देश के सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली व उसके आस-पास के इलाकों में रेल लाइनों के किनारे बस चुकीं झुग्गी बस्तियों को हटाने का आदेश बिगत दिनों दिया है। ऐसा ही आदेश पूरे देश के लिये लागू किया जाये तो अच्छा रहेगा। यह सिर्फ दिल्ली का ही मामला नहीं है ऐसे नजारे कई राज्यों में देखने को मिल रहे हैं और खास बात यह है कि ऐसी बस्तियों में गंदगी का बोलबाला तो रहता ही है साथ ही तमाम शातिर अपराधियों की शरणस्थली भी साबित हो रहीं हैं ऐसी ही बस्तियां। इन बस्तियों के बसने के समय से लेकर ही क्षेत्रीय नेताओं के स्वार्थ के लिये नौकरशाही भी अनेदेखी करने में अपनी भलाई समझती है। नतीजा यह होता है कि धीरे धीरे ये बस्तियां बड़ा रूप ले लेती हैं और सभ्रान्त बस्तियों के लिये कष्टकारक साबित होने लगतीं हैं, उनकी परेशानी बढ़ा देतीं हैं।
हालांकि दिल्ली-एनसीआर में रेलवे का यह मामला माननीय सर्वोच्च न्यायालय इस लिये पहुंचाया गया क्योंकि रेल पटरियों के दोनों ओर काफी संख्या में झुग्गी बस्तियां बस गई हैं और ये बस्तियां गंदगी का गढ़ बनकर प्रदूषण फैलाने का कारण बन गईं हैं।
बताते चलें कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने वर्ष 2018 में ही ऐसी झुग्गी बस्तियों को हटाने का आदेश दिया था, लेकिन उस पर अमल नहीं हो सका कारण कुछ भी रहा।
हालांकि किस कारणों से राष्ट्रीय हरित प्राधिकरणा आदेश के बाद भी ये झुग्गी बस्तियां नहीं हटायीं गई थीं शायद उसका संकेत माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में छुपा है। क्योंकि अपने फैसले के क्रियान्वयन में स्पष्ट कर दिया है कि इस मामले को किसी भी न्यायालय में नहीं सुना जाना चाहिए। इतना ही नहीं यह टिप्पणी भी विचारणीय है कि इस आदेश में किसी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। यह एक तथ्य है कि दिल्ली ही नहीं देश के कई राज्यों में लागू हो रही है और रेल पटरियों के किनारे सैकड़ों बस्तियां बस चुकीं हैं और इन बस्तियों को क्षेत्रीय नेताओं का संरक्षण मिलता है। लेकिन ऐसी बस्तियों को रोकना आवश्यक है। कुछ भी हो रेल लाइनों के किनारे बसी झुग्गी बस्तियों को हटना ही चाहिये।ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि भारत एक गरीब देश है और यहां करोड़ों लोग झुग्गी बस्तियों में रहने को विवश हैं, उनका क्या होगा? ऐसे में इस ओर भी ठोस कदम सरकार को उठाना चाहिये। लेकिन इसका यह मतलब कदापि नहीं कि रेल पटरियों के किनारे अतिक्रमण करने की छूट पूरी तरह से दे दी जाए। लेकिन दुर्भाग्य ही कह सकते हैं कि कई बस्तियों को हटाने के बजाय उनका नियमितीकरण करने पर विचार होने लगता है, क्योंकि वहां रहने वाले राजनीतिक दलों के लिए ये बस्तियां वोट बैंक का अच्छा खासा माध्यम बन जाते हैं। इसी लिये ऐसी अवैध बस्तियों को राजनैतिक संरक्षण मिलता रहता है और सरकारी मशीनरी सबकुछ देखते हुए अनदेखा करती रहती है। वहीं बिगत कई वर्षों पर प्रकाश डालें तो रेल लाइनों के किनारे कई ऐसी दुर्घटनायें घट चुकी हैं जिनमें जानमाल का भारी नुकसान हो चुका है। ऐसे में उचित यही होगा कि रेलवे लाइनों के किनारे से झुग्गी बस्तियों को हटाने का जो आदेश माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है उसका पूरी निष्ठा के साथ पालन किया जाये।