कोई और मकसद ही नहीं दिखता, उनके भीतर ज्ञान-विज्ञान की कोई भूख ही नहीं दिखाई देती !!
पता नहीं कुछ स्त्रियों में आजादी का या फिर अपने लिए जीने का सिर्फ यही मकसद कैसे हैं और क्यों हैं ..??
हालांकि यह सब कहना मेरे खुद के अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात है और ऐसा मुझे नहीं कहना चाहिए, किंतु फिर भी मन नहीं मानता और यह कहने को विवश होना पड़ता है कि जो लोग भी सिर्फ स्लिम और सुंदर दिखने के लिए, सिर्फ अपनी देह को सुंदर दिखाने के लिए दिन-रात प्रयास मग्न रहते हैं, उनको देखकर कभी-कभी बेहद आश्चर्य होता है ! क्या इसके अलावा जिंदगी में कुछ भी नहीं है ..??
जब हमारे भीतर ज्ञान विज्ञान से संबंधित कोई भूख नहीं होती, किसी भी प्रकार के कुछ भी वैसे कर्म करने की इच्छा नहीं होती, जिससे हम किसी को कुछ दे सकें, जिससे किसी के जीवन पर कोई सकारात्मक प्रभाव पड़े।
बहुत सारी स्त्रियों को आजादी, अत्याचार, ऐसी बातों की बवाल, हल्ला करते हुए देखती हूँ और उनकी निजी जिंदगी को देखती हूँ तो मन को बहुत कोफ्त होती है, क्योंकि आजादी का मतलब उनके लिए किटी पार्टी करना, जिम जाना, होटलों में जाना, शॉपिंग करना आदि-आदि, बस इतना भर ही होता है, ऐसी आजादी पर मुझे बहुत आश्चर्य होती है, क्योंकि मेरे जानते धरती पर हम यदि मौजूद हैं, तो हमारे हिस्से का कर्म तो हमें करना ही है और ईश्वर ने हमें हाथ पैर भी इसीलिए दिए हैं कि हम कुछ कर सकें। जानवरों को अपने भोजन का इंतजाम करने के लिए चलना पड़ता है, घूमना पड़ता है, दूर-दूर तक जाकर, उड़कर, तैर कर, भोजन जुटाना पड़ता है। उसी प्रकार आदमी ने भी अपने भोजन और दूसरे साधनों के जुगाड़ के लिए कुछ दूसरे हालात तय किए हैं, मगर उनके अनुसार भी कमाने खाने के लिए यत्न करना पड़ता है, मेहनत करनी पड़ती है।
उसी तरीके से स्त्रियों के शारीरिक गुणों के अनुसार उसे घर के काम-काजों की प्राथमिकता सौंपी गई है और पुरुष को बाहर के कामकाजों की प्राथमिकता सौंपी गई है, यह बात अलग है कि आज की स्त्री सार्वजनिक स्थानों पर काम कर रही है और बहुत अच्छा काम कर रही हैं, लेकिन बाकी की हल्ला-बोल स्त्रियों को देखा जाए, तो इनमे से ज्यादातर स्त्रियां, जो यूँ तो तरह तरह के अधिकारों की बात भी करती दिखतीं हैं, वह खुद जिंदगी में कभी कुछ खास करती हुई नजर नहीं आती, फिर ऐसे में उनका कोई प्रभाव, कोई रुतबा भला कहां से हो सकता है, रुतबा तो सिर्फ उन्हीं लोगों का होता है, प्रभाव तो सिर्फ उन्हीं लोगों का होता है, जो वास्तव में कुछ ऐसा कर रहे होते हैं, जिससे समाज या फिर कुछ और नहीं तो काम-से-कम उनका परिवार तो लाभान्वित हो रहा होता है और यह सिर्फ आर्थिक क्षेत्र में हो ऐसा भी कोई जरूरी नहीं है। कुछ अन्य क्षेत्रों के द्वारा भी ऐसा किया जा सकता है, लेकिन निश्चित तौर पर केवल जिम जाकर और सुंदर दिखकर यह कर पाना संभव नहीं है !
जिम जाना और सुंदर दिखना जीवन का एक छोटा सा हिस्सा अवश्य हो सकता है, समूचा जीवन तो कतई नहीं, क्योंकि आपका समूचा जीवन आपके बाकी कामों पर ही अवलंबित है और आप जैसा काम करेंगे वैसे ही आपके परिवार में, समाज में, देश में या विश्व में साख होगी, तो एक ओर तो जब आप ऐसा कुछ करना ही नहीं चाहते और फिर दूसरी ओर आप समाज में अपना एक बेहतर मान-सम्मान चाहते हैं, तो ऐसा हो नहीं सकता, ऐसा कभी हुआ भी नहीं, क्योंकि औसत लोगों का कोई खास-सम्मान नहीं होता और सबसे बेहतर लोग जो कुछ करने की उत्कट इच्छा रखते हैं और अपना काम करते चलते हैं, उन्हीं लोगों को समाज में उनका वास्तविक अवदान मिल पाता है ( लेकिन कभी-कभी तो वह भी नहीं मिलता) और वह अवदान आर्थिक क्षेत्र में भी हो सकता है या किसी अन्य क्षेत्र में भी हो सकता है और यदि ऐसा नहीं है तो निश्चित तौर पर आपको खुद को इस बात पर ईमानदारी से विचार करना होगा और तब उस रास्ते पर चलना भी होगा, जो आप को मान सम्मान दिलवा सके और उस मान-सम्मान में उत्तरोत्तर वृद्धि भी करवा सके।
“सौंदर्य एक बोध है,
जिसे अनुभव किया जाता है … जो गहराई मे आकर हमारे भाव को कुरेदता है।व्यक्तित्व का सौंदर्य तो उसके आंतरिक गुणो एंव विशेषताओ मे निहित है।
हमारी प्रतिभा सुदंरता की परिचायक है,
प्रतिभावान व्यक्तित्व का सौंदर्य निराला होता है।
सौंदर्य देखने की वस्तु नहीं, एक अनुभूति है।
अगर अनुभूति नहीं कर सकते, तो देख नहीं सकोगे।
और जिसे सुन्दर समझोगे, वह तुम्हारा भ्रम होगा।
जब सच सामने आयेगा, तुम्हें अपने ठगे जाने का अहसास होगा।नजरों का प्यार होना
दिल मिलने का सबूत नहीं होता। अगर सौदर्य का बोध करना है तो अपनी नीयत को सुन्दर करो,
चारो ओर तुम्हें सौदर्य का अहसास होगा”।
रीमा मिश्रा”नव्या” आसनसोल(पश्चिम बंगाल)