कांग्रेस पार्टी पर सदैव ही आरोप लगता चला आ रहा है कि यह पार्टी सिर्फ एक परिवार की है! विरोधियों ने इसी का फायदा भी उठाया, हमेशा आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी पर तो सिर्फ गांधी परिवार का ठप्पा लगा है और इसका फायदा भी उठाया गया। विरोधी दल अपनी बात को जनता के मन में बिठाने में कामयाब भी रहे। अब तो हर गली-कूचे में लोग कहते मिल जाते हैं कि कांग्रेस यानि कि गांधी परिवार! वहीं पार्टी अध्यक्ष को लेकर चर्चा करें तो हर बार की तरह मान-मनौव्वल का दौर समाप्त होने के बाद जो परिणाम बिगत 3 दशकों में आता रहा है वही फिर से सामने आया। वह यह तय किया कि सोनिया गांधी को ही पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बने रहना चाहिए।
गौरतलब हो कि इस समिति ने एक साल पहले भी यही तय किया था। वही पुनः दिखाई दिया और चर्चाओं का दौर शुरू हुआ कि इसका यह मतलब रहेगा कि राहुल गांधी ही बिना कोई जिम्मेदारी संभाले पार्टी को पहले की तरह पिछले दरवाजे से संचालित करते रहेंगे। विरोधियों को मौका एकबार फिर से मिल गया। जबकि शायद सोनिया गांधी को यह चाहिये था कि वे अपना पद छोड़ने के फैसले पर अडिग रहतीं और पार्टी को कोई नया अध्यक्ष दिलाने में महती भूमिका अदा करतीं इससे कम से कम परिवारवाद का जो ठप्पा लगता है वह कुछ कमजोर दिखता लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि ‘क्या जरूरत थी पार्टी की बैठक बुलाने की?’आखिरकार वैसा ही हुआ जिसकी चर्चा लोग सोशल साइ्टस पर कर रहे थे! लोग पहले ही पार्टी की बैठक को नौटंकी या महज एक खानापूर्ति की बात कहकर तरह तरह की टिप्पणियां कर रहे थे और नतीजा भी सामने आया कि वही ‘ढाक के तीन पात’ वाली कहावत चरित्रार्थ हुई। इससे कांग्रेस की जगहंसाई ही हुई है, वहीं लेाग कहने लगे कि इससे हास्यास्पद और क्या हो सकता है कि पार्टी के नेतृत्व के मसले को हल करने के लिए बैठक बुलाई जाए और उसमें उसी नतीजे पर पहुंचा जाए जिस पर एक साल पहले पहुंचा गया था?
अब ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कांग्रेस पार्टी का गांधी परिवार के बिना गुजारा नहीं हो सकता? वहीं सोनिया और राहुल के समर्थक नेताओं के बीच अविश्वास की खाई गहरी नहीं हुई ?
ऐसे माहौल को देखकर यह कह सकते हैं जो सच भी दिख रहा है कि कांग्रेस पार्टी को रसातल की ओर ले जाने के लिये उसके फैसले ही काफी हैं और विरोधियों को कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी!साथ ही संदेश गया कि वास्तव में कांग्रेस की राजनीति सोनिया, राहुल और प्रियंका तक ही सीमित रह जाती है।