राजनीति में हमेशा खाने और दिखाने के दांत अलग-अलग होते हैं। राजनीतिक पार्टियां अक्सर कहती तो यह हैं कि हम जाति आधारित राजनीति नहीं करते हैं, पर इन राजनीतिक पार्टियों के ज्यादातर निर्णय जाति आधारित राजनीति के आसपास ही होते हैं। मुख्यमंत्री बनाना हो या फिर किसी राज्य का पार्टी अध्यक्ष बनाना हो या फिर विधानसभा चुनाव का टिकट देना हो, या फिर जिला, तहसील या पंचायत सदस्य के उम्मीदवार का चुनाव करना हो, इन तमाम निर्णयों के आसपास जातिगत राजनीति की जबरदस्त पकड़ होती है। जिस विधानसभा क्षेत्र में जिस जाति के वोट अधिक होते है, उस क्षेत्र में उसी जाति का उम्मीदवार उतारा जाता है या फिर जाति का काम्बिनेशन कर के उम्मीदवार पसंद किया जाता है। इस मामले में सारी योग्यताएं धरी की धरी जाती हैं। मात्र जातिगत योग्यता को महत्व दिया जाता है।
उत्तर प्रदेश में इस समय ब्राह्मण वोटरों को खुश करने के लिए राजनीतिक पार्टियों में होड़ चल रही है। इन दिनों ब्राह्मण शिरोमणि कहे जाने वाले परशुराम की मूर्ति लगवाने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के बीच होड़ लगी है। पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पार्टी के तीन महत्वपूर्ण ब्राह्मण नेताओं अभिषेक मिश्रा, मनोज कुमार पांडेय और माताप्रसाद पांडेय से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद अभिषेक मिश्रा ने घोषणा की कि पार्टी की ओर से लखनऊ में 108 फुट ऊंची भगवान परशुराम की प्रतिमा लगवाई जाएगी। इस घोषणा के कुछ घंटे बाद ही उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने प्रेस कान्फ्रेंस कर के घोषणा की कि अगर बसपा-2022 में सत्ता में आती है तो परशुराम की 108 फुट से भी ऊंची मूर्ति लगवाएगी। इसके अलावा पार्कों एवं अस्पतालों के नाम भी परशुराम के नाम से किए जाएंगे।
बसपा नेता मायावती की इस घोषणा के बाद समाजवादी पार्टी के नेता भड़क उठे। पूर्व कैबिनेट मंत्री अभिषेक मिश्रा ने तो यहां तक कह दिया कि मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। तब उन्हें परशुरामजी की मूर्ति लगवाने की याद क्यों नहीं आई? सपा सरकार ने परशुराम जयंती पर छुट्टी की घोषणा की थी, जिसे बाद की सरकार ने रद्द कर दिया। समाजवादी पार्टी के एक अन्य नेता पवन पांडेय ने कहा कि तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार का नारा देने वाली बसपा की नेता मायावती को आज ब्राह्मणों की याद आ रही है और ब्राह्मणों के सम्मान की बात कर रही हैं। लेकिन अब परशुरामजी के वंशजों ने मन बना लिया है कि वे कृष्ण के वंशजों के साथ ही रहेंगे।
दूसरी ओर कांग्रेस आरोप लगा रही है कि कांग्रेस के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जतिन प्रसाद ने उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण चेतना संवाद की घोषणा की है। जतिन प्रसाद की इस घोषणा के बाद ही सपा और बसपा को ब्राह्मणों की चिंता सताने लगी है। जतिन प्रसाद का कहना है कि पिछले कुछ समय से ब्राह्मणों पर उत्तर प्रदेश में लगातार अत्याचार हातो रहा है और इन दोनों पार्टियों के नेता चुप बैठे रहे। उनका कहना है कि मूर्ति लगवाने की अपेक्षा जरूरत इस बात की है कि ब्राह्मणों को न्याय दिलाया जाए। इस समय की बीजेपी की सरकार में उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों पर खूब अत्याचार हुआ है। ऐसे में ब्राह्मण समाज का एक होना जरूरी है। कांग्रेस के नेता जतिन प्रसाद ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख कर परशुराम जयंती पर रद्द की गई छुट्टी को फिर से बहाल करने की मांग की है। कांग्रेस के ब्राह्मण नेताओं जतिन प्रसाद सहित पूर्व सांसद राजेश मिश्रा लगातार ब्राह्मणों पर हो रहे अत्याचार का मुद्दा उठा कर पीड़ित ब्राह्मणों से मुलाकात कर रहे हैं। इसी तरह लखनऊ से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके