Saturday, November 30, 2024
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साइबर क्राइमः अपराधी मस्त पुलिस पस्त

अभी जल्दी ही एक समाचार आया था कि टिकटॉक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब का उपयोग करने वाले कुल 23,50,00,000 लोगों का डाटा लीक हो गया है। इन लोगों की तमाम निजी जानकारियां चोरी हो गई हैं? इनके नाम, इनके एकाउंट में दिया यूजर नाम, इनकी प्रोफाइल फोटो, इनके एकाउंट की जानकारी, उम्र और पता तथा ये दिन में कहां-कहां जाते हैं और वहां कितनी देर तक रुकते हैं, ये सारी जानकारियां किसी अन्य के पास पहुंच गई हैं।
इतना जानने के आपके मन में यह बात जरूर आई होगी कि भले ये डाटा चोरी हो गया है, इससे हमारे ऊपर क्या फर्क्र पड़ने वाला है। भाइयों यह हम लोगों का भ्रम है। जबकि इन्हीं जानकारियों के आधार पर जिन लोगों को हम ं में रुचि होगी, वे हम पूरे दिन कहां-कहां जाते हैं और क्या-क्या करते रहते हैं, यह यब जाान लेेंगे तो क्या हमारे लिए खतरा नहीं है? हमारे सभी फालोअर्स का नाम जान लेंगे तो क्या हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा? हम कौन-कौन सी पोस्ट लाइक करते हैं, शेयर करते हैं और उसमें हम क्या हिस्सेदारी करते हैं, ये जानकारियां किसी अंजान आदमी की जानकारी में आ जाएं तो क्या खतरा नहीं है? ये सारी जानकारियां हाथ में आने के बाद कोई भी आदमी हमारे बारे में बहुत कुछ जान सकता है। बाद में डिजिटल प्लेटफार्म पर हम हैं, यह दिखावा कर सकता है। हम कह रहे हैं, यह स्थापित कर के हमारे किसी भी फालोवर से कुछ भी कह सकता है। हमें इसका पता भी नहीं चल सकेगा। सही बात तो यह है कि हमारी कोई भी निली जानकारी कोई तीसरा आदमी जान ले, यह हमारे लिए खतरनाक तो है ही। इंस्टाग्राम, यूट्यूब और टिकटॉक का डाटा चोरी कर के किसी ने डार्कवेब कहे जाने वाले अंधेरे खांचे में डाल दिया है। वहां से कोई भी आदमी ये जानकारियां चुरा सकता है।
इसका एक छोटा सा उदाहरण देता हूं। एक दिन फेसबुक पर किसी ने मैंसेंजर की स्क्रीनशॉट के साथ पोस्ट डाली थी कि उनके दोस्त के नाम पर कोई उनसे पैसे मांग रहा है। आईडी उनके दोस्त की ही थी। पता चला कि वह फर्जी आईडी थी, जो हैक कर ली गई थी। यही नहीं मैसेंजर पर भी लोग महिलाओं को अश्लील मैसेज भेज कर परेशान तो करते ही हैं, फोटो के साथ छेड़छाड़ करके ब्लैकमेल भी करते हैं। इसके अलावा आर्थिक ठगी के मामले तो लगभग रोज ही अखबारों में आते रहते हैं। इस तरह के ये अपराध डाटा चोरी कर के ही हो रहे हैं। यही सब सायबर अपराध है। अब इस तरह कोई हमारा डाटा चोरी कर के कुछ गलत काम करता है तो हम अपनी शिकायत ले कर पुलिस के पास जाएंगे और उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा कर उसे पकड़ा देंगे। यही विचार लगभग सभी के मन में आता है। यह स्वाभाविक भी है। देश के किसी भी नागरिक के साथ अगर इंटरनेट द्वारा किसी भी तरह की ठगी होती है या कुछ और गड़बड़ होती है तो उसे पुलिस की सायबर क्राइम विभाग में तुरंत शिकायत करनी चाहिए।
जबकि हकीकत यह है कि पुलिस की सायबर क्राइम विभाग के पास काम का इतना बोझ है कि हमारे शिकायत करने के बाद कब हमारे केस की जांच शुरू होगी कहा, नहीं जा सकता। जांच पूरी होगी भी या नहीं, यह भी नहीं कहा जा सकता। अदालत में चार्जशीट दाखिल होगी या नहीं, यह भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता।सामान्य अपराध जो आंखों के सामने होता है, उसे ही रोकना या नियंत्रण करना जब पुलिस के लिए मुश्किल है, सिमें अपराधी आखों के सामने होता है। सालों के अनुभव के बाद भी अपराधियों को पकड़ लेना जब किसी मदारी के खल जैसा है, तो इंटरनेट द्वारा होने वाला अपराध तो किसी अदृश्य राक्षस जैसा है। इसमें तो अपराधी को खोजना और मुश्किल है। इसमें तो लोगों को केस दर्ज कराने के लिए तैयार करना ही मुश्किल है और इन दोनों मोर्चों पर अगर जीत हासिल हो जाती है तो उसके बाद इस केस की जांच करना इन दोनों कामों से भी मुश्किल है। इसलिए पांच सालों में सायबर क्राइम की जांच पेंडिंग होने की वजह से सायबर अपराध के मामले चार गुना बढ़ गए हैं।
