Tuesday, July 2, 2024
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विद्यार्थियों, अभिभावकों, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े सह-पाठ्यचर्या की शिकायतों, विवादों के लिए अब स्वतंत्र आयोग बनाना जरूरी

भारत में शिक्षा क्षेत्र बहुत विस्तृत है। आधुनिक युग में तो बच्चों की प्ले नर्सरी ग्रुप से ही पढ़ाई शुरू हो जाती है। याने दो ढाई वर्ष की उम्र से ही बच्चों की कलम शिक्षा क्षेत्र जगत में चलना शुरू हो जाती है। जितनी बड़ी सिटी उतनी ही बड़ी सुविधाएं और शिक्षा शुल्क भी लगता है। पहले के जमानें में इतनी विस्तृतता और सुविधाएं नहीं थी। सिर्फ सरकारी शिक्षा संस्थाओं में ही शिक्षा ग्रहण की जाति थी। बदलते परिवेश में अब हजारों लाखों की संख्या में निजी शैक्षणिक संस्थाएं और कोचिंग क्लासेस इत्यादि शिक्षा सह पाठ्यचर्या यानी शिक्षा संस्था में स्विमिंग, स्क्रीनिंग, चित्रकला फोटोग्राफी, स्केटिंग इत्यादि बौद्धिक क्षमताओं का ज्ञान भी समान रूप से दिया जाता है और उनके शुल्क को अलग से वसूला जाता है। इसके अलावा निजी कोचिंग क्लासेस की भी बहुत सुविधाएं हो गई है अतः स्वाभाविक ही है कि जितनी विशाल सुविधाएं, सेवाएं होने से उतनी ही बड़ी शिकायतें और विवाद भी आना लाजमीं है, जिसका निपटारा अभी तक हर विद्यार्थी और अभिभावक जिला उपभोक्ता विवाद निवारण मंच से लेकर राज्य और राष्ट्रीय विवाद निवारण मंच तक में जाकर करते आए हैं। परंतु अब जो यह राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का आदेश आया है कि शैक्षणिक संस्थाएं, शिक्षा सह-पाठ्यचर्या या संबंधित गतिविधियां उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में सेवा नहीं है। इस आदेश से सभी विद्यार्थियों व अभिभावकों का मायूस ओ जाना लाजिमी भी है, क्योंकि उनके पास अपनी शिकायतों और विवादों के निवारण के लिए अब सामान्य कोर्ट ही पर्याय है, जो जेएमएफसी कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक है अतः अब केंद्र, राज्य व केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों को अपने अपने स्तर पर शिक्षा, सह-पाठ्यचार्य के शिकायतों और विवाद के निपटारे के लिए एक अलग आयोग बनाना लाजमी हो गया है जिससे सभी विवाद व शिक्षा संबंधी शिकायतों का निपटारा उस आयोग में सके।…..इसी पर आधारित एक मामला माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग दिल्ली में मंगलवार दिनांक 2 फरवरी 2021 को माननीय सिंगल जज बेंच के सम्मुख आया जिसमें माननीय श्री विश्वनाथ (प्रेसिडेंट) मेंबर शामिल थे प्रथम अपील क्रमांक 852ध्2016 जो कि शिकायत क्रमांक 29ध्2006 में राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग उत्तर प्रदेश के आदेश दिनांक 3 जून 2016 से उत्पन्न हुआ था, शिकायतकर्ता बनाम स्कूल प्रशासन, शिक्षण संस्था। जिसमें माननीय बेंच ने अपने पांच पृष्ठों के आदेश में कहा कि, शैक्षणिक संस्थाएं व शिक्षा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के दायरे में नहीं है इस आयोग और सुप्रीम कोर्ट का भी एक सेटल्ड ला है परन्तु विशेष उल्लेखनीय है कि मनु सोलंकी मामले में फैसला लिया गया था कि कोचिंग सेंटर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में आएंगे। मनु सोलंकी के फैसले के बाद, बेंगलुरु के एक जिला उपभोक्ता फोरम ने हाल ही में एक निजी कोचिंग सेंटर को निर्देश दिया कि वह माता-पिता को फीस वापस करे, ताकि यह पता चल सके कि उसकी ओर से सेवा की कमी थी।