Tuesday, November 19, 2024
Breaking News
Home » विविधा » नवजात कन्या अभिशाप नहीं, सौगात

नवजात कन्या अभिशाप नहीं, सौगात

भारत में कई प्रांतों तथा स्थानों में पैदा हुई नवजात कन्या का परिवार में खुले दिल से स्वागत नहीं किया जाता है| उसे अभिशाप समझ उसके साथ तिरस्कार का व्यवहार किया जाता है, इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को हमेशा निचले स्तर का व्यवहार झेलना पड़ता है| इसके लिए समाज के कई तबकों में स्वयं स्त्रियां भी जिम्मेदार होती है, स्त्री के गर्भवती होते ही परिवार में संतान के रूप में लड़का यानी पुत्र की कल्पना की जाने लगती है, और यह माना जाने लगता है कि पुत्र ही इस वंशावली को आगे बढ़ाएगा एवं उनके पूरे कुल को वही खुशहाली और प्रसन्नता प्रदान करेगा| पुत्री या कन्या के होते ही पूरे परिवार के चेहरे मायूसी से भर जाते हैं| आज के युग में जहां महिलाएं चांद पर जा रही हैं वह ऐसी सोच ऐसा विश्वास और ऐसी मान्यताएं अपने आप में एक अभिशाप की तरह स्थापित है, कुछ वर्षों पहले तक कन्या भ्रूण परीक्षण ने तबाही मचाई थी| परिवार में बहू, बेटी, बुआ के गर्भवती होते ही उनके पति, भाई, ससुर कन्या भ्रूण परीक्षण के लिए स्त्री पर दबाव डालने लगते थे, और परीक्षण पर कन्या पाए जाने पर उसका गर्भपात करा कर कन्या भ्रूण हत्या कर दी जाती थी| ऐसे लाखों प्रकरण हिंदुस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश में पाये गए हैं| और कन्या भ्रूण परीक्षण पर कानून बनाकर उस पर प्रतिबंध लगने से गुण हत्या पर बड़ी रोक लगी है| छुपे तौर पर भी देश में अनेक अस्पतालों में ऊंचे दाम लेकर कन्या भ्रूण परीक्षण किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति को इंगित करता है, कन्या का परिवार में आना इतना चिंताजनक क्यों? इसके लिए इस पुरुष प्रधान समाज में शिक्षा का अ भाव एवं दहेज प्रथा तथा कन्याओं की शादी में पैदा होने वाली परेशानियों से बचने के लिए कन्याओं का पैदा होते ही वध कर दिया जाता है| जिसके लिए अंधविश्वास, शिक्षा का अभाव एवं अन्य सामाजिक कुरीतियां जिसके चलते कन्या जन्म लेने से पहले ही भगवान को प्यारी कर दी जाती है|भारत के कुछ राज्यों में यह समस्या बड़ी विकराल एवं भयावह स्थिति में है| आगे चलकर अगर घर की बेटी किसी भी समाज के पुरुष से प्यार कर विवाह करना चाहती है तो परिवार के लोग लव जिहाद के चलते दोनों की हत्या भी कर देते हैं, दहेज प्रथा के चलते अधिकांश परिवारों में दहेज के बोझ के पूर्वअनुमान से ही डर के मारे भ्रूण हत्या करने से नहीं चूकते, आज जब महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर पुरुषों के साथ हर कार्य में अग्रणी हो गई है फिर भी यह कुप्रथा समाज में