एक ओर जहां पुलिस में सायबर क्राइम के दर्ज होने वाले अपराधों की संख्या सालोंसाल बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी ओर उसकी अपेक्षा पुलिस जांच की गति काफी धीमी है। पुरानी दर्ज शिकायतों में से आधी की भी जांच पूरी कर के चार्जशीट दाखिल नहीं हो पाती कि उससे भी अधिक नए मामले दर्ज हो जाते हैं। परिणामस्वरूप हर साल पिछले साल के पेंडिंग मामले नए साल में जुड़ते जाते हैं।
चिंता की बात तो यह है कि हल करने वाले मामलों की संख्या साल दर साल कम होती जर रही है। क्योंकि सायबर टेक्नोलॉजी के बारे में पुलिस के जवान तब तक सीखते हैं। तब तक नई टेक्नोलॉजी बाजार में आ जाती है और अपराधी उसे सीख चुके होते हैं। जैसे कि 2015 में सायबर क्राइम सेल द्वारा 7,624 केस हल किए गए थे। उसके बाद 2016 में 3,009 केस ही हल हो पाए। उसके बाद 2017 में 13, 996 केस और 2018 में 17,378 केस हल किए गए। वैसे इन दो सालों में नए मामले भी बड़ी संख्या में हल हुए हैं। लेकिन इन दो सालों यानी 2017 में 21,796 और 2018 में 27,248 नए केस दर्ज हुए हैं।
जांच पूरी न होने की वजह से पेंडिंग रह गए मामले 2014 में 8,049 थे, तो 2018 में बढ़ कर 32,482 हो गए थे।
इन आंकड़ों से यही लगता है कि अपने देश में सायबर क्र्राइम को रोकने में पुलिस पिछड़ती जा रही है और अपराधी तेजी से आगे बढ़ते जा रहे हैं। रोज-रोज नई शोध होने की वजह से इस क्षेत्र में अपराधियों के साथ ताल मिलाना पुलिस के लिए आसान नहीं है। इसलिए इस दिशा में खास चिंता करने की जरूरत है। क्योंकि अगर यही हाल रहा तो एक दिन ऐसा आएगा कि पेंडिंग केस इतने हो जाएंगे कि उन्हें हल करना पुलिस के मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा।
जिस मामले की जांच में पुलिस पहुंच नहीं पाती, उन मामलों को हल करना किस स्थिति होगा, यह दीए जैसा स्पष्ट है। 2018 का ही उदाहरण लें तो इस साल 17,378 मामले दर्ज हुए थे, जिसमें से पुलिस ने 7,234 मामलों की जांच पूरी कर के चार्जशीट दाखिल की। उस साल पुलिस ने 10,092 केस पेंडिंग में डाल दिए गए। जिनमें कारण लिखा गया कि मामले तो सच्चे हैं, पर सबूत न मिलने की वजह से अपराधी को ट्रेस नहीं किया जा सका अथवा कोई समाचार नहीं मिल सका। इसलिए 2017 में 7,333 और 2016 में 1,749 मामलों की जांच नहीं हो सकी यानी इतने मामले पेंडिंग रह गए थे।
पुलिस ने जांच पूरी कर के चार्जशीट दाखिल की हो, इस ताह के मामलों की संख्या 2018 में खासी बड़ी थी। 2017 में चार्जशीट दाखिल किए जाने वालों सायबर अपराधों की संख्या 37 प्रतिशत थी, जबकि उसकी अपेक्षा 2018 में 41 प्रतिशत मामलों की जांच पूरी कर के चार्जशीट दाखिल की गई थी।
दूसरा एक तथ्य यह भी नजर आया है कि सायबर क्राइम के जो अपराध आईपीसी (इंडियन पीनल कोड) और एसएलएल (स्पेशल एंड लोकल लॉ) के अंतर्गत दर्ज हुए थे, ऐसे मामलों में काफी अधिक चार्जशीट दाखिल की गई हैं। उसकी अपेक्षा आईटी ऐक्ट के अंतर्गत रजिस्टर्ड हुए अपराधों में बीहुत कम चार्जशीट दाखिल हो पाई है। आईटी ऐक्ट के अंतर्गत 39-4 प्रतिशत मामलों की चार्जशीट दाखिल की गई है, जबकि उसकी सामने आईपीसी के तहत दर्ज मामलों में 45-3 प्रतिशत और एसएलएल के अंतर्गत 70-1 प्रतिशत मामलो की चार्जशीट दाखिल की गई है।
ऐसे में अगर आपके साथ कोई सायबर अपराध हो जाता है तो अपराधी को पकड़ने और उसे अदालत में हाजिर करने की संभावना कितनी है, आप खुद ही सोच सकते हैं।
-वीरेन्द्र बहादुर सिंह