आचार्य प्रमोद कृष्णम् तथा उत्तर प्रदेश कांग्रेस के मीडिया पेनलिस्ट अंशु अवस्थी भी ब्राह्मणों के मुद्दे को जोर-शोर से उछालते हुए समाज में घूम-घूम कर सभी से मिल रहे हैं। उत्तर प्रदेश की तीनों मुख्य विपक्षी पार्टियां सपा, बसपा और कांग्रेस में एकाएक ब्राह्मणों के प्रति प्रेम पैदा होने की वजह आगामी 2022 में होने वाला विधानसभा का चुनाव है। उत्तर पदेश में जनसंख्या के हिसाब से करीब 12 प्रतिशत ब्राह्मण हैं। कुछ विधानसभा सीटों पर तो 20 प्रतिशत से अधिक ब्राह्मण वोट हैं। ब्राह्मण मतदाताओं का झुकाव जिस पाटी्र की ओर हो जाए, वह पार्टी मजबूत स्थिति में आ सकती है। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों ने बीजेपी को जमकर मतदान किया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी ब्राह्मणों ने भाजपा को ही वोट दिया था। चुनाव के बाद हुए नए सर्वे में कहा गया था कि 80 प्रतिशत से अधिक ब्राह्मण मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया था। जबकि उत्तर प्रदेश के राजीतिक गलियारों में चर्चा है कि इस समय ब्राह्मणों को राजनीतिक रूप से हासिए पर धकेल दिया गया है। 2017 के विधानसभा के चुनाव में भाजपा का साथ देने के बाद उत्तर प्रदेश के 56 सदस्यों के मंत्रिमंडल में 9 ब्राह्मणोें को मंत्री बनाया गया है। लेकिन 9 में से मात्र दो लोगों दिनेश शर्मा और श्रीकांत शर्मा को छोड़ कर किसी को कोई महत्वपूर्ण मंत्री नहीं बनाया गया है। जबकि क्षत्रियों को 8 मंत्री पद लिए गए है। लेकिन उन्हें महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो दिया गया है।
सपा, बसपा तो इस तरह की घोषणाएं कर के उत्तर प्रदेश की राजनीति की आग में घी डाल ही रही थीं, उसी दौरान दिल्ली से आम आदमी पार्टी के राज्यसभा के सांसद संजय सिंह ने एक प्रेस कान्फ्रेंस कर के उस आग को और दहका दिया। वह इन पार्टियों से भी चार हाथ आगे निकल गए। उनका कहना था कि उत्तर प्रदेश में ठाकुरों को छोड़ कर बाकी की सभी जातियोें के साथ अत्याचार हो रहा है। इससे भी आगे बढ़ कर उन्होंने हर जाति के प्रमुख नेता का नाम ले कर यह भी कहा कि ये नेता अपनी-अपनी जाति वालों के लिए क्या कर रहे हैं।
कुछ दिनों पहले गैंगस्टर विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ तो विपक्षी पार्टियों ने खूब शोर मचाया कि ब्राह्मणों पर अन्याय हो रहा है। विकास दुबे के साथ-साथ राकेश दुबे का भी एनकाउंटर किया गया था। तब अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष राजेन्द्रनाथ त्रिपाठी ने आरोप लगाया था कि उत्तर प्रदेश में दो सालों में 5सौ से भी अधिक ब्राह्मणों की हत्या हुई है। उनका आरोप था कि उत्तर प्रदेश की मौजूदा भाजपा सरकार ब्राह्मण विरोधी है। ब्राह्मणों पर लगातार अत्याचार हो रहा है और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुपचाप तमाशा देख रहे हैं। 2007 में जब मायावती की सरकार बनी थी, तब बसपा ने ब्राह्मण, दलित, मुस्लिम समीकरण आजमाया था और सफलता पाई थी। अब समाजवादी पार्टी यादव, कुर्मी, मुस्लिम, ब्राह्मण समीकरण पर आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही है। दूसरी ओर कांग्रेस ब्राह्मण, दलित, मुस्लिम और ओबीसी समीकरएा पर अपना पक्ष मजबूत करने की कोशिश में लगी है।
जबकि राजनीतिक जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश का ब्राह्मण मतदाता भाजपा के साथ 2014 से मजबूती के साथ खड़ा है। पिछले 25 सालों से उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण मजबूत राजनीतिक पार्टी की शरण की खोज में भटक रहे थे। आखिर 2014 में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। अब जब अयोध्या में भाजपा द्वारा राममंदिर का शिलान्यास करके मंदिर बनाने की शुरुआत हो गई है तो ब्राह्मणों का कोई पार्टी अपनी ओर कैसे कर सकती है।
-वीरेन्द्र बहादुर सिंह