Thursday, July 4, 2024
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बच्चों की पूरी सुरक्षा के बाद ही स्कूल खोले जाने चाहिए

वीरेन्द्र बहादुर सिंह

चीन से पैदा हुई महामारी ने पूरी दुनिया की नींद उड़ा कर मानवजीवन के सामने गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। भारत भी इससे बचा नहीं है। देश में कोरोना के मामले इतनी तेजी से बढ़ रहे हैं कि सुन कर डर लगने लगा है। 20 लाख से अधिक मामले देश में हो गए हैं। 40 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। देश में लगभग सभी राज्यों की स्थिति एक जैसी है। इनमें महानगरों की स्थिति कुछ ज्यादा ही खराब है।
कोविड-19 महामारी हमारे स्वास्थ्य पर सीधा हमला करती है। ‘सोशल डिस्टेसिंग और मास्क’ महामारी से बचने के एकमात्र रामबाण इलाज हैं। फिर भी लोगों की लापरवाही ने पूरे देश को चिंता में डाल दिया है। मानवजीवन के अनेक क्षेत्रें पर महामारी का सीधा असर दिखाई दे रहा है। अर्थव्यवस्था और रोजी-रोजगार सब चैपट हो गया है। गरीबों और मेहनत-मजदूरी करने वाले लोगों का जीना मुहाल हो गया है। मध्यमवर्ग भी अनेक समस्याओं से जूझ रहा है।
महामारी से सबसे अधिक प्रभावित शिक्षा का क्षेत्र हुआ है। साढ़े चार, पांच महीने से देश में पढ़ाई-लिखाई पूरी तरह बंद है। स्कूल-कालेज खोलना केंद्र और राज्य सरकार के लिए भी चिंता का विषय बना हुआ है। छात्र और उनके माता-पिता भी चिंतित हैं। ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था थोड़ा राहत जरूर दे रही है, पर जहां मोबाइल, इंटरनेट की व्यवस्था नहीं है, उस तरह के ग्रामीण इलाकों में गरीब मां-बाप के बच्चे पढ़ाई-लिखाई से पूरी तरह वंचित हैं। यह भी एक तरह की समस्या ही तो है।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि 16 साल से कम उम्र के बच्चे अगर दो घंटे से अधिक फोन का उपोग करते हैं तो उनकी स्मरण शक्ति पर गंभीर असर पड़ता है। ऑनलाइन पढ़ाई से कुछ बच्चों को सिरदर्द की शिकायत होने लगी है। ऐसे बच्चों को डाक्टर ऑनलाइन पढ़ाई और टीवी देखने से मना कर देते हैं। क्योंकि घर में रहने से बच्चे टीवी भी लगातार देख रहे हैं। अब ऐसे बच्चों की पढ़ाई का क्या होगा?
ऑनलाइन पढ़ाई परंपरागत पढ़ाई का स्थान नहीं ले सकती। स्कूल-कालेज की व्यवस्था छात्रें को केवल पढ़ने के लिए ही नहीें है, सर्वांगीण विकास और उत्तम जीवन को गढ़ने के अति आवश्यक है। पाठ्य पुस्तकों के अलावा जो ज्ञान स्कूल-कालेजों में मिलता है, वह घर में कदापि नहीं मिल सकता। अध्यापकों का स्नेहिल व्यवहार, प्रेम-लगाव, प्रोत्साहन छात्रें को पढ़ने के लिए प्ररित कर रुचि उत्पन्न करता है। बच्चे अध्यापकों की छत्रछाया में भयमुक्त हो कर हंसी-खुशी से पढ़ते हैं। छात्र और शिक्षक के बीच अध्ययन प्रक्रिया अधिक फलदायी और परिणाम देने वाली बनती है। कोरोना महामारी को आए साढ़े चार महीने से अधिक हो गए हैं। तब से स्कूल-कालेज लगातार बंद हैं। इससे साफ है कि सब से अधिक प्रभावित शिक्षा का ही क्षेत्र है। सबसे ज्यादा युवा वाले अपने देश में लंबे समय तक शिक्षा की अवहेला नहीं की जा सकती। कोरोना महामारी कब खत्म होगी, यह भी अभी अनिश्चित है। ऐसे माहौल में स्कूल-कालेज खोलने के बारे यक्ष प्रश्न राज्य सरकार और भारत सरकार के लिए चिंता का विषय है। चिंता और परेशानी का विषय बना हुआ है। चारों तरफ गहरी खाई है। इधर जाएं या उधर, समझ में नहीं आ रहा। कोरोना का विषचक्र लगातार चल रहा है।