बांदा, जन सामना। मानव जीवन प्रकृति के सह अस्तित्व पर ही निर्भर है। प्रकृति मानव एवं सम्पूर्ण प्राणियों के जीवन को समुन्नत करने हेतु मुक्त हस्त से प्राकृतिक संपदा बिना भेदभाव के बांटती है। प्रकृति मनुष्य की मूलभूत जरूरतों को हमेशा पूर्ण करती रहेगी। लेकिन मनुष्य के लोभ लालच को पूरा नहीं कर सकती। हमें प्रकृति को बचाना होगा, संरक्षित करना होगा।
उक्त विचार प्रकृतिप्रेमी शिक्षक साहित्यकार प्रमोद दीक्षित मलय ने एक बातचीत में कही। प्रमोद ने आगे कहा कि प्रकृति को मानव के लालच ने सर्वाधिक नुकसान किया है। मनुष्य ने धरती के सीने को खोदकर घाव दिये, नदियों के प्रवाह को बाधित कर बालू खींच ली। जंगल काट डाले, जला दिये। जैव विविधता नष्ट कर दी। जीवों का प्राकृतिक पर्यावास तहस-नहस कर दिया। फलत: धरती का ताप बढा, हिमनदों की बर्फ पिघली, समुद्र का जलस्तर बढ़ा। उपभोगवादी संस्कृति के कारण फ्रिज, एसी से निकली सीएफसी गैसों ने ओजोन परत में छिद्र कर दिये। आज मानव हताश निराश सुखभोग की एक अंधी दौड में भाग रहा है पर उसे शांति नहीं मिल रही। वह अतृप्त है, उसे समाधान नहीं। इनसे मुक्ति का उपाय बताते हुए प्रमोद मलय कहते हैं कि हमें सोचना होगा कि हम अपनी आगामी पीढ़ी को धरोहर में क्या सौंपना चाहते है। हिंसा, कलह, कलुषित परिवेश या प्रेम, सद्भाव, विश्वास एवं अपनेपन के भाव से भरा पारिवारिक परिवेश। हमें मिलकर धरती को सजाना-संवारना होगा। जहां कहीं अवसर मिलें पौधें रोपें। हमारे जाने के बाद भी ये पौधे विशाल वृक्ष बनकर पशु-पक्षियों का आश्रय और बसेरा बनेंगे। वातावरण भी शीतल रहता है। पक्षियों के कलरव का मधुर संगीत गूंजता रहता है। व्यक्ति के स्वभाव में रचनात्मकता एवं सकारात्मकता का आविर्भाव होता है। बतातें चलें कि प्रमोद दीक्षित ने अपने विद्यालय को सौ से अधिक पौधे लगाकर हराभरा किया है और अन्य विद्यालयों में जाकर पौधे रोपते हैं। वह प्रकृति के साथ जीते हैं। वह मानते हैं कि पेड़ हैं तो हम हैं।