Tuesday, July 2, 2024
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देश की प्रमुख नदियों का स्वच्छ होना अनिवार्य है

हमारे देश में गंगा और यमुना आदि पवित्र नदियों का केवल सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व ही नहीं है, बल्कि देश की 40 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या इन नदियों पर आर्थिक रूप से भी निर्भर है। गंगा, यमुना व अन्य प्रमुख नदियों को साफ करने के लिए अनेकों सामाजिक अभियान व सरकारी परियोजनाएं चलाई जा रही हैं, अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, फिर भी हमारे देश की इन प्रमुख नदियों का प्रदूषण कम नहीं हो रहा और इनकी हालत बद से बदतर होती जा रही है। जब देश की प्रमुख नदियों का ये हाल है तो छोटी नदियों के बारे में क्या कहना। हमारी सरकारें इनको स्वच्छ करने के लिए अनेकों घोषणाएं करती हैं, अनेकों योजनाएं बनाती हैं, किंतु उन्हें सफलतापूर्वक कार्यान्वित नहीं कर पातीं और इसी का परिणाम है कि हमारे देश की आस्था और संस्कृति की प्रतीक ये नदियां आज नष्ट होने की कगार पर हैं। दिल्ली में यमुना नदी एक गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है। बढ़ती जनसंख्या और बढ़ते औद्योगीकरण ने नदियों को अत्यधिक प्रदूषित कर दिया है।
मोदी सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण निवारण और नदी को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से जून 2014 में नमामि गंगे नामक संरक्षण मिशन का शुभारंभ किया था। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई के लिए बजट को 4 गुना करते हुए वर्ष 2019 -2020 तक नदी की सफाई पर करीब 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान रखा था। योजना को सफल बनाने के लिए केंद्र एवं राज्य स्तर पर निगरानी तंत्र को बेहतर करने की कोशिश की गई है। शुरुआती स्तर की गतिविधियों के अंतर्गत नदी की ऊपरी सतह की सफाई से लेकर बहते हुए ठोस कचरे की समस्या को हल करना, ग्रामीण क्षेत्रों की नदियों में बहने वाले अपशिष्ट (वेस्ट) की समस्या को हल करना, शौचालयों के निर्माण करवाना, शवदाह गृह का आधुनिकीकरण कर आंशिक रूप से जलते हुए शव को नदी में बहाने से रोकना, घाटों का निर्माण, मरम्मत और आधुनिकीकरण आदि शामिल हैं। मध्यम अवधि की गतिविधियों के अंतर्गत नदी में नगर निगम और उद्योगों से आने वाले अपशिष्ट (वेस्ट) की समस्या को हल करने पर ध्यान दिया जाएगा। लंबी अवधि में इस कार्यक्रम को बेहतर बनाने के लिए प्रमुख वित्तीय सुधार किए जा रहे हैं।
औद्योगिक प्रदूषण की समस्या को हल करने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सभी उद्योगों को गंदे पानी के बहाव के लिए रियल टाइम ऑनलाइन निगरानी केंद्र स्थापित करने के निर्देश दिए हैं। इन गतिविधियों के अलावा जैव विविधता संरक्षण, वनीकरण और पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं। लंबी अवधि के तहत ई-फ्लो के निर्धारण, बेहतर जल उपयोग क्षमता और सतही सिंचाई की क्षमता को बेहतर बनाकर नदी का पर्याप्त प्रवाह सुनिश्चित किया जाएगा।
नदियों के प्रदूषण को कम करने के लिए 1986 में राजीव गांधी द्वारा गंगा सफाई कार्य योजना का शुभारंभ किया गया था जो 500 करोड़ रुपए से शुरू हुआ था। गंगा सफाई कार्य योजना से लेकर नमामि गंगे तक का गंगा को स्वच्छ बनाने का अब तक का सफर असफल ही रहा है, गंगा और यमुना की स्थिति इस दौरान बद से बदतर ही हुई है। गंगा और यमुना के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व तथा विभिन्न उपयोगों के लिए इनका दोहन होने के कारण, इनका स्वच्छता अभियान अत्यंत जटिल है, इसके लिए देश के सभी क्षेत्रों और प्रत्येक नागरिक की भागीदारी आवश्यक है, यह भागीदारी कई रूपों से की जा सकती है। इतनी बड़ी व लंबी नदी की गुणवत्ता को बहाल करने के लिए भारी निवेश की आवश्यकता है, इसके लिए सभी नागरिकों को योगदान करना चाहिए। रिड्यूस(कमी), रि-यूज़(पुनः उपयोग) और रिकवरी(पूर्ववत स्थिति) द्वारा, नागरिक कचरे और पानी के उपयोग को कम करके, उपयोग किए गए पानी, जैविक कचरे एवं प्लास्टिक की रिकवरी और इसके पुनः उपयोग से इस कार्यक्रम को सफल बनाने में बड़ी भागीदारी निभा सकते हैं।
गंगा और यमुना को स्वच्छ बनाने के मिशन की असफलता का सबसे बड़ा कारण, विकास के नाम पर अनियंत्रित, अनियोजित औद्योगीकरण एवं नगरीकरण को बढ़ावा देना है। अनेक शहरों में औद्योगिक एवं शहरी कचरा सीधे-सीधे गंगा में प्रवाहित किया जाता है, जिससे गंगाजल क्रोमियम जैसे घातक रसायनों से प्रदूषित और विषाक्त हो गया है, यही हालत यमुना नदी की भी है।
