Monday, November 18, 2024
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महाराष्ट्र के दो पत्रकारों को कवरेज के दौरान गिरफ्तार करने की भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ ने की घोर निंदा

कौशाम्बी, जन सामना। भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ कंगना राणावत के समर्थन में व कवरेज कर रहे दो पत्रकारों को महाराष्ट्र सरकार द्वारा गिरफ्तार करने की घटना को लोकतंत्र की हत्या बताते हुए महाराष्ट्र सरकार की इस उत्पीड़नात्मक कार्यवाही की घोर निंदा की है। भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के प्रांतीय मुख्य महासचिव सच्चिदानन्द मिश्र ने कौशाम्बी के पत्रकारों से एक ऑनलाइन बैठक करते हुए महाराष्ट्र सरकार द्वारा सच्चाई उजागर करने वाले पत्रकारों को गिरफ्तार करने की घटना को हिटलरशाही करार देते हुए सरकार के इस गैरकानूनी कदम की घोर भर्त्सना की है। श्री मिश्र ने कहा है कि अगर पत्रकारों को शीघ्र रिहा नहीं किया गया तो पूरे उत्तर प्रदेश के पत्रकार महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ एक ज्ञापन भारत के राष्ट्रपति को देकर वहाँ राष्ट्रपति शासन की माँग करेगा। साथ ही महाराष्ट्र सरकार का पुतला भी प्रदेश के सभी जनपदों में फूंका जाएगा। अतिशीघ्र महाराष्ट्र सरकार का पुतला दहन कर विरोध दर्ज कराया जाएगा। संगठन के कौशाम्बी अध्यक्ष शमशाद अली के नेतृत्व में पत्रकारों ने बीएमसी मुम्बई द्वारा की गई कार्यवाही को अन्याय पूर्ण, पक्षपात पूर्ण व उद्धव सरकार की तानाशाही का प्रतीक बताया। अध्यक्ष ने कहा सुशांत आत्महत्या केस से ही महाराष्ट्र की पूरी सरकार जिस प्रकार से कार्यवाही कर रही है। वह स्वयं शक के दायरे में आ गई है।
महासंघ के प्रान्तीय मुख्य महासचिव सच्चिदानन्द मिश्र ने कहा कि शिव सेना के नेता संजय राउत ने अहंकार व घमंड की सारी हदें पार कर सत्ते के नशे में चूर होकर ड्रग्स माफिया को बचाने, पत्रकारों को जबरन जेल भेजवना व कंगना राणावत का मकान जबरन गिरवा कर लोकतंत्र की हत्या की है। भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ उत्तर प्रदेश उनकी इस तानाशाही के विरुद्ध महाराष्ट्र सरकार का पुतला फूंक कर अपनी आवाज को प्रशासन के माध्यम से राष्ट्रपति तक पहुंचाएगा। हम सब कंगना राणावत व गिरफ्तार पत्रकारों के साथ है, और महाराष्ट्र सरकार के कृत्य की निंदा करते है। पत्रकारों की गिरफ्तारी सीधे संविधान का अपमान है।
महासंघ ने कहा है कि पूरे देश का पत्रकार उन पत्रकारों के साथ है और जरूरत पड़ी तो पूरे देश में ऐसी हिटलरशाही सरकार के खिलाफ उग्र प्रदर्शन किए जाएंगे। पत्रकारों की आवाज दबाना सरकार की खुलेआम कमियों को प्रदर्शित करता है।