परंतु अभी राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का यह फैसला उल्लेखनीय है आदेश कॉपी के अनुसार, राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (छब्क्त्ब्)ने दोहराया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 शैक्षणिक संस्थानों पर लागू नहीं होता है और सह-पाठ्यचर्या संबंधी गतिविधियां जैसे तैराकी ष्सेवाष् के दायरे में नहीं आती हैं, जो अधिनियम के तहत परिभाषित हैं। मामले के तथ्य मौजूदा अपील उत्तर प्रदेश उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, लखनऊ के 03.06.2016 के आदेश के खिलाफ छात्र के पिता द्वारा दायर की गई थी। छात्र प्रतिवाद स्कूल में एनरॉल था। दलील दी गई कि स्कूल ने तैराकी सहित विभिन्न समर कैंप गतिविधियों की पेशकश की, और छात्रों को एक हजार रुपए का शुल्क देकर शामिल होने के लिए कह अपीलकर्ता ने स्कूल की पेशकश के अनुसार एनरॉल किया। अपील में कहा गया कि 28.05.2007 को उन्हें स्कूल से एक जरूरी फोन आया और स्कूल पहुंचने पर उन्हें सूचित किया गया कि उनके बेटे की स्विमिंग पूल में मौत हो गई है। इसके बाद,अपीलकर्ता ने राज्य आयोग के समक्ष एक उपभोक्ता शिकायत दायर की, जिसमें स्कूल पर लापरवाही और सेवा में कमी का आरोप लगाया गया था। अपने बेटे की मृत्यु, मानसिक पीड़ा और मुकदमेबाजी की लागत के रूप में 22,लाख़ पचपन हजार रुपए का मुआवजा मांगा। स्कूल ने दावे का विरोध किया और राज्य आयोग ने स्कूल के उपभोक्ता नहीं होने की दलील के साथ अपील को खारिज कर दिया।बाद में इसे एनसीडीआरसी के समक्ष चुनौती दी गई एनसीडीआरसी से क्या कहा? एनसीडीआरसी ने अनुपमा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग बनाम गुलशन कुमार और अन्य के मामलों का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शैक्षणिक संस्थान किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं दे रहे हैं, इसलिए सेवा, प्रवेश शुल्क आदि के मामले में सेवा की कमी का सवाल नहीं हो सकता है और मनु सोलंकी और अन्य बनाम विनायक मिशन विश्वविद्यालय, जिसमें एनसीडीआरसी की खंडपीठ ने माना था, शिक्षा संस्थान की ऐसी आकस्मिक गतिविधियां उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत किसी भी सेवा को प्रदान करने के बराबर नहीं होंगी। मनु सोलंकी और अन्य बनाम विनायक मिशन विश्वविद्यालय का हवाला में एनसीडीआरसी के फैसले का भी दिया गया, जिसका मानना ​​था कि एक शैक्षणिक संस्थान उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के दायरे में नहीं आएगा। इन मिसालों के बाद, एनसीडीआरसी ने कहा,यह तय कानून है, जैसा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट और साथ ही इस आयोग द्वारा निर्धारित पूर्वोक्त नजीरों में कहा गया है कि शैक्षिक संस्थान उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के दायरे में नहीं आते हैं और शिक्षा,जिसमें सह-पाठ्यचर्या संबंधी गतिविधियां, जैसे तैराकी, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अर्थ के तहत ष्सेवाष् नहीं है। इसलिए मैं राज्य आयोग के विचार से सहमत हूं कि शिकायतकर्ता उपभोक्ता नहीं है और शिकायत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 तहत सुनवाई योग्य नहीं है।उपरोक्त की रोशनी में, एनसीडीआरसी ने राज्य आयोग के विचारके साथ सहमति व्यक्त की कि शिकायतकर्ता उपभोक्ता नहीं है और इसलिए, शिकायत बरकरार नहीं रखी जा सकती है क्योंकि यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 के तहत शामिल नहीं है।
-संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र।