गंगा और यमुना की सफाई अभियान के अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने के लिए इस बात का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि विकास के दौरान ऐसी व्यवस्थाएं की जाएं, जिससे औद्योगिक प्रदूषण व गंदे नालों को इन नदियों से दूर रखा जा सके और विकास के नाम पर गंगा, यमुना के प्रवाह से की जा रही छेड़छाड़ को भी रोकना आवश्यक है ताकि उनका प्राकृतिक प्रवाह बाधित न हो सके और इसके लिए एक सशक्त निगरानी तंत्र को विकसित करने की जरूरत है जिससे यह प्रयास पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ किए जा सकें।
हमारी सरकारें यह समझने में असफल रही हैं कि किस प्रकार विश्व के अन्य देशों में वहां की सरकारों ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति, जनता में नदियों के प्रति जागरूकता पैदा करके और सही योजनाओं के कार्यान्वयन के द्वारा नदियों के प्रदूषण को समाप्त कर दिया है, लंदन की टेम्स नदी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कई वर्षों पूर्व यह नदी दिल्ली की यमुना नदी से भी अधिक प्रदूषित थी, इसे जैविक रूप से मृत घोषित कर दिया गया था, किंतु ब्रिटेन की सरकार ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के द्वारा और अपने देश की जनता को जागरूक करके इसे प्रदूषण मुक्त करके ही दम लिया। सबसे पहले इस नदी में सीधे गिरने वाले दूषित जल को रोका गया फिर मॉडर्न सीवेज सिस्टम की योजना के तहत पूरे लंदन शहर में जमीन के अंदर एक सीवेज सिस्टम बनाया गया, जिससे टेम्स का पानी ट्रीटमेंट के बाद ही लोगों के घरों में जाता है और घरों में उपयोग किया हुआ गंदा पानी ट्रीटमेंट के बाद ही टेम्स में जाकर मिलता है, इसके अलावा प्रदूषण के खिलाफ कड़े कानून बनाकर उन कंपनियों को बंद कर दिया गया जो टेम्स में अत्यधिक प्रदूषण पैदा कर रही थीं। हमारे देश में भी सरकारी तंत्र इन तौर-तरीकों को अपनाकर गंगा और यमुना जैसी नदियों को प्रदूषण मुक्त कर सकता है, किंतु विकसित देशों ने जिस प्रकार नदियों के महत्व को समझा है और उन्हें स्वच्छ करने के लिए जो इच्छाशक्ति दिखाई है, हमारे देश के शासकों-प्रशासकों में अभी उस इच्छाशक्ति की कमी दिखाई देती है। कुछ दशकों पूर्व तक विकसित माने जाने वाले कई अन्य देशों में भी नदियों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी किंतु उन्होंने जीवन में नदियों की आवश्यकता को समझते हुए इनकी स्वच्छता को प्राथमिकता दी।
नदियों के प्रदूषण का कारण उनके तट पर स्थापित उद्योग धंधे तो हैं ही, साथ ही शहरों के सीवेज को सही तरह शोधित किए बिना नदियों में सीधे गिरा देना भी इसका प्रमुख कारण है, अतः सरकार को चाहिए कि पर्याप्त मात्रा में ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाएं और बिना ट्रीटमेंट किए उद्योग धंधों व घरों से निकलने वाला कचरा सीधा नदी में न जा पाए। सरकार ने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में काफी बजट तो खर्च कर दिया किंतु इससे अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो सके क्योंकि एक तो यह ट्रीटमेंट प्लांट पर्याप्त संख्या में काम नहीं कर रहे और जो प्लांट हैं, वह भी आधी-अधूरी क्षमता से ही काम कर रहे हैं अतः सरकार को अधिक गुणवत्ता वाले और अधिक संख्या में ट्रीटमेंट प्लांट लगाने चाहिए। नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत सरकार ने नदी में सीवेज के प्रवाह को रोकने पर काफी हद तक ध्यान दिया है, किंतु फिकल कीचड़ के प्रबंधन पर सरकार का अधिक ध्यान नहीं है, अतः सरकार को फिकल कीचड़ के प्रबंधन के लिए उचित व्यवस्था एवं बजट का प्रावधान करना चाहिए, स्वच्छ भारत मिशन के तहत नदी के किनारे गांवों और कस्बों में अधिक से अधिक शौचालय बनाए जा रहे हैं, किंतु इन शौचालयों से उत्पन्न होने वाला फिकल कीचड़ और सेप्टेज पर्याप्त उपचार सुविधा न होने के कारण सीधा इन नदियों में मिल जाएगा, सरकार को शौचालयों के आसपास ही मल अपशिष्ट को शोधित करने की व्यवस्था करनी चाहिए व मल अपशिष्ट के पुनः उपयोग को भी बढ़ावा देना चाहिए। इसके अलावा शहरी नालों की गंदगी व औद्योगिक कचरे को बिना शुद्ध किए नदी में सीधे फेंकने पर रोक लगाई जानी चाहिए। गंगा और यमुना नदियों में गिरने वाले सारे गंदे नालों को बंद करा देना चाहिए। उद्योग धंधों से निकलने वाले कचरे को बिना ट्रीटमेंट किए नदियों में जाने से रोकने के लिए सरकार को सख्त कानून बनाने होंगे। राख, फूल, मूर्तियों, मृत जानवरों, आंशिक रूप से जले हुए शव को नदी में प्रवाहित करने पर भी रोक लगनी चाहिए। नदियों को स्वच्छ रखने के लिए लोगों में अधिक से अधिक जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है।
रंजना मिश्रा, कानपुर, उत्तर प्रदेश