रसूलाबाद/कानपुर देहात, राहुल राजपूत। श्रावण मास शुरू होते शिवालयों में सुबह से लेकर शाम तक भक्तो का तांता लगा रहता था और जयकारों से परिसर गूँजमान रहता था। इस बार अदृश्य वायरस के चलते भक्त घरों में ही रहकर भक्ति में लीन है वही मन्दिरो में सन्नाटा पसरा है। असालतगंज कस्बे में स्थित आस्था और विश्वास के प्रतीक द्रोनेश्वर शिव मंदिर में स्थित प्राचीन शिवलिंग गुप्तकालीन युग का बताया जाता है। हालांकि अभी तक यह पता नहीं लगाया जा सका है कि शिवलिंग कितना पुराना है। जोकि भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। वर्तमान में जो मंदिर है उसके विषय में गांव के लोगों ने बताया कि कि शिवलिंग हजारों वर्ष पुराना है। मंदिर के चारों और बारामदा है। यह एक प्राचीन खेरे पर स्थित है।
स्थानीय लोगों ने बताया कि कौरव और पांडव के गुरु द्रोणाचार्य ने यहां पर आकर तप किया था और भगवान शिव की आराधना करते थे। तब से इस मंदिर का नाम श्री द्रोनेश्वर शिव मंदिर रखा गया। इस मंदिर परिसर के आसपास खुदाई में आज भी प्राचीन मूर्तियां व अन्य बहुमूल्य चीजें मिलती हैं। साथ ही मानव कंकाल भी देखने को मिलते हैं। वर्ष में कई बार यहां पर धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। भक्तों का भारी जनसमूह उन धार्मिक कार्यक्रमों में देखने को मिलती है। मंदिर प्रांगण में ब्रह्मदेव का चबूतरा, काली मां का स्थान, बजरंगबली का मंदिर, बरगद व पीपल का पेड़ है। चार पंक्तियां मंदिर के विषय में खूब प्रचलित है।