Sunday, May 5, 2024
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100 % नम्बर अर्जित कर साबित किया, मैरिट किसी की बपौती नहीं

– मौके की जरूरत, वंचित- पिछडे समाज के युवा साबित कर रहे योग्यता
– कम्पटीशन एग्जाम हों या एकेडमिक कोर्स और या हों शोध, युवा दर्ज कर रहे इतिहास
कानपुर/नई दिल्ली, पंकज कुमार सिंह। सदियों से उपेक्षा के शिकार रहे वंचित-पिछडे समाज के युवा साबित कर रहे हैं कि योग्यता किसी की बपौती नहीं है। लगातार मैरिट लिस्ट में स्थान पाकर उस मानसिकता का भी खंडन कर रहे हैं जिसमें वंचित वर्ग को हीन दृष्टि से देखा जाता रहा है। लेकिन अब सब उपेक्षाओं को दरकिनार कर युवा हुनर के साथ लामबन्द हो गए है। हक के लिए लङकर वह आगे आ रहे हैं। इनके माता पिता भी अथक परिश्रम और मुफलिसी में भी बच्चों की शिक्षा के लिए दिनरात एक किए हैं। साफ जाहिर है कि मौके की जरूरत है, योग्यता तो साबित करके दिखा रहे हैं।
गत सप्ताह सीबीएसई के परीक्षा परिणाम घोषित हुए। बारहवीं में 500 में 500 नम्बर हांसिल कर बुलन्दशहर के तुषार सिंह जाटव ने 100 फीसदी अंक अर्जित कर देशभर में कीर्तिमान स्थापित कर दिया। कानपुर की अंशी सचान ने 97.2, दीप्ती कुशवाह ने 96.2, अखिलेश पाल ने 93.2 प्रतिशत अंकों के साथ धाक जमाई। वहीं वाराणसी के हर्ष मौर्य ने दसवीं की परीक्षा में 99.2 प्रतिशत अंक हासिल किए। वहीं मयंक कुशवाह ने 99 प्रतिशत के साथ अपनी योग्यता साबित की है। अलीगढ के आदित्य कुमार सिंह ने 98.80 प्रतिशत अंक हांसिल कर उन लोगों को करारा जवाब दिया है जो आरक्षण का विरोधकर मैरिट की दुहाई देते हैं। सुमति ने 98 प्रतिशत अंक हासिल किए। आम्बेडकर नगर के अशुल पटेल ने 97.60 प्रतिशत और सौरभ चौधरी को 96.5 प्रतिशत, कामिनी यादव ने 94.40 फीसदी के साथ धाक जमाई। ये तो महज कुछ नाम हैं। ऐसे देशभर में हजारों बच्चे हैं जिन्होंने अपनी योग्यता का लोहा मनवा दिया है। आपको बताते चलें कि गत वर्षों का आंकड़ा देखें तो देश की सर्वोच्च सेवा के लिए चयन की परीक्षा यूपीएससी के कटऑफ में भी सामान्य व पिछडे वर्ग में महज कुछ अंकों का ही अंतर रहा है। राज्य प्रशासनिक सेवाओं सहित अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में भी कमोबेश यही स्थिति हैं। दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार सुमित सुमित चौहान कहते हैं कि काबीलियत है तो नम्बर आ रहे हैं। आरक्षण प्रतिनिधित्व का मामला है। नम्बरों की बहस में आरक्षण पर प्रहार नासमझी है। इस तरह की बहस में लोगों के बीच भ्रम पैदा किया जाता है। पोस्ट डाॅक्टरल रिसर्चर डाॅक्टर अजय कुमार कहते हैं कि वंचित समाज के लोगों को मौके की जरूरत होती है और इसी मौके की व्यवस्था में वंचित पिछङों के साथ धोखा होता रहा है। महान क्रिकेटर विनोद काम्बली और सचिन तेंदुलकर का उदाहरण सामने है। एक वरिष्ठ आईएएस के पिता इंजीनियर एसबी सैनी कहते हैं कि अलग अलग वर्गों में यूपीएससी के साक्षात्कार और लिखित परीक्षा के अंकों का विश्लेषण करेंगे तो भेदभाव की स्थिति साफ झलकती दिखेगी। यदि संवैधानिक व्यवस्था को सरकारें ईमानदारी से लागू करें तो सदियों से उपेक्षित समाज को मुख्यधारा में आने लिए ज्याद समय की जरूरत नहीं पड़ेगी। एक आंकङे के मुताबिक आज भी सरकारी नौकरियों तकरीबन 11 फीसदी ही पिछडे वर्ग की हिस्सेदारी है। जबकी एससी वर्ग की 12 फीसदी के करीब है। इन सबसे टकराते हुए कम्पटीशन एग्जाम हो या एकेडमिक कोर्स हो या फिर शोध का विषय हर क्षेत्र में युवा अपना दमखम दिखा रहे हैं।