Tuesday, November 19, 2024
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वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई झांसी और बुंदेलखंड ही नहीं अपितु समूचे राष्ट्र का गौरव- डॉ0 भवानीदीन

हमीरपुर, जन सामना। किशनू बाबू शिवहरे महाविद्यालय, सिसोलर में विमर्श विविधा के अंतर्गत जरा याद करो कुर्बानी के तहत छबीली से क्षात्र धर्म की वाहिका रानी लक्ष्मीबाई की जयंती पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कालेज के प्राचार्य डॉ0 भवानीदीन ने कहा कि रानी केवल बुंदेलखंड ही नहीं अपितु पूरे देश की गौरव थी। वह एक महान वीरांगना थी। रानी में गजब का सैन्य कौशल था। सबसे पहले रानी ने महिला सेना के गठन पर न केवल विचार किया अपितु उसे जमीनी रूप प्रदान किया। रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवंबर 1828 को मोरोपंत तांबे के घर भागीरथी बाई की कोख से हुआ था। रानी लक्ष्मीबाई का नाम मणिकर्णिका और मनु था। मां का कम उम्र में निधन हो गया था। इस कारण पिता उसे लेकर बिठूर आ गए। बाजीराव पेशवा के यहां अपनी सेवाएं दी और वहीं पर रानी लक्ष्मीबाई ने घुड़सवारी, तलवार चलाना और हथियारों का प्रशिक्षण प्राप्त किया। उसकी चंचलता के कारण ही उसे छबीली कहा जाता था। रानी का विवाह मात्र चौदह वर्ष की अवस्था में झांसी के राजा गंगाधर राव से हो गया था। उसके बाद रानी लक्ष्मीबाई के 1851 में एक पुत्र हुआ। जो कम उम्र में नहीं रहा। राजा का1853 में निधन हो गया। उसके बाद रानी लक्ष्मीबाई की झांसी को हड़प लिया गया। उसी समय रानी ने कहा था कि मैं झांसी नहीं दूंगी और उन्होंने संगठन मजबूत किया। गोरों से कड़ा मुकाबला किया। रानी ने दामोदर राव को गोद लिया था। भितरघातियों के कारण जनरल ह्यूरोज़ ने झांसी किला पर कब्जा किया। उसके बाद रानी किले से बाहर निकल गई और कालपी और ग्वालियर पहुंच गई। उस समय के राजाओं ने रानी की बात नहीं मानी इसलिए पराजय का सामना करना पड़ा। रानी संघर्ष करते हुए ग्वालियर के निकट वीरगति को प्राप्त हुई। रानी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। कार्यक्रम में डॉ लालता प्रसाद, नेहा यादव, अखिलेश सोनी, आनंद विश्वकर्मा, प्रदीप कुमार यादव, राजकिशोर, प्रत्यूष, सुरेश, गणेश, देवेंद्र त्रिपाठी, राकेश यादव, गंगादीन आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ0 रमाकांत पाल ने किया।