कोरोना के बारे में लिखना छोड़ दिया, क्यों छोड़ा मार्च, अप्रैल और मई की भयानक तस्वीरें एक गरीब, मजदूर और किसान परिवार के लिए सचमुच बहुत डरावना था।
मीडिया वाले भी दिनभर भ्रामक खबर चलाकर जान सांसत में डाल दिया, सच में हालात बेहद गंभीर हो गया।
कलम को बन्द करके जेब में रख लिया कोरोना के विश्लेषात्मक करके क्या फायदा जब सरकार ने करोड़ों लोगों सड़क पर मरने के लिये छोड़ दिया।
एक विशेष लेख लिखा, एक समाचार पत्र के एडिटर बोले ऐसी लेख का कंटेंट नहीं चलता है, आप साहित्यकार हो आपके लिये प्राकृतिक इंतजार कर रही है।
बात यही पर ही खत्म हो गई, सरकार ने आपको पहले ही आत्मनिर्भर बनने का बेहतरीन तरीका बता दिया जिससे आप भी सुरक्षित और सरकार भी चैन से सो रही हैं।
कुछ लोगो ने बताया कि लोन के लिये कंपनी वाले रोज फोन पर धमकी दे रहे हैं।
फिलहाल टैक्स को समय से भरते रहो
जीएसटी लिये छोटे व्यापरियों की हालत बहुत बुरा हो गया है।
महंगी कारो में सब्जी बेची जा रही है, कोरोना के नाम पर प्राइवेट हॉस्पिटल में महंगी लिस्ट बनाकर लूटा जा रहा है।
ऐसा लगता जैसे जिंदगी ठहर सी गई हो।
आम लोगों का जीना दुश्वार हो गया है, उत्तर प्रदेश सरकार के 2 कैबिनेट मंत्रियों की अब तक कोरोना से जान चली गई है, कानपुर की कमल रानी वरुण और भारत के जाने- माने क्रिकेटर चेतन चौहान जिनका बहुत बड़ा नाम महान हस्ती में शामिल था। उनको कौन नहीं जनता सुनील गवास्कर के साथ खेलते हुए देश ने देखा होगा।
कल बहुत दुख हुआ जब समाजवादी पार्टी के नेता सुनील सिंह साजन उनके साथ ही अस्पताल में 2 दिन भर्ती थे, सुनील साजन ने विधान परिषद में बताया कि कैसे डॉक्टरों की टीम ने बेहूदा हरकत करके चेतन जी का अपमान किया,
पहले तो चिकित्सा टीम ने पहचानने से इंकार कर दिया मगर बताने पर उनका नाम लेकर बिना किसी सम्मान के बुलाया।
जब एक पूर्व क्रिकेटर और कैबिनेट मंत्री का यह हश्र हो सकता है तो फिर एक आम जनता का क्या हश्र होगा।
फिलहाल अच्छा हुआ क्रिकेटर से राजनेता बने चेतन चौहान सभ्य और मृदुल स्वभाव के थे, उनका कई इंटरव्यू देखकर ऐसा लगता कि वह सादगी की मूर्ति थे। ऐसे महान शख्स के साथ अगर ऐसा दुर्भाग्य हुआ है तो शायद उनका मृत्यु कोरोना से नहीं बल्कि सिस्टम के गंदगी से हुआ है। अगर उनके स्थान पर कोई अंगूठा छाप मंत्री होता तो शायद डॉक्टरों पर गलियों की बौछार होता, देश में बहुत ही शोर होता
मन बहुत दुखी चिंतित है, कोरोना पर गंभीर विषय में लिखने का दिल नहीं था, मगर चेतन चौहान जी का दुर्दशा सुनकर रह नहीं गया।