– जनता की लाचारी पर मुंह चिढ़ा राजनीति को संरक्षण देते अफसरों से लोकतंत्र हो रहा कमजोर
– उन्नाव काण्ड में आरोपित आईएएस, आईपीएस अफसर हों या डाॅ. कफील पर रासुका का मामला, राजनीति के फेरे में दिखी अफसरशाही
पंकज कुमार सिंह-
कानपुर। पिछले दिनों प्रकाश में आया कि सीबीआई ने बहुचर्चित उन्नाव रेप काण्ड में आईपीएस अफसर नेहा पाण्डे और पुष्पांजलि सहित आईएएस अदिती सिंह और आईपीएस अष्टभुजा सिंह को दोषी करार दिया है। तत्कालीन भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर के उन्नाव रेप केस मामले की जांच कर रही सीबीआई (CBI) ने तत्कालीन डीएम समेत तीन आईपीएस और को दोषी मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है। सीबीआई ने चारों अधिकारियों को मामले में लापरवाही बरतने का दोषी माना है। यहां यह बात विचारणीय और सवालिया है कि तीन महिला अफसरों ने पीड़ित महिला को न्याय दिलाने से ही किनारा किया। सीबीआई ने चारों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की है। इन जिम्मेदारों पर मामले को दबाने और दोषी विधायक के पक्ष में खड़े होने के आरोप हैं। बता दें 24 जनवरी से 26 अक्टूबर तक अदिति सिंह उन्नाव की डीएम रही थी। 2 फरवरी 2016 से 26 अक्टूबर 2017 तक नेहा पांडे एसपी रही। 27 अक्टूबर 2017 से 30 अप्रैल 2018 तक पुष्पांजलि एसपी रही। अदिति फिलहाल हापुड़ की डीएम हैं। पुष्पांजलि एसपी (रेलवे गोरखपुर) हैं। नेहा पांडे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर आईबी में हैं। अष्टभुजा सिंह पीएससी फतेहपुर में कमांडेंट हैं। पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को इस मामले में उम्रकैद की सज़ा सुनाई जा चुकी है। साथ ही पीड़िता के पिता की हत्या में दस साल की सज़ा कुलदीप को सुनाई गई है।
वहीं राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बने बीआरडी मेडिकल काॅलेज गोरखपुर के डाॅक्टर कफील खान के मामले में भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले ने अलीगढ के डीएम आईएएस चन्द्रभूषण सिंह व आईपीएस आकाश कुलहरि की उड़ा दी। इन दोनों अफसरों ने डाॅक्टर कफील खान को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत निरूद्ध किया था। और आरोप लगाया था कि डाॅक्टर कफील देश को तोड़ने और देश की सुरक्षा को लेकर खतरा हैं। जबकि हाईकोर्ट ने प्रशासन को कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ इरादतन एनएसए लगाने का दोषी पाया। और हाई कोर्ट ने कहा कि डाॅक्टर कफील का भाषण देश को तोड़ने वाला नहीं अपितु देश को जोड़ने वाला था। डाॅक्टर कफील तकरीबन आठ महीने जेल में रहे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में कफ़ील की याचिका पर सुनवाई होने में भले ही काफी देर लग गई लेकिन कफ़ील ख़ान ने कोर्ट का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि अदालत ने न्याय किया और सरकार के पक्षपातपूर्ण रवैये को सार्वजनिक कर दिया।
डॉक्टर कफ़ील का कहना है, “गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज मामले में मुझे दूसरी जांच में 23 जनवरी को क्लीन चिट मिली थी। इसके बाद सरकार ने परेशान होकर मुझ पर इस तरह से कार्रवाई की जैसे कि मैं कोई आतंकवादी हूं। मैं तो यह जानना चाहता हूं कि क्या बच्चों की जान बचाना कोई ग़ुनाह है? सरकार को ऐसा क्यों लग रहा था कि कोरोना संकट के दौरान भी मैं देश और समाज के लिए ख़तरा बन जाऊंगा। आख़िरकार हाईकोर्ट ने उनकी सारी कार्रवाई को ग़ैरक़ानूनी बता दिया।”
गौरतलब है कि भाजपा शासन में देश में एनएसए के तहत कार्यवाहियों में इजाफा हुआ है। क़ानूनविदों के एक बड़े तबके ने इस एक्ट के ‘भेदभावपूर्ण इस्तेमाल’ की निंदा की है और कहा है कि इसका सालों से ग़लत इस्तेमाल होता रहा है और शासन प्रशासन को तब तक इसका इस्तेमाल करने से बचना चाहिए जब तक उनके पास इसे साबित करने की उचित वजहें ना हों। लेकिन अभी देश में बहुत से मामले हैं जिनमें एनएसए के तहत कार्यवाही हुई जोकि बाद में कोर्ट द्वारा खारिज की गई।
अफसरशाही के चलते भ्रष्टाचार के मामलों में ताजा मामला है कि प्रयागराज के एसएसपी अभिषेक दीक्षित और मऊ के एसपी मणिलाल पाटीदार भ्रष्टाचार व प्रशासनिक अनियमितताओं में निलंबित किए गए हैं। इनकी संपत्ति की भी विजिलेंस जांच की जा रही है। मणिलाल पाटीदार पर तो अवैध वसूली के बड़े आरोप तक हैं। ऐसे ही कुकृत्यों में आरोपित अफसरों की फेहरिस्त में कई आईएएस अफसर हैं जो राजनीतिज्ञों के संरक्षण के लिए अपने अधीनस्थ अफसरों से बदजुवानी से पेश आने को लेकर हाईलाईट रहे हैं।
मलाईदार पोस्टिंग के लिए देते राजनैतिक संरक्षण
देश को चलाने के लिए ब्यूरोक्रेट्स होते है जो विधायिका के निर्देशों का अनुपालन कराने व लोकसेवक के रूप में तैनात किए जाते हैं। लेकिन ब्यूरोक्रेसी के भ्रष्ट अफसर मलाईदार पोस्टिंग के लिए जनता के हितों से खेलकर राजनैतिको को संरक्षण देते हैं। ऐसे में देश के संविधान सम्मत लोकहित प्रभावित होते है। जो सीधे तौर पर देश के लिए घातक होते हैं।
रिटायमेंट के बाद का प्लान तय कर लोकहित से करते किनारा
ब्यूरोक्रेसी के भ्रष्ट अफसर केवल मलाईदार पद तक ही सीमित नहीं रहते। यह अफसर अपने रिटायरमेंट के बाद का पूरा खाका तैयार कर राजनैतिक महत्वाकांक्षा के तहत अपने क्रत्यों को अंजाम देते हैं। मसलन सेवानिवृति के बाद राजनीति में आकर विधायक या सांसदी का टिकट हांसिल करना या कमेटियों के अध्यक्ष पद पाकर सत्ता की मलाई चाटने का सुख निहित रहता है।
कसम खाकर भी देशहित से करते खिलवाड़
देश के सर्वोच्च प्रशासनिक पदों पर आसीन होकर भ्रष्टाचार में तल्लीन रहने वाले अफसर लोकसेवक के रूप में कसम लेते है कि वह सत्य-निष्ठा, ईमानदारी, पारदर्शिता, भ्रष्टाचार उन्मूलन और पक्षपात के बिना भारत के संविधान सम्मत सिद्धान्तों पर आधारित सेवा करेंगे। लेकिन सेवा में रहकर भ्रष्टाचार और रिटायरमेंट के बाद सत्ता की लालसा के चलते देश लोकतंत्र को आघात और जनता का दम घोंटने से भी नहीं चूंकते।