Monday, November 18, 2024
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अंधेर नगरी चौपट राजा, जीडीपी ने -23.90 % गोता खाया

बढती मंहगाई, गरीबी, बेरोजगारी और महामारी के बीच अर्थव्यवस्था की बदहाली के चलते कराह रहा देश
पंकज कुमार सिंह/सत्येन्द्र मुरली
नई दिल्ली/कानपुर। भारतीय इतिहास की सबसे तेजी से आई आर्थिक बदहाली से देश जूझ रहा है। भारत की ग्राॅस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानि जीडीपी माईनस 23.90 प्रतिशत पर आ गई है। ऐसे में देश में गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी चरम पर है। वहीं देश के पूंजीपतियों की आमदनी में इजाफा हुआ है। मसलन गरीब और गरीब हुआ और अमीर और अमीर हुआ है। अमीरी गरीबी के बीच मध्यम वर्ग खूब पिस रहा है। प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के नेत्रत्व वाली केन्द्र की भाजपा सरकार ने कोरोना महामारी के बीच आपदा को अवसर बताकर लगातार सरकारी संस्थाओं का निजीकरण कर रही है। राष्ट्रीयकरण के वजाय सरकारी मशीनरी के निजीकरण को बढावा देना देश की बदहाली के साथ लोकतंत्र के विरुद्ध भी देखा जा रहा है। जीडीपी की एतिहासिक गिरावट के लिए नोटबंदी, जीएसटी कर प्रणाली जैसी खामियों भरी नीति देश पर भारी पङी है। विशेषज्ञों की मानें तो पूंजीपतियों के हित में सरकार के फैंसले और आम जनता और किसानों को नजरअंदाज करना देश की आर्थिक व्यवस्था पर चोट पहुंचाने का कारक बने हैं। आम जनता की क्रय क्षमता पर चोट जमीनी स्तर पर अर्थव्यवस्था के लिए घातक हुआ है। देश की सरकारी स्वमित्व की अच्छे प्रोफिट कमाने वाली कंपनियों को निजीकरण की ओर धकेलने से व्यवस्था और चरमराई है। बीपीसीएल का निजीकरण,बीएसएनएल की बदहाली और एलआईसी, एयर इंडिया, रेलवे जैसी कंपनियों पर सरकार ने निजीकरण की बाजी लगाना देशहित के खिलाफ आंका जा रहा है।
बेरोजगारी का आलम यह है कि देश में रिकॉर्ड बनाया है। अब तक सरकार नौकरियां तो दे नहीं पाई। वहीँ एक अनुमान के मुताबिक देश में ‘पिछले 4 महीनों में क़रीब 2 करोड़ लोगों ने नौकरियां गंवाईं है। सरकार की नीतियों का खोट ही है कि आरबीआई ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा कि भारत को सतत वृद्धि की राह पर लौटने के लिए तेजी से और व्यापक सुधारों की जरूरत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीबों पर सबसे बङी मार पड़ी है। गरीब तबका और गरीब हो सकता है। मजदूर- किसान रोटी तक को मोहताज़ है।
युवाओ ने ताली, थाली बजाकर मागा रोजगार
एक तरफ़ रोजगार के नये अवसर पैदा नहीं हो रहे दूसरी तरफ देश में रेलवे, एसएससी , पुलिस शिक्षक जैसी भर्ती भी अटकी हुई है। वर्तमान में देश के कई विभागों में बङी संख्या में सरकारी पद खाली हैं।लेकिन परीक्षायें और नियुक्ति लटकी हुई है। जिसे लेकर युवाओं ने ताली- थाली, शंख बजाकर प्रतीकात्मक रूप से सरकार से विरोध दर्जकर जल्द से जल्द इन्हें भरने की माँग की। शैलेन्द्र, अमित, राजेश और धर्मेन्द्र कहते हैं कि छात्रों-युवाओं की आवाज़ सुनने के बजाय गूंगी-बहरी बनकर बैठी है। हम सब ताली- थाली, शंख बजाकर इस सोती हुई सरकार को जगाने का प्रयास कर रहे हैं। निजीकरण के वजाय राष्ट्रीयकरण किया जाय और देश के हर युवा को रोज़गार दिया जाय।
