जिस राममंदिर का हिंदुओं को सदियों से इंतजार था, आखिर 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों उसका शिलान्यास हो ही गया यानी मेंदिर की नींव पड़ गई। 5 अगस्त, 2020 का दिन भारतीय इतिहास में अयोध्या में राममंदिर का शिलान्यास होने के दिन के रूप में जाना जाएगा। देश में करोड़ो लोगों के हृदय में इष्टदेव के रूप में राम विराजमान हैं। परंतु देश की सबसे बड़ी विडंबना यह थी कि राम जन्मभूमि पर राममंदिर तोड़ दिया गया था। सैकड़ो वर्षों से दिल में यह कसक ले कर देश के करोड़ो लोग रामजी का जन्मदिन रामनवमी मनाते थे। परंतु सभी के हृदय में यह बात खटकती थी कि हमारे भगवान की जन्मभूमि पर मंदिर क्यों नहीं बन रहा। 5सौ सालों से यह कसक देश के करोड़ो हिंदुओं में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही थी।
इतिहासकार कनिंगम ने लखनऊ गजट में लिखा है कि 1लाख 74हजार हिंदुओं का कत्लेआम करने के बाद बाबर का सेनापति मीरबाकी अयोध्या का राममंदिर तोपों से उड़ाने में सफल हुआ था। उसके बाद उस मंदिर पर बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ और तब से मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए बलिदानों का सिलसिला शुरू हुआ। इतिहास कहता है कि श्रीराम जन्मभूमि पर फिर से मंदिर बनाने के लिए बाबर के ही समय में करीब छह युद्ध हुए। हुमायूं के समय में लगभग 12 युद्ध हुए। अकबर के समय में 24 और औरंगजेब के शासनकाल में करीब 36 छोटी-बड़ी लड़ाईयां राम जन्मभूमि को वापस पाने के लिए लड़ी गईं। देश का आत्मसम्मान वापस दिलाने के लिए हुए युद्धों में लाखों लोग खप गए। अंग्रेजों के समय में भी यह सिलसिला चलता रहा। सत्ताधारी अंग्रेज डिवाइड एंड रूल की पॉलिसी में विश्वास करते थे। 1857 में हिंदू-मुस्लिमों ने एक हो कर अंग्रेजो को भगाने के लिए गदर किया था। तब मुस्लिम नेता अमीरअली ने मुसलमानों से अपील की थी कि अंग्रेजों से यु( में हिंदू भाइयों ने कंधे से कंधा मिला कर साथ दिया है, इसलिए अपना फर्ज बनता है कि हमें खुद हिंदुओं को रामचंद्रजी की जन्मभ्रूमि सौंप देनी चाहिए। अंग्रेज अमीरअली की इस बात से चैंके। अंग्रेज हिंदू-मुस्लिम एकता सहन नहीं कर सकते थे। परिणामस्वरूप अंग्रेजों ने राम जन्मभूमि का विवाद खत्म करने की आवाज उठाने वाले मुस्लिम नेता मौलाना अमीरअली और हनुमान गढ़ी के महंत रामचंद्रदास को 18 मार्च, 1858 को अयेध्या में हजारों हिंदुओं और मुसलमानों के सामने कुबेर टेकरा पर फांसी पर लटका दिया था। इस घटना के बारे में अेंग्रेज इतिहासकार मार्टिन ने लिखा है। इस तरह खुलेआम फांसी देने से फैजाबाद और आसपास के गदर में शामिल लोगोें की कमर टूट गई और अंग्रेजों का खौफ उस क्षेत्र में फैल गया।
अंग्रेजों के समय भी इस विवाद का हल नहीं हो सका। आजादी के बाद सभी को उम्मीद थी कि यह विवाद हल हो जाएगा। क्योंकि जब देश आजाद होता है और नए राष्ट्र का निर्माण होता है तो राष्ट्र से जुड़ी गुलामी और अन्याय की यादों को हटा दिया जाता है। भगवान सोमनाथ के मंदिर के बारे में आजादी के बाद यह संभव हो सका। सन 1024 में मुहम्मद गजनी ने सोमनाथ मंदिर को तोड़ा, उसके बाद फिर मंदिर बना, फिर टूटा, ऐसा 7 बार हुआ। आखिर आजादी के बाद 13 नवंबर, 1047 को भारत के उप प्रधानमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की प्रतिज्ञा ली और आखिर 11 मई, 1951 को सोमनाथ की प्राणप्रतिष्ठा भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा0 राजेन्द्र प्रसाद के हाथों हुई। आजादी के बाद गुलरात के सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण संभव हो सका। पर अयोध्या के रामजन्म भूमि मंदिर के साथ ऐसा नहीं हो सका।
आखिर लंबी कानूनी लड़घई के बाद उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में राममंदिर बनाने का मार्ग प्रशस्त किया। विदेशियों को हैरानी हो रही है कि एक मंदिर के लिए इतना बड़ा संघर्ष और इतने बलिदान? पर ऐसा सोचने वालों को पता नहीं है कि अयोध्या केवल शहर का नाम नहीं है, अयोध्या राष्ट्र की सांस है, राष्ट्र की प्राण है। राम को भारत देश भगवान के रूप में इसलिए पूजता है, क्योंकि मानव के रूप में जन्म ले कर राम ने बताया है कि हर मनुष्य में अमोघ शक्ति छुपी है, जिससे वह महामानव को भी परास्त कर भगवान की श्रेणी तक पहुंच सकता है। राम आज देश के करोड़ो लोगों के लिए इष्टदेव इस लिए हैं, क्योंकि वह पशु, पक्षी, प्राणी, मनुष्य, सभी के लिए एक जैसे थे। वानर और रीछ से भगवान राम ने दोस्ती की और उन्हें अपना साथी बनाया। पक्षी जटायु को गोद में ले कर अंतिम विदा दी। मनुष्य के प्रति उन्होंने कोई भेदभाव नहीं किया। आदिवासी हो या भील, केवट हो या शबरी, सभी को बराबर प्रेम दिया। जिससे युद्ध करना था, उन राक्षसों के प्रति राम ने कभी कटुता नहीं रखी। इसी का परिणाम है कि आज राम सभी के हृदय में विराजमान हैं।
इस तरह के राम की जन्मभूमि पर राममंदिर बनने जा रहा हो तो राष्ट्र के हर रामभक्त का हृदय प्रफुल्लित होगा ही। सभी के प्यारे राम एक बार फिर अपनी जन्मभूमि में प्रतिष्ठित होने जा रहे हैं। 5 अगस्त को राममंदिर का शिलान्यास हो गया, उस समय नींव में रखी गई ईंट मात्र ईंट नहीं, अन्याय का प्रतिकार, गलत का तिरस्कार और सच्चाई के पुरस्कार का बोध इस शिलान्यास के साथ जुड़ा है। 5 अगस्त को अयोध्या सहित पूरे देश के लोगों ने दिवाली के पहले हीे दिवाली मना ली। अब हमें यही उम्मीद है कि देश में एक बार फिर रामराज्य की पताका लहराएगी और सभी को न्याय और सम्मान का अवसर मिलेगा।
-वीरेन्द्र बहादुर सिंह, नोएडा (उप्र)