करीब छह महीने से कोविड-19 से हर इंसान जूझ रहा है। शुरुआती दौर में डर और दहशत का माहौल था लेकिन लोग ज्यादा संक्रमित नहीं थे। दवाई ना होने की वजह से मृत्युदर बढ़ते जा रही थी फलस्वरूप लाकडाउन किया गया और बॉर्डर सीमाएं सील कर दी गई। कुछ कफ्र्य जैसा माहौल हो गया था मगर फिर भी हालत में कोई सुधार नहीं आया सो लड़ाई बदस्तूर जारी है अभी तक। इस महामारी से लड़ने में सिर्फ आमजन ही नहीं बल्कि साइलेंट रुप से एक योद्धा वर्ग भी काम कर रहा हैं और उनका जिक्र भी जरूरी हो जाता है क्योंकि युद्ध लड़ते लड़ते बहुत से योद्धा शहीद भी हो गए हैं। जी सही समझा, मैं डॉक्टरों की ही बात कर रही हूं। करीब 18 राज्यों में 200 के करीब डॉक्टरों की मौत हो चुकी है। अब तक मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार तमिलनाडु में 43, महाराष्ट्र में 23, गुजरात में 23, बिहार में 19, पश्चिम बंगाल में 16, कर्नाटक में 15, दिल्ली में 12 और उत्तर प्रदेश में 11 डॉक्टरों की मौतें हो चुकी है।
एक डॉक्टर जिसे भगवान का दूसरा रूप माना जाता है। इस महामारी में ये डाक्टर्स अपनी जान जोखिम में डाल कर लोगों के जीवन की रक्षा कर रहे हैं और इसी बचाव कार्य में लगे रहने के कारण वो अपने घर परिवार और बच्चों से दूर रह रहे हैं। घर के अंदर उनको एंट्री नहीं मिलती, घर के बाहर कुछ मीटर की दूरी पर वह अपने परिवार, बच्चों और घर के अन्य सदस्यों को दूर से निहार कर संतोष कर लेते हैं। यह बहुत दुखदाई स्थिति है जहां व्यक्ति घर परिवार के साथ समय बिताता है, साथ रहता है वहां इस तरह की दूरी तकलीफदेह होती है। जो डॉक्टर इलाज करते हुए संक्रमित हो गए हैं, मेडिकल एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सभी डॉक्टर के लिए स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराने की मांग की है। कोरोना जंग लड़ रहे योद्धाओं के लिए यह जरूरी भी है कि उन्हें और उनके परिवार को स्वास्थ्य सुविधा मिले।
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि डॉक्टरों के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा कार्य में उनका साथ उनके सहयोगी भी देते हैं। नर्स जिनका स्वास्थ्य सेवा में बड़ा योगदान रहता है, ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन ऑफ इंडिया के आंकड़ों के तहत महाराष्ट्र, गुजरात और पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक स्टाफ नर्स कोरोना से संक्रमित हैं और कोविड से सबसे ज्यादा नर्सों की मौत भी इन्हीं राज्यों में हुई है। यह दुखद है कि तमिलनाडु सरकार ज्यादा मौतों पर भरोसा नहीं कर रही है और अपने यहां हुई 43 मौतों को स्वीकार नहीं कर रही है और इनके प्रमाण मांग रही है। आई एम ए जूनियर विंग के चेयरमैन डा. अब्दुल हसन ने बताया कि शुरू में सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन नहीं हुई और पीपीई किट की क्वालिटी भी खराब थी, साथ ही बुखार और गैर बुखार वाले मरीजों को अलग-अलग रखने में भी कोताही बरती गई जिसका खामियाजा डॉक्टरों को भुगतना पड़ा। डॉक्टर और उनके परिजनों को बीमार होने के बाद भी अस्पताल में बेड और उचित स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पा रही है। इस बात को लेकर उनमें असंतोष व्याप्त है और अब डॉक्टर्स ‘मृत्यु की वजह के’ प्रमाण पत्र इकट्ठे कर सरकार को सौंपने की तैयारी कर रहे हैं।इससे अलग एक पहलू और भी है कि कुछ डॉक्टर आपदा में अवसर तलाश लेते हैं। मनमानी फीस, हॉस्पिटल का मनमाना बिल जो इस आपदा में आम आदमी वहन नहीं कर सकता वह भी तब जब आमदनी के स्रोत बंद हो गए हों और गरीब वर्ग तो असुविधा और लाचारी में ही मर जाता है। डॉक्टरों ने यहां भी बस नहीं करी वो जांच के लिए आए हुए मरीज को कोरोना पॉजिटिव बताकर अस्पताल में भर्ती करके उनके शरीर से अंगों को गायब कर दिया गया है। ये भ्रष्टाचार और अमानवीयता डाक्टरों के ऊपर लगा एक धब्बा है और उनकी छवि पर प्रश्न चिन्ह है। इस तरह की घटनाओं से जो डाक्टर्स इस महामारी से जूझ रहे हैं और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रहे हैं उन्हें इसका श्रेय नहीं मिल पा रहा है।