“इंडस्ट्रियल सेक्टर पर सरकार का फोकस रहा है जबकि कृषि, सर्विस व गवर्नमेंट इनीसिएटिव के प्रति सरकार उदासीन रही है। इन सबसे इकाॅनामी तैयार होती है। आम आदमी की फिक्र सरकार की नीति में दिखती ही नहीं है। आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए गवर्नमेंट इनीसिएटिव ले और सरकारी प्रोफिटेबल संस्थानों का निजीकरण बन्द करे वरना स्थिति देश की अर्थव्यवस्था व देशवासियों के हित में गंभीर होगी। सरकार मनमानी न करे और आर्थिक विशेषज्ञों की राय से फैसले ले। ” – डाॅ.वंदना अहिरवार, इकाॅनाॅमिक एनालिस्ट
“व्यापार पूरी तरह बरबाद हो गया है। कर्ज की नौबत आ गई है। लोगों पर पैसा है नहीं ऐसे में जाहिर है विक्री पर सीधा असर पङेगा। अस्सी फीसदी से ज्यादा व्यवसाय में गिरावट है। कोरोना काल में तो 100 प्रतिशत मंदी रही है। सरकार जिन नीतियों और दावों से सत्ता में आई उसके सब विपरीत ही सरकार के कदम रहे हैं। प्रोट्रोल-डीजल के दाम में उछाल आप देख सकते ही जिसपर सत्ता से पहले भाजपा हो-हल्ला करती थी। सरकार की नीति ठीक नहीं है। ” – अंकित गुप्ता, ई- रिक्शा मैनुफेक्चरर व मार्केटर अलीगढ
“मीडिया स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पा रही है। इसी लिए जनता के मुद्दे मीडिया में दिखते ही नहीं है। टीआरपी की होङ में जनता को बांधे रखने वाले मुद्दे चलाए जाते हैं। देश के आर्थिक हालात तो चिंताजनक हैं ही। सरकार अपने ढंग से सब मैनेज कर रही है इससे स्थिति सबके सामने है। रोजगार की दिशा में सरकार के कदम नाकाफी रहे हैं। निजीकरण को बढावा भी ठीक नहीं है। “
– आचार्य श्रीकांत तिवारी स्वतंत्र पत्रकार इलाहाबाद।
-“रोजगार के अवसर भाजपा शासित केन्द्र व राज्य सरकारें खूब दे रहीं हैं। कोरोना जैसी महामारी में भी सरकार ने स्वरोजगार के अवसर लाकर देशवासियों और युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने लिए प्रेरित कर रही है। जो युवा ताली-थाली बजाकर रोजगार की मांग कर रहे है वह असल में विपक्षी जनैतिक दलों के हैं। जिनका राजनैतिक एजेण्डा है देश की आजादी के बाद यह पहली सरकार है जो सबका साथ व सबका विकास की नीति पर आई है।” -प्रबोध मिश्रा, जिलामहामंत्री भाजपा ,कानपुर दक्षिण।
“हजारों भर्तियां लटकी हुई हैं। भाजपा सरकार युवाओं को न पढने देना चाहती है और न ही पढे लिखों को रोजगार की व्यवस्था कर रही है। युवा आत्महत्याएं करने को विवश हो रहे हैं। सरकार सिर्फ पूंजीपतियों की जेबें भरने में लगी हुई है। रोटी रोजगार से दूर युवा कैसे जिए? आज के हालातों से देश का भविष्य गर्त में नजर आ रहा है। सरकार ने उम्मीदों पानी फेरा है। वैकेंसी निकलने का लालच देकर सरकार अपनी सत्ता की लालसा पूरी करती है। ” -अजीत यादव , छात्र व रोजगार प्रयासरत कानपुर