वैश्विक महामारी से घिरे इस संकट के बीच कोरोना वैक्सीन का सफल परीक्षण के समाचार दुनिया के देशों को थोड़ा राहत देने वाला है। लंदन की आक्सफोर्ड यूनिवार्सिटी द्वारा वैक्सीन का ट्रायल तीसरे चरण में है। अमेरिका, रूस, उत्तर कोरिया और चीन में भी ट्रायल चल रहा है। भारत में भी उत्साहित और आनंद देने वाला समाचार है। दिल्ली के एम्स अस्पताल द्वारा कोरोना के वैक्सीन का ह्युमन ट्रायल शुरू है। उसके परिणाम भी सकारात्मक मिल रहे हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बायोटेक, सीरम इंस्टिट्यूट, जायड्स केडिला, पेनेशिया बायोटेक, इंडियन इम्युनोलॉजिक्स, मायनावेक्स और बायोलॉजिकल जैसी सात भारतजीय कंपनियां वैक्सीन बनाने में जुटी हैं। सीरम ने तो इस साल के अंत तक वैक्सीन तैयार कर लेने की भी उम्मीद प्रकट की है। अगर भारत वैक्सीन तैयार कर लेने में सफल हो जाता है तो चिकितसा के क्षेत्र में भारत विश्व गुरु बन सकता है।
स्कूल-कालेज कब खुलेंगे, इसका पूरा देश इंतजार कर रहा है। छात्र और माता-पिता भी राह देख रहे हैं। सभी की नजर इसी पर जमी है। भरत सरकार के शिक्षा मंत्रलय ने अगस्त-सितंबर से स्कूल शुरू करने के लिए राज्यों से सूचना मांगी है। आंध्र प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, उड़ीसा, बिहार, केरल, दिल्ली, हरियाणा, पांडिचेरी और लद्दाख-चंडीगढ़ जैसे केंद्रशासित प्रदेशों को मिला कर कुल नौ राज्यों ने स्कूल-कालेज खोलने की सहमति प्रकट की है।
बाकी राज्यों ने स्थिति सामान्य होने के बाद ही स्कूल-कालेज शुरू करने के संकेत दिए हैं। बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा राज्य सरकार की पहली जिम्मेदारी है। पूरी सुरक्षा की जिम्मेदारी के साथ सभी को विश्वास में लेकर ही स्कूल-कालेज खोले जा सकते हैं। साइकोलॉजिस्ट, पीडियाट्रिशियन, समाजशास्त्रियों और समसजसेवियों के साथ-साथ अभिभावकों से परामर्श लिया जा रहा है। एक भी पढ़ने वाला बच्चा कोरोना का शिकार न हो इसके लिए पूरी तरह सतर्क रहना होगा। संकट की इस घड़ी में हम सभी को भावी पीढ़ी को सुरक्षा प्रदान करने में योगदान करना चाहिए।
सरकारें, उच्च अधिकारियों राज्य के जाने-माने शिक्षाविदों से सलाह ले रही हैं कि स्कूल कब शुरू किए जाएं, किस तरह शुरू किए जाएं, शुरू में किसे बुलाया जाए, एक साथ कितने क्लास बुलाए जाएं, छात्रें की सुरक्षा को ध्यान में रख कर स्कूल खोलने के बारे में व्यापक विचार-विमर्श चल रहा है। सभी का यही कहना है कि मौजूदा परिस्थिति को ध्यान में रख कर किसी भी तरह का खतरा उठाना ठीक नहीं होगा कि बच्चों की जिंदगी खतरे में पड़ जाए।
शहरी क्षेत्र की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रें में कोरोना संक्रमण न के बराबर है। इसलिए प्रयोग के तौर पर पहले ग्रामीण क्षेत्रें में स्कूल खोले जा सकते हैं। पिछले साढ़े चार, पांच महीने की महामारी में बच्चे नई जीवनशैली के साथ सोशल डिस्टेंस, हैंडवाश और मास्क पहनने के आदी हो चुके हैं। इसलिए परिपक्व होने से अब बच्चे परिस्थिति के साथ समझौता कर के स्थिति को अनुकूल बना सकते हैं। ज्यादातर ग्रामरीण स्कूलों में भौतिक सुविधाएं होने के कारण बैठने की व्यवस्था आसानी से हो सकती है।
पहले चरण में उच्चतर माध्यमिक, दूसरे चरण में उच्चतर प्राथमिक और उसके बाद प्राथमिक स्कूल खोले जा सकते हैं। गोंवों की सफलता को देख कर शहरी क्षेत्रें के स्कूलों के बारे में विचार किया जा सकता है। जरूरत पड़ने पर स्कूलों को दो शिफ्रटों में खोला जा सकता है। बच्चों को ध्यान में रख कर एक-एक दिन के अंतर पर बुलाया जा सकता है। कोरोनाग्रस्त या किसी अन्य बीमारी वाले बच्चे को स्कूल या कालेज न आने दिया जाए। इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाए। सभी बच्चों का चेकअप जरूरी है। उसके बाद ही बच्चों को स्कूल आने दिया जाए। अगर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से स्कूलों को जोड़ दिया जाए, तो ज्यादा सुविधा रहेगी।