कुरीति की तरह फैली हुई है| कई अस्पतालों नदी नालों में कन्या पैदा होते ही छोड़ दी जाती हैं या बहा दी जाती जो कि पुरुष समाज के लिए शर्मनाक स्थिति है| कुछ सालों मैं भूण हत्या के कहर ने महिला जनसंख्या में काफी कटौती कर दी है, परिणाम स्वरूप युव्कों को विवाह हेतु कन्या ढूंढ पाना कठिन हो गया था, विवाह के लिए कन्या की तलाश में परिवार को एक प्रदेश भटकने की स्थिति आ चुकीथी| पाकिस्तान में इसके और बुरे हालात हैं| कमोवेश भी इस समस्या से जूझ रहा है, पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्त्री-पुरुष का भेद भाव चरम सीमा पर है एवं एक बड़ी त्रासदी बनकर उभरा है| बड़ी भाई भयावह हो चुकी है, वहां सिंध प्रांत में लरकाना स्टेट में अस्पताल में नवजात बेटियों को लावारिस छोड़ कर लोग आ जाना आम बात हो गई है| सिंध प्रांत पाकिस्तान में लड़कियों को छोड़कर भाग जाना या ऐसी स्थिति में घर ले जाना कि उस दिन बाद नवजात मृत्यु को प्राप्त हो जाए एक आम हरकत बन चुकी है, वहां के चिंतक इसे सामाजिक कुरीतियों से भी जोड़ते हैं| कुछ दिन पूर्व एक कन्या को उसके माता पिता उसे अस्पताल में छोड़कर चले गए, जैसे ही अस्पताल प्रशासन को इस बात की जानकारी मिली, ऐसे में वह बच्ची
काफी खुशकिस्मत रही कि उसे अस्पताल प्रशासन ने इलाज करा कर उसकी जिंदगी बचा ली एवं एक सहृदय महिला नर्स ने उसे गोद ले लिया| इस तरह की घटना पंजाब सिंध के लिए एक उदाहरण बनकर सामने आई है,पाकिस्तान के दक्षिणी प्रांत सिंध में के रहने वाले लोग अक्सर लरकाना के शेख जायेद चिल्ड्रन हॉस्पिटल में ही इलाज के लिए आया करते हैं| इसलिए इस जनरल हॉस्पिटल में कन्याओं को छोड़कर जाने की घटनाएं हुई है | वहां माता-पिता ढके मुद्दे शब्दों से यह कहते हुए पाए गए की लड़की ही तो है, मर जाएगी तो क्या हुआ, खुदा ने बचा लिया तो बचा लिया वरना क्या कर सकते हैं परिवार में और भी तो बेटियां हैं, इस बेटी को हम घर ले जाकर क्या करेंगे| बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाकों में लड़कियों पर बहुत अत्याचार एवं जुल्म किया जाता है| जबकि वहां कई वर्षों से प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति महिलाएं ही रही हैं फिर भी इस पर कारगर कदम नहीं उठा पाए, भारत के परिपेक्ष में महिला सशक्तिकरण तथा महिला अत्याचार पर अनेक कानून बने हैं एवं जिनके प्रकरणों में फास्ट ट्रेक कोर्ट से निर्णय करा कर अत्याचारी के ऊपर करो दंड आरोपित किया जाता है| नवजात कन्याओं कोअभिशाप समझ कर इन पर अत्याचार करना एक सामाजिक समस्या है| कन्या भ्रूण हत्या, कन्या बाल श्रम, कन्याओं की अशिक्षा, कन्याओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार कर उन पर अत्याचार करना व्यभिचार यह सब पुरुष प्रधान समाज की मानसिक विसंगतियों के कारण ही है, और ईस में कुछ प्रतिशत महिलाएं भी पुरुषों का साथ देने के कारण ऐसी भयावह स्थिति पैदा होती है, शासन प्रशासन या कानून एक दायरे में ही इन सब पर रोक लगाकर कार्रवाई कर सकता है पर इसे सामाजिक आंदोलन बनाकर नवजात कन्याओं को अभिशाप न मानकर इन्हें उपहार स्वरूप समझ कर इनकी शिक्षा लालन-पालन में सकारात्मक सोच लेकर राष्ट्र को मजबूत बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए जिसकी आज परम आवश्यकता है,भारत के संदर्भ में स्थिति धीरे-धीरे परिवर्तित होने लगी है| महिलाएं जहां पुलिस, सेना और समाज सेवा में तीव्र गति से सहभागी हो रही हैं यह भारत के लिए एक अच्छे संकेत को इंगित करती है, जो कि आज की आवश्यकता भी है| संजीव ठाकुर